वक्त की जरूरत है रुपये में व्यापार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य के मुकाबले मजबूत और स्थिर होगी भारतीय मुद्रा
रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि करनी होगी जिसके लिए भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।
[डा. सुरजीत सिंह]। हाल में जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। डालर के निरंतर मजबूत होने से महत्वपूर्ण मुद्राएं कमजोर पड़ने लगी हैं। विभिन्न देशों के विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगे हैं, जिसके चलते वैश्विक वृद्धि दर घट रही है। आर्थिक परिदृश्य बदलने से वैश्विक भू-राजनीति भी बदल रही है। भारत सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार करना प्रारंभ किया है कि इन बदलते वैश्विक हालात के लिए जिम्मेदार अमेरिकी डालर पर निर्भरता को कैसे कम किया जाए?
इस संदर्भ में आरबीआइ ने एक नई शुरुआत करते हुए यह घोषणा की कि निर्यातक एवं आयातक रुपये में भी व्यापार कर सकेंगे। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना एवं डालर में होने वाली व्यापार निर्भरता को कम करना है। रुपये में होने वाले पारस्परिक लेनदेन के लिए आरबीआइ ने एक प्रणाली विकसित की है। इससे निर्यात और आयात की कीमत और चालान सभी कुछ रुपये में ही होगा।
विश्व की बदलती आर्थिक परिस्थितियों में बहुत से देश न चाहते हुए भी अपना व्यापार डालर में करने को मजबूर हैं। भारत 86 प्रतिशत व्यापार डालर में करता है। भारत के आयात, निर्यात से सबसे लाभदायक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? ज्यादा होने के कारण अधिक डालर की आवश्यकता होती है। अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान भारत का कुल निर्यात 229.05 अरब डालर एवं आयात 378.53 अरब डालर का हुआ। रुपये-डालर की विनिमय दर को बनाए रखने के लिए आरबीआइ 50 अरब डालर से अधिक व्यय कर चुका है। भारत की तरह दुनिया का भी अधिकांश व्यापार डालर में ही होता है। विश्व के सभी देश डालर के सापेक्ष अपनी-अपनी विनिमय दर को स्थिर करने के प्रयासों में लगे हुए हैं। बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज की दर को बढ़ा दिया है, जिससे विश्व के धन का प्रवाह अमेरिका की तरफ होने लगा है। इससे डालर और मजबूत होता जा रहा है।
इन परिस्थितियों में डालर के दबदबे को कम करने के लिए भारत सरकार ने सही समय पर सही पहल की है। रुपये में व्यापार करने का फैसला ऐसे समय में आया है, जब दुनिया के अधिकतर देश न सिर्फ मुद्रा भंडार में कमी का सामना कर रहे हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निपटान में कठिनाइयों से भी जूझ रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भारत की यह व्यवस्था विनिमय दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के जोखिमों से भी सुरक्षा प्रदान करेगी। यह उन भारतीय निर्यातकों की समस्या को कम करेगी, जिनका भुगतान युद्ध के कारण अटका हुआ है। यह रूस और ईरान जैसे देश के साथ हमारे व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने में मददगार होगी, जिन पर अमेरिकी प्रतिबंध है। रुपये में व्यापार से विश्व भर में न सिर्फ इसकी स्वीकृति बढ़ेगी, बल्कि विश्व में भारत का अर्थिक स्तर भी बढ़ेगा।
विदेश मंत्रालय के सार्थक प्रयासों का ही नतीजा है कि अनेक देशों विशेष रूप से श्रीलंका, मालदीव, विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देश, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने भी रुपये में व्यापार करने में अपनी सहमति व्यक्त की है। भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए रूस सहर्ष तैयार है। रुपये-रूबल में व्यापार के बाद रुपया-रियाल एवं रुपया-टका में व्यापार की दिशा में कार्य प्रारंभ हो चुका है। यदि इन सभी देशों को किया जाने वाला भुगतान रुपये में होगा तो इसका सीधा लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा। श्रीलंका की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से वह भी भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए तैयार है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में रुपया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करेगा।
कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यह व्यवस्था उन देशों में ही सफल हो पाएगी, जहां आयात और निर्यात लगभग बराबर है। वे यह भी प्रश्न करते हैं कि यह व्यवस्था उन देशों में कैसे लागू होगी, जिन देशों के पास बैलेंस शेष रह जाएगा। भारत सरकार इसके लिए कई क्षेत्रीय समूहों जैसे ब्रिक्स के साथ एक रिजर्व मुद्रा की व्यवस्था बना सकती है, जिससे जुड़े हुए देश पारस्परिक रूप से आपसी मुद्राओं में व्यापार कर सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस व्यवस्था के सफल होते ही विश्व का आर्थिक खेल ही बदल जाएगा।
इस प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य किसी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के महत्व को कम करना नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपये को बेहतर बनाने की एक शुरुआत करना है। यह समय की मांग भी है कि भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार एक-दूसरे के लिए अधिक खुले विकल्प रखें एवं विभिन्न सबसे लाभदायक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? प्रकार सबसे लाभदायक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? के वित्तीय साधनों के संबंध में रुपये को अधिक उदार बनाएं। इसके लिए आवश्यक है कि रुपये के संदर्भ में एक मजबूत विदेशी मुद्रा बाजार बनाया जाए। बैंकिंग क्षेत्र की सुदृढ़ता के लिए आवश्यकतानुसार सुधार निरंतर जारी रहने चाहिए।
पिछली सदी के नौवें दशक में जब भारत एक बंद अर्थव्यवस्था थी, विदेशी मुद्रा दुर्लभ थी और डालर ‘भगवान’ था। बदलते समय के साथ रूस एवं चीन ने हमारे समक्ष उदाहरण पेश किया कि डालर के बिना भी अर्थव्यवस्था को चलाया जा सकता है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत और स्थिर बनेगा। रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में भी वृद्धि करनी होगी, जिसके लिए भारत को एक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी, जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।
रिजर्व बैंक शुरू कर रहा रुपये में ग्लोबल ट्रेड सेटलमेंट, कैसे काम करेगा यह सिस्टम और कितना होगा फायदा?
डॉलर के मुकाबले रुपया 79.60 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया है.
डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा में आ रही गिरावट और विदेशी मुद्रा भंडार पर बढ़ते दबाव से बचने के लिए आरबीआई ने नया ट्रेड . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : July 14, 2022, 13:17 IST
हाइलाइट्स
दुनिया के बाकी देश डॉलर, येन, यूरो और पाउंड में ही ग्लोबल ट्रेडिंग करते हैं.
रिजर्व बैंक का मकसद रुपये पर डॉलर व अन्य करेंसी का दबाव घटाना है.
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 10 महीने के आयात के लिए पर्याप्त है.
नई दिल्ली. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने ग्लोबल मार्केट में भारत की पहुंच बढ़ाने और ट्रेडिंग को आसान बनाने के लिए आयात-निर्यात का सेटलमेंट रुपये में कराने की बात कही है. यह सिस्टम किस तरह से काम करेगा और भारत को इसका क्या फायदा मिलेगा. कमोडिटी एक्सपर्ट इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा मूव बता रहे हैं.
कमोडिटी एक्सपर्ट अजय केडिया का कहना है कि अभी नेपाल-भूटान को छोड़कर दुनिया के बाकी देश डॉलर, येन, यूरो और पाउंड में ही ग्लोबल ट्रेडिंग करते हैं. आरबीआई के नई व्यवस्था शुरू करने के बाद रुपये में भी ट्रेडिंग का रास्ता खुल जाएगा. आरबीआई का कहना है कि इस सिस्टम के शुरू होने के बाद भारत के एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि दुनिया ने रुपये में दिलचस्पी दिखाई है.
क्या रूस से व्यापार बढ़ाने की है तैयारी
वैसे तो रिजर्व बैंक का मकसद रुपये पर डॉलर व अन्य करेंसी का दबाव घटाना है, जिसके लिए नया सिस्टम डेवलप किया जा रहा है, लेकिन कुछ सबसे लाभदायक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? एक्सपर्ट का कहना है कि इस कदम से रूस के साथ व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी. दरअसल, यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू होने के बाद से रूस पर कई प्रतिबंध लग चुके हैं और वह अपना रिजर्व डॉलर इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है. ऐसे में नया सिस्टम आने के बाद रूस से व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा ईरान सहित व्यापारिक प्रतिबंध झेल रहे अन्य देशों के साथ भी भारत अपना व्यापार बढ़ा सकेगा.
