Best Saving Plans: भारत में 10 सर्वश्रेष्ठ निवेश योजनाएं, सरकार का भी है भरोसा
नई दिल्ली: अपने भविष्य को वित्तीय रूप से सुरक्षित करने हेतु निवेश का निर्णय लेने से पहले विभिन्न निवेश साधनों को अच्छी तरह से समझना और उनका विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है। हालांकि, सभी निवेश विकल्पों के बारे में गहराई से जानकारी रखना थोड़ा कठिन हो जाता है। वित्तीय संस्थान कई स्कीम के बारे में हमें जानकारी दे देते हैं।
इसलिए, निवेश वहीं करें जहां जोखिम न हो और पैसे बढ़ें। यदि आप बिना जोखिम वाले निवेश विकल्पों की तलाश कर रहे हैं, तो हम आपके लिए ये प्लान लाएं। ये शून्य जोखिम के साथ अच्छे रिटर्न की पेशकश करेंगे।
1. राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS):
राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली एक सेवानिवृत्ति लाभ योजना है जो ग्राहकों को सेवानिवृत्ति के बाद नियमित आय की सुविधा प्रदान करती है। एनपीएस में निवेश की जा सकने वाली राशि की कोई अधिकतम सीमा नहीं है।
2. राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (NSC):
राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी) भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक और निश्चित आय पैदा करने वाली बचत योजना है। न्यूनतम निवेश राशि 100 रुपये है और अधिकतम निवेश सीमा नहीं है।
3. लोक भविष्य निधि (PPF):
योजना की शुरुआत के बाद से पीपीएफ निवेशकों के लिए कुछ खास स्कीम में उभरी है। निवेशक लंबी अवधि में नियमित रूप से पीपीएफ खाते में योगदान करके अपना रिटायरमेंट कॉर्पस बनाते हैं। पीपीएफ ने आकर्षक ब्याज दरों और कर लाभों के कारण विशेष रूप से छोटे बचतकर्ताओं के बीच अत्यधिक लोकप्रियता हासिल की है।
4. सुकन्या समृद्धि योजना (SSY):
2015 में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई सुकन्या समृद्धि योजना एक सरकार समर्थित कल्याणकारी योजना है जिसे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के एक भाग के रूप में विकसित किया गया है, जिसे विशेष रूप से बालिकाओं की वित्तीय जरूरतों के लिए डिजाइन किया गया है।
5. अटल पेंशन योजना (APY):
अटल पेंशन योजना (APY) भारत सरकार द्वारा असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों के लिए दी जाने वाली एक सामाजिक सुरक्षा योजना है। यह आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए देश की सबसे अच्छी निवेश योजनाओं में से एक है।
6. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGBs):
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड भारत सरकार की ओर से भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी किए गए गोल्ड बॉन्ड हैं। नवंबर 2015 में, भारत सरकार ने निवेशकों को भौतिक सोना रखने के विकल्प के साथ प्रदान करने के लिए सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) योजना शुरू की।
7. प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY):
प्रधानमंत्री वय वंदना योजना वरिष्ठ नागरिकों को मासिक पेंशन प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इससे उनके निवेश को गिरती ब्याज दरों से बचाया जा सकता है। 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति इस योजना को ले सकते हैं।
8. वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (SCSS):
यदि आप सेवानिवृत्ति के बाद सरकार समर्थित बचत योजना की तलाश कर रहे हैं, तो आपको वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (एससीएसएस) पर विचार करना चाहिए, जो इस श्रेणी की सबसे लोकप्रिय योजनाओं में से एक है।
9. प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY):
प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) भारत सरकार द्वारा उन व्यक्तियों के लिए वित्तीय सेवाएं और उत्पाद प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी जिनके पास कोई बैंकिंग संबंध नहीं है। चूंकि यह योजना मुख्य रूप से निम्न-आय वर्ग को लक्षित करती है, यह एक शून्य-शेष बचत खाता प्रदान करती है।
10. सरकारी सिक्योरिटीज:
सबसे पहले तो यह बता दें कि सरकारी सिक्योरिटीज एक निवेश योजना नहीं हैं, लेकिन व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश करना चुन सकते हैं। ये सरकारी सिक्योरिटीज, जैसे बांड और ट्रेजरी बिल के तहत आती हैं।
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Financial Analyst: फाइनेंशियल एनालिस्ट कैसे बनें? क्या हैं जरूरी स्किल्स, कहां मिलेगी जॉब, जानें सबकुछ
फाइनेंसियल एनालिस्ट का कार्य विभिन्न वित्तीय नीतियों के निर्माण और उनकी सफलता या विफलता का विश्लेषण करना है। आइए जानते हैं इस फील्ड में कितने करियर ऑप्शन हैं-
Image Credit: freepik
- निवेश विभागों में जोखिम का मूल्यांकन करना और संभावित नुकसान को सीमित करने में मदद करना।
- अपनी कंपनी के निवेश पोर्टफोलियो के लिए उत्पादों, उद्योगों और क्षेत्रों के मिश्रण का चयन करते हैं।
- डेटा का विश्लेषण करने और पूर्वानुमान विकसित करने के लिए स्प्रेडशीट और विशेष सॉफ्टवेयर पैकेज के साथ काम करना।
- फंड मैनेजर विशेष रूप से हेज फंड या म्यूचुअल फंड के साथ काम करते हैं।
- रेटिंग विश्लेषक कंपनियों या सरकारों की बॉन्ड सहित उनके ऋण का भुगतान करने की क्षमता का मूल्यांकन करते हैं।
- जोखिम विश्लेषक निवेश निर्णयों में जोखिम का मूल्यांकन करते हैं और निर्धारित करते हैं कि अप्रत्याशितता का प्रबंधन कैसे करें और संभावित नुकसान को कैसे सीमित करें।
- वित्तीय विश्लेषकों को लाभदायक निवेश खोजने में कई निवेश विश्लेषण करना जानकारी को संसाधित करना होगा।
- वित्तीय विश्लेषकों को ग्राहकों को स्पष्ट भाषा में उनकी सिफारिशों को समझाना होगा जो ग्राहक आसानी से समझ सकते हैं।
- वित्तीय विश्लेषकों को सुरक्षा खरीदने, रखने या बेचने की सिफारिश प्रदान करनी चाहिए। फंड मैनेजरों को अलग-अलग ट्रेडिंग निर्णय लेने चाहिए।
- फाइनेंसियल एनालिस्ट को विवरणों पर ध्यान देना चाहिए जब संभव निवेशों की समीक्षा करें क्योंकि छोटे तथ्यों में निवेश के स्वास्थ्य के लिए बड़े निहितार्थ हो सकते हैं।
- वित्तीय प्रतिभूतियों के मूल्य का आकलन करते समय वित्तीय विश्लेषक गणितीय कौशल का उपयोग करते हैं।
- फाइनेंसियल एनालिस्ट को वित्तीय डेटा का विश्लेषण करने, रुझानों को देखने, पोर्टफोलियो बनाने और पूर्वानुमान बनाने के लिए सॉफ़्टवेयर पैकेज का उपयोग करने में निपुण होना चाहिए।
करियर की संभावनाएं (career prospects)
