वैश्विक बाज़ार में डॉलर का वर्चस्व
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख के अंतर्गत वैश्विक बाज़ार में डॉलर के वर्चस्व और विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं उसकी भूमिका पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
अमेरिकी डॉलर निस्संदेह वैश्विक वित्तीय प्रणाली का प्रमुख चालक है। केंद्रीय बैंकों के लिये प्रमुख आरक्षित मुद्रा से लेकर वैश्विक व्यापार एवं उधार लेने हेतु मुख्य साधन के रूप में अमेरिकी डॉलर विश्व भर के बैंकों और बाज़ारों के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। वर्ष 2017 में जारी एक शोध पत्र के मुताबिक कुल अमेरिकी डॉलर का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका से बाहर मौजूद है। यह आँकड़ा विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिये डॉलर के महत्त्व को स्पष्ट करता है। हालाँकि गत वर्षों में कई देशों की सरकारों ने डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने का प्रयास किया है, उदाहरण के लिये वर्ष 2017 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रुसी बंदरगाहों पर अमेरिकी डॉलर के माध्यम से व्यापार न करने का आदेश दिया था। परंतु जानकारों का मानना है कि डी-डॉलराइज़ेशन या वैश्विक बाज़ार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व में कमी निकट भविष्य में संभव नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में डॉलर
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा वह मुद्रा होती है जिसे दुनिया भर में व्यापार या विनियम के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है। अमेरिकी डॉलर, यूरो और येन आदि विश्व की कुछ महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्राएँ हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा को आरक्षित मुद्रा के रूप में भी जाना जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) ने दुनिया भर की 180 प्रचलित मुद्राओं को मान्यता प्रदान की है और अमेरिकी डॉलर भी इन्हीं में से एक है, परंतु खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश का प्रयोग मात्र घरेलू स्तर पर ही किया जाता है।
- विश्व भर के बैंकों की डॉलर पर निर्भरता को वर्ष 2008 के वैश्विक संकट में स्पष्ट रूप से देखा गया था।
वैश्विक स्तर पर डॉलर की भूमिका
- आरक्षित मुद्रा के रूप में
- अंतर्राष्ट्रीय क्लेम को निपटाने और विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से दुनिया भर के अधिकांश केंद्रीय बैंक अपने पास विदेशी मुद्रा का भंडार रखते विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, अमेरिकी डॉलर विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा है। आँकड़ों के मुताबिक, 2019 की पहली तिमाही तक विश्व के सभी ज्ञात केंद्रीय बैंकों के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 61 प्रतिशत हिस्सा अमेरिकी डॉलर का है।
- अमेरिका डॉलर के बाद यूरो को सबसे लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना जाता है, विदित हो कि वर्ष 2019 की पहली तिमाही तक विश्व के सभी केंद्रीय बैंकों के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 20 प्रतिशत हिस्सा यूरो का है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2010 से जापानी येन (Yen) की आरक्षित मुद्रा के रूप में भूमिका में 5.4 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि चीनी युआन (Yuan) और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है, यद्यपि यह अभी मात्र 2 प्रतिशत का ही प्रतिनिधित्व करता है।
- वर्तमान में गैर-अमेरिकी आयातकों और निर्यातकों के मध्य लेन-देन में अमेरिकी डॉलर खासी भूमिका निभा रहा है।
- ज्ञात है कि विश्व का लगभग 90 प्रतिशत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार डॉलर के माध्यम से ही होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (BIS) के अनुसार, डॉलर में प्रकट बिल (Invoices) का अनुपात विश्व आयात में डॉलर की हिस्सेदारी का लगभग पाँच गुना अधिक है।
- आँकड़ों के मुताबिक, 2018 में गैर-सदस्यों से यूरोपीय संघ में आयात की गई कुल वस्तुओं में आधे से अधिक के बिल/इनवॉइस अमेरिकी डॉलर में प्रस्तुत किये गए थे।
- वैश्विक बाज़ारों में सक्रिय कंपनियाँ, जैसे- हवाई जहाज़ निर्माता कंपनी एयरबस (Airbus) प्रायः अपने मूल्यों को डॉलर में ही सूचीबद्ध करती हैं।
- आमतौर पर तेल और सोने जैसी वस्तुओं का मूल्य निर्धारण अमेरिकी डॉलर में ही किया जाता है। गौरतलब है कि अधिकांश तेल उत्पादक देश बिक्री के बीजक (Invoice) बनाते समय उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचने के लिये अपनी मुद्रा का मूल्य निर्धारण डॉलर के आधार पर करते हैं।