विदेशी मुद्रा भंडार पर बोझ कम होगा
रिजर्व बैंक का सबसे बड़ा मकसद विदेशी मुद्रा भंडार पर बोझ को घटाना है. आरबीआई के पास मौजूद करीब 590 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार वैसे तो 10 महीने के आयात के लिए पर्याप्त है, लेकिन अभी इसका इस्तेमाल रुपये पर बढ़ते दबाव को घटाने में हो रहा है. नया सिस्टम आने के बाद अगर ग्लोबल मार्केट सबसे लाभदायक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? में कोई देश हमसे भारतीय करेंसी में लेनदेन करता है तो इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम हो जाएगा. इतना ही नहीं ग्लोबल मार्केट में रुपये की स्वीकार्यता भी बढ़ जाएगी. तत्काल तो नहीं लेकिन धीरे-धीरे देश रुपये को स्वीकार कर लेंगे तो ग्लोबल मार्केट में यह डॉलर के मुकाबले खड़ा हो सकता है.
कैसे काम करेगा नया सिस्टम
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के सीईओ अजय सहाय का कहना है कि ग्लोबल मार्केट में रुपये में ट्रेड करने के लिए दूसरे देश को भी रुपये में पेमेंट लेने का सिस्टम बनाना होगा. आरबीआई के लिए कुछ भारतीय बैंकों को वेस्ट्रो अकाउंट खोलने की इजाजत देगा. ये बैंक दूसरे देशों की करेंसी को अपने पास रखेंगे. इसके तहत जब भारतीय कारोबारी निर्यात करेंगे तो वह अपने रेगुलर बैंक के जरिये वेस्ट्रो अकाउंट वाले बैंक को जानकारी भेजेगा. वेस्ट्रो खाते वाले बैंक से पैसा निर्यातक के रेगुलर बैंक खाते में ट्रांसफर कर दिया जाएगा.
इसी तरह, जब कोई कारोबार आयात करेगा तो वह इसका भुगतान अपने रेगुलर बैंक को करेगा, जहां से पैसा वेस्ट्रो खाते वाले बैंक में चला जाएगा. मुद्रा की कीमत दोनों देशों के फॉरेक्स के हिसाब से लगाई जाएगी.
ईरान के साथ शुरू किया था ऐसा सिस्टम
भारत ने इससे पहले ईरान के साथ व्यापार के लिए ऐसा ही सिस्टम विकसित किया था. तब ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते डॉलर में कारोबार ठप हो गया था. ईरान से तेल खरीद का भुगतान भी रुपये में किया गया था. हालांकि, 2019 में ईरान से तेल का आयात बंद होने के बाद यह खाता भी ठप हो गया.