फाइनेंसियल एनालिस्ट के करियर का दायरा बहुत बड़ा है, इसमें विभिन्न क्षेत्रों जैसे बैंक, उद्योग, वित्त बाजार और प्रौद्योगिकी शामिल हैं। एक फाइनेंसियल एनालिस्ट एक फाइनेंसियल एनालिस्ट और एक स्वतंत्र वित्तीय निवेश दोनों की भूमिका चुन सकता है। आम नियोक्ताओं में से कुछ एचडीएफसी बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, आईडीबीआई बैंक, कैनरा बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, एल एंड टी फाइनेंस लिमिटेड के अलावा वित्तिय विश्लेषक बैंकों, इंश्योरेंस कंपनियों, बीमा कंपनियों, म्यूचअल फंड, इंवेस्टमेंट में व्यवसाय करने वाली कंपनियों सहित कॉरपोरेट सेक्टर में कहीं पर भी जॉब कर सकते हैं।
फाइनेंसियल एनालिस्ट के लिए जॉब ऑप्शन (Job Options For Financial Analyst)
फ्रेशर उम्मीदवार के लिए, किसी फाइनेंशल फर्म, कंपनी या मार्केट में जॉब प्राप्त करना उसके करियर का बेसिक आधार होता है। कंपनी में फाइनेंसियल एनालिस्ट का रोल बहुत गतिशील है क्योंकि उनके लिए संगठन के अन्य डिपार्टमेंट्स के साथ सहयोग करना आवश्यक होता है और अगर जरूरी हो तो उन्हें सामने आकर कस्टमर के साथ बातचीत करनी पड़ती है। यहां कुछ ऐसे लोकप्रिय जॉब डेसिग्नेशन दिए जा रहे हैं जो फाइनेंस ग्रेजुएट अपना कोर्स पूरा करने के बाद ज्वाइन कर सकते हैं।
सेवाएं शोध एवं विश्लेषण
एक्ज़िम बैंक का शोध एवं विश्लेषण समूह अनुभवी अर्थशास्त्रियों और रणनीतिकारों की एक टीम से मिलकर बना है| यह टीम गुणात्मक और मात्रात्मक शोध तकनीकों के जरिए अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र, व्यापार और निवेश की गहरी समझ रखती है| यह समूह वैश्विक और घरेलू अर्थव्यवस्थाओं के ट्रेंड पर कुशलतापूर्वक निगाह रखता है और विश्लेषण करता है कि भारतीय और दूसरी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर इसका क्या असर पड़ेगा| यह समूह बैंक के साथ-साथ भारत सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक, निर्यातकों/आयातकों, व्यापार व उद्योग संघों, बाह्य ऋण प्रदाता एजेंसियों, शैक्षिक संस्थानों और शोधकर्ताओं के संपर्क में रहता है|
समूह भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाने के लिए संभावनाएं तलाशता है| इसके लिए मुख्य रूप से क्षेत्रवार, उद्योग खंडवार और नीति संबंधी अध्ययन किए जाते हैं| फिर इन्हें प्रासंगिक आलेखों (ओकेज़नल पेपर), कार्यकारी आलेखों (वर्किंग पेपर) और पुस्तक आदि के रूप में प्रकाशित किया जाता है|
समूह निम्न उद्देश्यों से विभिन्न देशों की प्रोफाइल भी तैयार करता है,
उस देश की आर्थिक, राजनीतिक, मौद्रिक और ऋण जोखिम स्थिति के विश्लेषण के लिए
संबंधित देश में निर्यात के अवसर तलाशने के लिए
किसी देश की अल्पावधि या मध्यावधि में आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए
देशों के साथ कारोबार में आर्थिक जोखिमों पता लगाने के लिए
इसके अलावा, समूह ऐसे देशों के लिए एक्सपोज़र (ऋण) सीमा भी तय करता है, जिनके साथ बैंक कारोबार करना चाहता है| साथ ही बैंक के व्यापार एक्सपोजर के लिए इन देशों के प्रमुख उद्योगों में हो रहे विकास पर भी नजर रखता है।
बैंक कंपनियों के विशेष आग्रह पर किसी देश में खास उस कंपनी के लिए बाजार की संभावनाओं, मार्केटिंग के तमाम पहलुओं और वितरण चैनलों पर केंद्रित शोध भी करता है| शोध के आधार पर उन कंपनियों को निर्यात बाजार में कदम रखने की योजना बनाने में भी सहयोग करता है| भारतीय व्यापारियों और निवेशकों को ताजातरीन जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से समूह नियमित रूप से विभिन्न बुलेटिन प्रकाशित करता रहता है| इसमें निर्यात अवसरों और भारतीय निर्यात से हुए विकास के प्रमुख बिंदुओं की सूचना होती है| ये प्रकाशन निम्नलिखित हैं :-