- वर्ष 2018 में डॉलर का वर्चस्व तब देखने को मिला जब अमेरिका ने ईरान पर पुनः प्रतिबंध लगाने और उसके साथ व्यापार करने वाले देशों को दंडित करने का फैसला किया।
- BIS के आँकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका से बाहर रहने वाले गैर-बैंकिंग उधारकर्त्ताओं पर जून 2019 तक 11.9 ट्रिलियन डॉलर का उधार था।
डॉलर के विकास की कहानी
- उल्लेखनीय है कि पहला अमेरिकी डॉलर वर्ष 1914 में फेडरल रिज़र्व बैंक द्वारा छापा गया था। 6 दशकों से कम समय में ही अमेरिकी डॉलर एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उभर कर सामने आ गया, हालाँकि डॉलर के लिये इतने कम समय में ख्याति हासिल करना शायद आसान नहीं था।
- यह वह समय था जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था ब्रिटेन को पछाड़ते हुए विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रही थी, परंतु ब्रिटेन अभी भी विश्व का वाणिज्य केंद्र बना हुआ था क्योंकि उस समय तक अधिकतर देश ब्रिटिश पाउंड के माध्यम से ही लेन -देन कर रहे थे।
- साथ ही कई विकासशील देश अपनी मुद्रा विनिमय में स्थिरता लाने के लिये उसके मूल्य का निर्धारण सोने (Gold) के आधार पर कर रहे थे
- इस व्यवस्था को ब्रेटन वुड्स समझौते के नाम से जाना जाता है।
‘एक विश्व मुद्रा’ की मांग
- मार्च 2009 में चीन और रूस ने नई वैश्विक मुद्रा का आह्वान किया था, वे एक ऐसी मुद्रा चाहते थे जो कि ‘विश्व के किसी भी देश से जुड़ी न हो और लंबे समय तक स्थिर रहने में सक्षम हो।’
- चीन को चिंता थी कि यदि डॉलर मुद्रास्फीति की शुरुआत होती है तो उसके पास मौजूद अरबों डॉलर का कोई मूल्य नहीं रह जाएगा। गौरतलब है कि यह स्थिति अमेरिकी घाटे में वृद्धि और अमेरिकी ऋण के भुगतान के लिये अधिक-से-अधिक नोटों की छपाई के कारण संभव थी।
- चीन ने डॉलर को प्रतिस्थापित करने के लिये नई मुद्रा का विकास करने हेतु IMF का आह्वान किया, हालाँकि अभी तक डॉलर को प्रतिस्थापित करना संभव नहीं हो पाया है परंतु चीन इस ओर अभी भी प्रयास कर रहा है और इस संदर्भ में वह अपनी अर्थव्यवस्था में भी काफी सुधार कर रहा है।
निष्कर्ष
अरबों डॉलर के विदेशी ऋण और घाटे की वित्तीय व्यवस्था के बावजूद वैश्विक बाज़ार को अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर विश्वास है। जिसके कारण अमेरिकी डॉलर आज भी विश्व की सबसे मज़बूत मुद्रा बनी हुई है और आशा है कि आने वाले वर्षों में भी यह महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा की भूमिका अदा करेगी, हालाँकि गत कुछ वर्षों में चीन विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं और रूस जैसे देशों ने डॉलर के समक्ष कई चुनौतियाँ पैदा की हैं। आवश्यक है कि चीन और रूस जैसे देशों की बात भी सुनी जानी चाहिये और सभी हितधारकों को एक मंच पर एकत्रित होकर यथासंभव संतुलित मार्ग की खोज करने का प्रयास करना चाहिये।
प्रश्न: वैश्विक वित्तीय प्रणाली में डॉलर की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।
विदेशी मुद्रा भंडार लुढ़क कर पहुंचा 23 महीने के न्यूनतम स्तर पर, गोल्ड रिजर्व की वैल्यू भी घटी
राज एक्सप्रेस। देश में जितना भी विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार जमा होता है, उसके आंकड़े समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी किए जाते हैं। इन आंकड़ों में हमेशा ही उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) में एक बार फिर गिरावट का दौर लगातार जारी है। इस गिरावट के साथ यह 23 महीने के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। वहीं, स्वर्ण भंडार (Gold Reserves) का हाल भी कुछ ऐसा ही रहा है। इस बात का खुलासा RBI द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों से होता है। बता दें, यदि विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज की जाती है तो, कुल विदेशी विनिमय भंडार में भी बढ़त दर्ज होती है।
विदेशी मुद्रा भंडार के ताजा आंकड़े :
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 2 सितंबर 2022 को खत्म हुए सप्ताह में 560 अरब डॉलर से गिरकर 553.105 अरब डॉलर पर आ पहुंचा है, जबकि, 19 अगस्त 2022 को खत्म हुए सप्ताह में 6.687 अरब डॉलर घटकर 564.053 अरब डॉलर पर आ पहुंचा है। वहीँ, 12 अगस्त 2022 को खत्म हुए सप्ताह में 2.23 अरब डॉलर घटकर 570.74 अरब डॉलर पर आ पहुंचा था। वहीँ, अगर 5 अगस्त 2022 को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार देखे तो यह 2.23 अरब डॉलर 89.7 करोड़ डॉलर घटकर 572.978 अरब डॉलर पर आ पहुंचा था। इस प्रकार वर्तमान समय में दर्ज हुई गिरावट 7.941 अरब डॉलर देखने को मिली है। इस प्रकार यह 2 साल के निचले स्तर पर आ पहुंचा है।
गोल्ड रिजर्व की वैल्यू :
बताते चलें, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत के गोल्ड रिजर्व की वैल्यू में भी पिछले कुछ समय विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं से एक- दो बार बढ़त दर्ज हुई थी, लेकिन अब एक बार फिर गोल्ड रिजर्व की वैल्यू 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह में सोने का भंडार 38.303 अरब डॉलर पर आ गया, इसमें 1.339 अरब डॉलर पर आ गिरी हैं। हालांकि, इससे पहले भी गोल्ड रिजर्व में बढ़त दर्ज हुई थी। रिजर्व बैंक ने बताया कि, आलोच्य सप्ताह के दौरान IMF के पास मौजूद भारत के भंडार में मामूली वृद्धि हुई। बता दें, विदेशी मुद्रा संपत्तियों (FCA) में आई गिरावट के चलते विदेशी मुद्रा भंडार में भी गिरावट दर्ज होती है, लेकिन अब जब FCA में बढ़त दर्ज हुई है तो विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ा है। RBI के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज होने की वजह से कुल विदेशी विनिमय भंडार में बढ़त हुई है और विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का एक अहम भाग मानी जाती है।
आंकड़ों के अनुसार FCA :
रिजर्व बैंक (RBI) के साप्ताहिक आंकड़ों पर नजर डालें तो, विदेशीमुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती हैं। बता दें, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में बढ़त होने की वजह से मुद्रा भंडार में बढ़त दर्ज की गई है। FCA को डॉलर में दर्शाया जाता है, लेकिन इसमें यूरो, पौंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्रा सम्पत्ति भी शामिल होती हैं। आंकड़ों के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (SDR) 5 करोड़ डॉलर घटकर 17.782 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। जबकि, IMF में रखे देश का मुद्रा भंडार भी 2.4 करोड़ डॉलर गिरकर 4.902 विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं अरब डॉलर हो गया। समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियां (FCA) 6.527 अरब डॉलर की गिरावट के साथ 492.117 अरब डॉलर रह गई है।
क्या है विदेशी मुद्रा भंडार ?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं ऑफ़ इंडिया द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। इसका उपयोग आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में भी किया जाता है। कई लोगों को विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी का मतलब नहीं पता होगा तो, हम उन्हें बता दें, किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी अच्छी बात होती है, इसमें करंसी के तौर पर ज्यादातर डॉलर होता है, यानि डॉलर के आधार पर ही दुनियाभर में कारोबार किया जाता है। बता दें, इसमें IMF में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार के फायदे :
विदेशी मुद्रा भंडार से एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति आसानी से की जा सकती है।
अच्छा विदेशी मुद्रा आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है।
यदि भारत के पास भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है तो, सरकार जरूरी सैन्य सामान को तत्काल खरीदने का निर्णय ले सकती है।
विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की प्रभाव पूर्ण भूमिका होती है।
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बाढ़ ने पाकिस्तान की कंगाली का आटा कर दिया और गीला, क्या होगा अब
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं पाकिस्तान को आर्थिक मदद महीनों से खराब चल रही उसकी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए थी. तेल, गैस और अन्य जरूरी वस्तुओं के लिए भारी आयात पर निर्भर यह परमाणु संपन्न देश किसी अन्य विकासशील देश की तरह बाहरी झटकों से उबर नहीं पा रहा है. अगस्त में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आर्थिक पैकेज के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Reserve) के रसातल में जाने, स्थानीय मुद्रा में लगातार गिरावट आने और आसमान छूती मंहगाई ने पाकिस्तान (Pakistan) की अर्थव्यवस्था को लेकर फिर से गंभीर चिंता को जन्म दे दिया है. मानों यही काफी नहीं था अगस्त में आई बाढ़ (Floods) ने न सिर्फ 1500 लोगों को लील लिया, बल्कि अरबों रुपए का नुकसान अलग से कर दिया. इससे उसकी वित्तीय स्थिति पर और भी ज्यादा दबाव आ गया है.