'एक्ज़िमिअस निर्यात लाभ' – तिमाही बुलेटिन
इस न्यूज़लेटर के जरिए क्षेत्रीय और उद्योग जगत की स्थिति, बैंक की गतिविधियां, बहुपक्षीय निधिक परियोजनाओं में अवसरों की जानकारी प्रदान की जाती है| साथ ही इसमें भारतीय कंपनियों द्वारा प्राप्त की गई संविदाओं, कारोबार के लिए चुनिंदा देशों और मुद्राओं की समीक्षा सहित तिमाही के घटनाक्रम भी होते हैं। यह एक नि:शुल्क प्रकाशन है, जिसे शोधार्थियों, अर्थशास्त्रियों, संस्थानों, भारत सरकार के कार्यालयों और निर्यात को बढ़ावा देने वाले संगठनों को वितरित किया जाता है|
'कृषि निर्यात लाभ'– द्विमासिक प्रकाशन
यह न्यूज़लेटर भारतीय कृषि व्यवसाय से जुड़े लोगों को वैश्विक कृषि-पर्यावरण और बाजारों के साथ भारतीय कृषि व्यवसाय के संबंध में नवीनतम सूचनाएं प्रदान करता है| इसमें कृषि-जिंसों, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों, कृषि व्यवसाय के भावी क्षेत्रों, कृषि व्यापार और व्यापार नीतियों, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विनियामक मुद्दों, विश्व व्यापार संगठन, सरकारी योजनाओं और सहायता, नवीनतम अंतरराष्ट्रीय समाचार और भारत से कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बैंक की गतिविधियों से संबंधित मुद्दों पर शोध रिपोर्ट होती हैं| यह अंग्रेजी, हिन्दी और दस क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित किया जाता है, जिनमें असमी, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, मराठी, मलयालम, उड़िया, पंजाबी, तमिल, और तेलुगु शामिल हैं|
डेविड ईस्टन का निवेश निर्गत विश्लेषण
डेविड ईस्टन ने आधुनिक काल में इस पद्धति का प्रतिपादन किया, जो उनका महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। उन्होंने अपने निवेश निर्गत विश्लेषण में राजनीतिक व्यवस्था को उसके पर्यावरण के संदर्भ में देखने की कोशिश की है। उनका मानना है कि पर्यावरण से निवेश के रूप में मांगे उठती हैं और उन्हें व्यवस्था का समर्थन प्राप्त होता है। इस मांगों को राजनीतिक दल, दबाव समूह, समाचार पत्र व अन्य समुदाय आदि समर्थन देकर व्यवस्था में रूपांतरण के लिए प्रस्तुत करते हैं। इन मांगों के परिणामस्वरूप कुछ नये निर्णय लिए जाते हैं, पुराने निर्णयों में संशोधन किया जाता है, अथवा कुछ निर्णयों को स्थापित किया जाता है। इस प्रकार निर्णयों को लिया जाना तथा नीतियां निर्धारित करना ही निर्गत कहलाता है। यह कार्य रूपांतरण एक प्रक्रिया के माध्यम से होता है। ईस्टन का मत है कि सत्ताधारियों के निर्णय व नीतियां निर्गत रूप से पुनः पर्यावरण में प्रवेश कर जाते हैं और उसमें परिवर्तन करके पुनः समाज में नई मांगे निवेश के रूप में उठ खड़ी होती हैं। इस कार्य को ईस्टन ने फीडबैक या पुनर्निवेश की संज्ञा दी है। इस प्रकार निवेश रूपांतरण तथा निर्गत की यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। ईस्टन का मत है कि राजनीतिक निवेश विश्लेषण करना व्यवस्था को बनाए रखने के लिए निवेश रूपांतरण और निर्गत की इस प्रक्रिया का सदा चलते रहना आवश्यक है। ईस्टन ने इसे एक चार्ट के माध्यम से समझाने की कोशिश की है जो इस प्रकार है।