आखिर मूल चिंताएं क्या हैं
सबसे बड़ी चिंता तो ऊर्जा और भोजन के आयात के भुगतान करने की पाकिस्तान की क्षमता से जुड़ी है. उस पर विदेशों से लिए गए ऋण को चुकाने की जिम्मेदारियां हैं. पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के अनुसार बाढ़ के कहर से पहले वित्तीय वर्ष 2022-2023 (जुलाई-जून) के लिए बाहरी वित्त पोषण से जुड़ी जरूरतों का अनुमान 33.5 बिलियन डॉलर का था. यह चुनौतीपूर्ण आंकड़ा चालू खाता के घाटे समेत मित्र देशों से लिए ऋण रोल ओवर को लगभग आधा कर पूरा किया जाना था. यह अलग बात है कि बाढ़ ने पूरे के पूरे हालात बदल दिए. अब बाढ़ से लाखों हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर खड़ी जरूरी फसलों के नष्ट हो जाने के बाद निर्यात में गिरावट और आयात बढ़ने की पूरी उम्मीद है. पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के पास 8 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा है, तो वाणिज्यिक बैंकों के पास 5.7 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं का अतिरिक्त विदेशी मुद्रा भंडार है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आर्थिक पैकेज के बावजूद इससे हद से हद एक माह आयात किया जा सकेगा. इस साल की शुरुआत के साथ ही पाकिस्तानी रुपये 20 फीसदी कमजोर हो चुका है और अगस्त में तो निचले स्तर पर था. यह न सिर्फ पाकिस्तान की दयनीय आर्थिक स्थिति को सामने लाता है, बल्कि बताता है कि डॉलर की मजबूती के आगे वह कब तक टिका रहेगा. पाकिस्तान के रुपये की गिरावट आयात, उधार और ऋण की लागत बढ़ा रही है. इसके साथ ही यह स्थिति विगत कई दशकों के उच्च स्तर पर चल रही 27.3 फीसदी महंगाई को भी और बढ़ाने विदेशी मुद्रा कोष की नई चिंताएं का काम करेगी.इसलिए घबराया हुआ है बाजार
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आर्थिक पैकेज ने घाटे की तमाम आशंकाओं को कुछ हद तक कम किया था, लेकिन अब वे नए सिरे से उबर आई हैं. शुरुआती स्तर पर बाढ़ से 30 बिलियन डॉलर के नुकसान का अनुमान लगाया गया है. यानी अब पाकिस्तान की वित्तीय जरूरतें और भी बढ़ गई हैं. फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने सुझाव दिया था कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय ऋण चुकाना फिलवक्त निलंबित कर दे और लेनदारों के साथ लिए गए ऋण अदायगी के तंत्र को नए सिरे से पुनर्गठित करे. इस खबर पर ही वैश्विक बांड बाजार ने तेजी से प्रतिक्रिया दी. इस पर सरकार ने सफाई देते हुए कहा कि वह सिर्फ राहत पाने की सोच रहा था और निजी ऋण के दायित्वों का निर्वाह करेगी. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति ही सिर्फ चिंता का सबब नहीं है, बल्कि पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता के चंगुल में भी फंसा हुआ है. शहबाज शरीफ सरकार को पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की ओर से तगड़ी चुनौती मिल रही है. लगभग एक साल के भीतर पाकिस्तान में आम चुनाव होने हैं.वित्त मंत्री पर उठ रहे हैं प्रश्न
पाकिस्तान के भी खेल निराले हैं. अच्छा-भला एक सुधार समर्थक वित्त मंत्री की जिम्मेदारी निभा रहा था, लेकिन उसे हटाकर इशाक डार जैसे दखलंदाजी पसंद शख्स को वित्त मंत्री बना दिया गया. इशाक डार ने वित्त मंत्री पद की शपथ लेते ही ब्याज दरों में कटौती करने, महंगाई में कमी लाने और रुपये को मजबूती देने वाले उपाय अपनाने की घोषणा कर दी. नतीजा यह निकला कि मुख्य नीतिगत ब्याज दर 15 फीसदी है, जो मुद्रास्फीति की 27 फीसदी दर से काफी नीचे है. इसके साथ ही वर्ष के लिए 20 फीसदी औसत का अनुमान लगाया गया है. जाहिर है डार की लोकलुभावन टिप्पणियों ने ऋण बाजार को एक बार फिर से झकझोर कर रख दिया है.पाकिस्तान के पास विकल्प क्या है
त्वरित समाधान की बात करें तो आयात के लिए वित्त के साथ-साथ मांग में कमी लाना, लेकिन बाढ़ के बाद जरूरतें बढ़ चुकी हैं. हालांकि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजारों से बाहर है, क्योंकि निवेशक यूएस कोषागारों सरीखे सुरक्षित पनाहगाहों से पाकिस्तान के बांड्स को ऊपर रखने के लिए 26 फीसदी प्वाइंट प्रीमियम की मांग कर रहे हैं. कुछ संकेत मिले हैं कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अगला आर्थिक पैकेज बाढ़ की विभीषिका से मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान को जल्द मिल जाए. सरकार का कहना है कि उसे अन्य बहुपक्षीय ऋणदाताओं से वित्तपोषण में वृद्धि की उम्मीद है. सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कतर ने 5 बिलियन डॉलर के निवेश का वादा किया है. इससे वित्तीय स्थिति के साथ-साथ पाकिस्तान के आत्मविश्वास में भी वृद्धि होगी. रियाद और दोहा से ऊर्जा भुगतान की सुविधा मिलने की उम्मीद है, जिनसे पाकिस्तान तरल गैस खरीदता है. इससे भी पाकिस्तान के चालू खाते का दबाव कम होगा. ऋण भुगतान के लिए पाकिस्तान पेरिस क्लब समेत द्विपक्षीय ऋण धारकों से बात कर रहा है. हालांकि पेंच फंसेगा चीन के साथ जिससे पाकिस्तान ने 30 बिलियन डॉलर का ऋण लिया हुआ है. इनमें चीन के सरकारी बैंक भी शामिल हैं.पाकिस्तान इस गति को प्राप्त कैसे हुआ
आंतरिक राजनीतिक उथल-पुथल और वैश्विक कमोडिटी संकट सरीखे बाहरी झटकों से पाकिस्तान के आर्थिक संकट को बढ़ावा मिला. सामान्यतः पाकिस्तान के आयात का एक-तिहाई हिस्सा ऊर्जा से जुड़ा हुआ है. पिछले वित्तीय वर्ष तरल नाइट्रोजन गैस समेत अन्य पेट्रोलियम पदार्थों के आयात का खर्च दोगुना होकर 23.3 बिलियन डॉलर से अधिक रहा. पाकिस्तान तरल नाइट्रोजन गैस के इस्तेमाल से ही अधिसंख्य बिजली का उत्पादन करता है. बिजली की दरों में भारी इजाफा किया गया है और सर्दी के आने के साथ ही आपूर्ति में कमी आना तय है. बीते वित्तीय वर्ष में बिजली की उच्च दरों से पाकिस्तान का चालू खाता घाटा 17 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है, जो उसकी जीडीपी के 5 फीसदी के लगभग बैठता है. 2020-21 की तुलना में यह छह गुना अधिक है, वह भी तब जब विदेशों से रिकॉर्ड स्तर पर जबर्दस्त छूट दी गई. अत्यधिक कमजोर होती अर्थव्यवस्था ने भी घाटे को बढ़ाने का काम किया. बीते वित्त वर्ष में ही आयात 42 फीसदी वृद्धि के साथ 80 बिलियन डॉलर का हो गया. साथ ही 32 बिलियन डॉलर का निर्यात भी हुआ लेकिन यह वृद्धि महज 25 फीसदी ही रही.संकटग्रस्त इतिहास