उपरोक्त आधार पर यहां तीन मुख्य बिंदुओं पर चर्चा किया जाता है –
1) राजनीतिक व्यवस्था में निवेश – इसमें ईस्टन ने दो बातों की व्याख्या की है – मांग तथा समर्थन। पहला, मांग। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में हर समय असंख्य इच्छायें, आकांक्षायें, आवश्यकतायें तथा अपेक्षायें विद्यमान रहती हैं। इसमें से केवल कुछ मांगे जैसे सार्वजनिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा व शिक्षा आदि ही राजनीतिक प्रणाली में प्रवेश कर पाती हैं और शेष रास्ते में ही खो जाती हैं या नियामक तंत्र द्वारा नियंत्रित कर दी जाती हैं। ईस्टन कहता है कि इन मांगों को उजागर करने का कार्य राजनीतिक दल, समाचार पत्र, हित समूह आदि के द्वारा होता है।
निवेश का दूसरा पक्ष समर्थन है। यह समर्थन अनेक प्रकार का हो सकता है जैसे सकारात्मक, नकारात्मक, प्रकट अथवा अप्रकट। व्यक्ति समूह, विचारधारा, ध्येय, संस्था या अन्य प्रकार से व्यवस्था के पक्ष में होना समर्थन कहलाता है। समर्थन एक महत्वपूर्ण निवेश है क्योंकि राजनीतिक व्यवस्था समर्थन के अभाव में कार्य नहीं कर सकती है। बिना समर्थन के मांगों का औचित्य ही समाप्त हो जाता है।
2) मांगों का रूपांतरण – रूपांतरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा निवेश को निर्गत में परिवर्तित किया जाता है। मांगों को व्यवस्था के सामने रखने का कार्य राजनीतिक दल, दबाव समूह तथा अन्य प्रतिनिधियों के द्वारा किया जाता है। सत्ताधारी इन मांगों के आधार पर पक्ष या विपक्ष में निर्णय लेते हैं और इस प्रकार मांगों का रुप बदल दिया जाता है। राजनीतिक व्यवस्था में रूपांतरण प्रक्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इसके द्वारा ही शासकों का समर्थन बढ़ता है या घटता है।
3) राजनीतिक व्यवस्था के निर्गत – निर्गत उन नियमों तथा नीतियों को कहते हैं, जो निवेश के रूपांतरण के पश्चात् हमें प्राप्त होती है, अर्थात् निवेश को निर्गत में बदलने के लिए व्यवस्था के सामने लाया जाता है। राजनीतिक व्यवस्था इन निवेशों पर निर्णय लेती है ,और उत्पादित वस्तुओं के रूप में इन्हें बाहर निकाल देती है। इस प्रकार निर्गत व्यक्तियों द्वारा रखी गई मांगों पर राजनीतिक व्यवस्था द्वारा किये गये निर्णय होते हैं।
Stock Market Tips: किसी शेयर में निवेश से पहले आप खुद भी करें रिसर्च, जानें फंडामेंटल और टेक्निकल एनालिसिस का फर्क और अहमियत
Fundamental vs Technical Analysis: स्टॉक मार्केट में निवेश को लेकर कई रिकमंडेशंस या टिप्स मिलते हैं लेकिन आपको खुद एनालिसिस करनी चाहिए.
फंडामेंटल तौर पर मजबूत स्टॉक की पहचान काफी आसान होता है क्योंकि आप इसे लंबे समय में करते हैं. वहीं टेक्निकल एनालिसिस में एकाएक उतार-चढ़ाव को एनालिसिस करना होता है. (Image- Pixabay)
Stock Market Tips: स्टॉक मार्केट में निवेश के लिए बेहतरीन शेयरों का चयन करना पहला स्टेप होता है. इसके लिए मुख्य रूप से दो तरीकों से एनालिसिस किया जाता है जैसे कि फंडामेंटल एनालिसिस या टेक्निकल एनालिसिस. हालांकि कभी-कभी कंफ्यूजन होती है कि इन दोनों ही एनालिसिस के जरिए शेयरों का चयन किया जाए या किसी एक एनालिसिस के सहारे स्टॉक मार्केट से मुनाफे की रणनीति अपनाई जाए.