2 अरब 20 करोड़ की आबादी वाले देश पाकिस्तान की 350 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है. पाकिस्तान शुरुआत से ही बाहरी ऋण खातों से संघर्ष करता आ रहा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 1958 से अब तक 20 बार आर्थिक पैकेज जारी कर उसे संकट से उबारा है. 1947 में भारत से विभाजन के बाद अस्तित्व में आने के सात सैन्य तख्तापलट, भारत के साथ युद्ध, इस्लामिक आतंकवाद, अफगानिस्तान से करोड़ों की संख्या में शरणार्थियों का आना और कुशासन ने दीर्घकालिक नीतियों को प्रभावित किया है. पाकिस्तान का औद्योगिक उत्पादन सीमित है और आयात का स्थान लेने वाली विकासपरक नीतियां बनाने में असफल रहा है. नतीजतन वह बाहरी झटकों के प्रति हद से ज्यादा संवेदनशील है और नतीजा सामने है.Forex Reserves Update: फिर घटा विदेशी मुद्रा भंडार, जानिए देश में कितना है गोल्ड रिजर्व?
कुछ सप्ताह पहले ही विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डॉलर के पार गया था.
10 जून, 2022 को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 4.599 अरब डॉलर घटकर 596.458 अरब डॉलर रह गया. वहीं, बीते सप्ताह . अधिक पढ़ें
- पीटीआई
- Last Updated : June 18, 2022, 07:38 IST
नई दिल्ली. देश के विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves/Forex Reserves) में फिर गिरावट आई है. 10 जून, 2022 को खत्म हुए सप्ताह में यह 4.599 अरब डॉलर घटकर 596.458 अरब डॉलर रह गया. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार इससे पिछले सप्ताह, विदेशी मुद्रा भंडार 30.6 करोड़ डॉलर घटकर 601.057 अरब डॉलर रह गया था.
दस जून को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का कारण फॉरेन करेंसी एसेट यानी एफसीए (Foreign Currency Assets) में आई गिरावट है. आंकड़ों के अनुसार समीक्षाधीन सप्ताह में एफसीए 4.535 अरब डॉलर घटकर 532.244 अरब डॉलर रह गयी. कुछ सप्ताह पहले विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डॉलर के पार गया था. 27 मई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 3.854 अरब डॉलर बढ़कर 601.363 अरब डॉलर पहुंच गया था.
गोल्ड रिजर्व भी घटा
डॉलर में अभिव्यक्त विदेशी मुद्रा भंडार में रखे जाने वाली एफसीए में यूरो, पौंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं में मूल्यवृद्धि अथवा मूल्यह्रास के प्रभावों को शामिल किया जाता है. आंकड़ों के अनुसार, बीते सप्ताह में स्वर्ण भंडार का मूल्य भी 10 लाख डॉलर की मामूली गिरावट के साथ 40.842 अरब डॉलर रह गया.एसडीआर भी घटा
समीक्षाधीन सप्ताह में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 2.3 करोड़ डॉलर घटकर 18.388 अरब डॉलर रह गया. आईएमएफ में रखे देश का मुद्रा भंडार भी चार करोड़ डॉलर घटकर 4.985 अरब डॉलर रह गया.शेयर बाजार में भी गिरावट
इस हफ्ते शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिली. निफ्टी इस हफ्ते अपने 52 सप्ताह के लो पर पहुंच गया. शुक्रवार को निफ्टी 15,293 के स्तर पर बंद हुआ. बीते लगभग 15 दिनों में निफ्टी 1000 अंकों की गिरावट देखने को मिली है. शेयर बाजारों में पिछले छह दिनों से जारी गिरावट के कारण निवेशकों को 18.17 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. वैश्विक स्तर पर कई केंद्रीय बैंकों की तरफ से ब्याज दरों में वृद्धि, कच्चे तेल की कीमतों में उछाल और विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की घरेलू शेयर बाजारों से लगातार पूंजी निकासी से स्थानीय शेयर बाजारों में पूरे सप्ताह गिरावट रही.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
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