कुछ निवेशक किसी एक एनालिसिस के निवेश विश्लेषण करना सहारे शेयरों का चयन करते हैं लेकिन एनालिस्ट्स का मानना है कि टेक्निकल एनालिसिस करते समय भी कुछ फंडामेंटल भी देखना चाहिए और इसी प्रकार फंडामेंटल एनालिसिस करते समय कुछ टेक्निकल भी देखना चाहिए. इसके अलावा स्टॉक मार्केट में निवेश को लेकर कई रिकमंडेशंस या टिप्स मिलते हैं लेकिन आपको खुद एनालिसिस करनी चाहिए. ऐसे में आइए जानते हैं कि दोनों एनालिसिस क्या है और दोनों में क्या फर्क है.
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Fundamental Analysis
इसमें कंपनी के फाइनेंशियल्स और P/E Ratio और P/B Ratio जैसे रेशियो को देखते हैं. इसके अलावा और भी रेशियो को एनालाइज करते हैं. अब अगर जैसे पीई रेशियो की बात करें तो इसकी वैल्यू अगर कम है तो इसका मतलब है कि इसमें ग्रोथ की काफी गुंजाइश है जब पीबी रेशियो कम है तो इसका मतलब हुआ कि स्टॉक अंडरवैल्यूड है. इसके अलावा फंडामेंटल एनालिसिस में बीटा को भी देखते हैं जो अगर एक से अधिक है तो इसका मतलब हुआ कि मार्केट की तुलना में यह अधिक वोलेटाइल है. जो कंपनियां हाई डिविडेंड यील्ड वाली हैं और कर्ज मुक्त हैं, वे फंडामेंटली रूप से बहुत मजबूत हैं.
Technical Analysis
टेक्निकल एनालिसिस फंडामेंटल एनालिसिस की तुलना में थोड़ा अधिक कांप्लेक्स है. इसके तहत रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स (RSI), बोलिंजर बैंड्स (Bollinger Bands) जैसे 30-40 टेक्निकल इंडिकेटर्स का एनालिसिस किया जा सकता है. इस एनालिसिस में स्टॉक की मजबूती और रूझानों का अनुमान लगाया जाता है.
Fundamental vs Technical Analysis
फंडामेंटल और टेक्निकल एनालिसिस को कुछ फैक्टर पर किया जााता है जैसे कि समय, रिस्क और ट्रैकिंग.
- समय- फंडामेंटल एनालिसिस आमतौर पर ऐसे समय में किया जाता है जब आपको लंबे समय के लिए किसी स्टॉक को होल्ड करना है. इसके तहत ऐसे स्टॉक की पहचान की जाती है जो समय के साथ और मजबूत होंगे. इसके विपरीत टेक्निकल एनालिसिस को शॉर्ट टर्म में किसी स्टॉक में पैसे लगाने के लिए किया जाता है. इसमें बुलिश स्टॉक की पहचान की जाती है.
- रिस्क- फंडामेंटल रूप से मजबूत शेयरों में निवेश पर रिस्क कम होता है जबकि टेक्निकल वैरिएबल्स में ऐसा दावा नहीं किया जा सकता है.
- ट्रैकिंग- फंडामेंटल तौर पर मजबूत स्टॉक की निवेश विश्लेषण करना निवेश विश्लेषण करना पहचान काफी आसान होता है क्योंकि आप इसे लंबे समय में करते हैं. वहीं टेक्निकल एनालिसिस में एकाएक उतार-चढ़ाव को एनालिसिस करना होता है.
- वैल्यू: फंडामेंटल एनालिसिस में किसी कंपनी के कारोबार, इंडस्ट्री और मार्केट के साथ घरेलू व अंतरराष्ट्रीय माहौल का आकलन करते हुए फेयर वैल्यू डेवलप करते हैं. वहीं टेक्निकल में हिस्टोरिकल रिटर्न और भाव में बदलाव के जरिए आगे कीमतों में उतार-चढ़ाव का आकलन किया जाता है.
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