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भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के प्रकार - types of forex market in india
भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के प्रकार - types of forex market in india
1. स्पॉट बाजार: यह बाजार वह है जहाँ विदेशी मुद्रा के खरीदने व बेचने के तय सौदे को, दो दिनों के भीतर पूरा किया जाता है। विदेशी मुद्रा की स्पॉट खरीद व विक्रय, स्पॉट बाजार का निर्माण करते हैं। जिस दर पर विदेशी सबसे लाभदायक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? मुद्रा खरीदी और बेची जाती है, उसे स्पाट विनिमय दर कहा जाता है। सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, स्पाट दर को मौजूदा विनिमय दर कहा जाता है।
2. वायदा बाजार: यह वह बाजार है जिसमे पहले से तय विनिमय दर को भविष्य की तिथि में विदेशी मुद्रा की खरीद व विक्रय किया जाता है। जब विदेशी मुद्रा के क्रेता और विक्रेता दोनों किसी सौदे में संबंधित होते हैं तब इस सौदे के 90 दिनों के भीतर यह लेनदेन किया जाता है। यह वायदा बाजार कहलाता है।
विनिमय दर प्रबंधन के प्रकार
नियत विनिमय दर (Fixed Exchange Rate):-
घरेलू और विदेशी मुद्राओं के बीच विनिमय दर एक देश की मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा तय किया जाता है। इसके तहत विनिमय दर में एक सीमा से अधिक उतार चढ़ाव की अनुमति नहीं होती है, इसे स्थिर विनिमय दर कहा जाता है।
आईएमएफ प्रणाली के तहत इसके सदस्य राष्ट्र के मौद्रिक प्राधिकरण अपनी मुद्रा का निश्चित मूल्य तय करता है जो एक आरक्षित मुद्रा सामान्यतः अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष होता है। इसे 'आंकी विनिमय दर (Par Value) कहा जाता है। हालांकि, सामान्य परिस्थितियों में इसमें उच्च्वाचन की ऊपरी और निचली सीमा प्रतिशत तक होती है।
नियत विनिमय दर प्रणाली अपनाने का मूल उद्देश्य विदेशी व्यापार और पूंजी आंदोलनों में स्थिरता सुनिश्चित करना है। नियत विनिमय दर प्रणाली के तहत सरकार पर सबसे लाभदायक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? विनिमय दर की स्थिरता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हो जाती है। इसे खत्म करने के लिए सरकार विदेशी मुद्रा को खरीदती व बेचती है।
विदेशी मुद्रा जब कमजोर होती है, तब सरकार इसे खरीद लेती है और जब यह मजबूत होती है। तब सरकार इसे बेच देती है। निजी तौर पर विदेशी मुद्रा की बिक्री व खरीद निलंबित रखी जाती है।
आधिकारिक विनिमय दर में कोई परिवर्तन देश की मौद्रिक प्राधिकरण व आईएमएफ के परामर्श के किया जाता है। हालांकि अधिकांश देशों ने दोहरी प्रणाली अपना ली है। सभी सरकारी लेनदेन के लिए एक स्थिर विनिमय दर और निजी लेनदेन के लिए एक बाजार दर तय होती है।
नियत विनिमय दर के पक्ष में तर्कः
सबसे पहले, यह अनिश्चितता की वजह से जोखिम को समाप्त करता है। बाजार में यह स्थिरता,
निश्चितता प्रदान करता है। दूसरा, यह, राष्ट्रों के बीच विदेशी पूंजी के निर्बाध प्रवाह के लिए एक प्रणाली बनाता है, साथ ही .
निवेश के रूप में यह निश्चित वापसी का आश्वासन देता है।
. तीसरा, यह विदेशी मुद्रा बाजार में सट्टा लेन-देन की संभावना को हटाता है। अंत में यह प्रतिस्पर्धी सबसे लाभदायक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? विनिमय मूल्यह्रास या मुद्राओं के अवमूल्यन की संभावना को कम कर देता है।
B- लचीली विनिमय दर (Flexible Exchange Rate) :-
जब विनिमय दर का निर्धारण, बाजार शक्तियों (मुद्रा की मांग व आपूर्ति द्वारा तय किया जाता
है, इसे लचीली विनिमय दर कहा जाता है। लचीली विनिमय दर के पक्षधर भी इसके पक्ष में समान रूप से मजबूत तर्क देते हैं। इस संबंध में
तर्क दिया जाता है कि लचीली विनिमय दर अस्थिरता, अनिश्चितता, जोखिम और सट्टा का कारण बनती
है। परन्तु इसके पक्षधर इस सभी आरोपों को खारिज करते हैं।
लचीली विनिमय दर के पक्ष में तर्कः
1. सबसे पहले, लचीली विनिमय दर के रूप में एक स्वायत्ता मिलती है घरेलू नीतियों के संबंध में यह अच्छा सौदा है। इसका घरेलू आर्थिक नीतियों के निर्माण में बहुत महत्व है।
2. लचीली विनिमय दर खुद समायोजित होती है और इसलिए सरकार पर इतना दबाव नहीं होता कि विनिमय दर को स्थिर करने के लिए पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखा जाए।
3. लचीली विनिमय दर एक सिद्धांत पर आधारित है, इसके तहत भविष्य में अनुमान का लाभ मिलता है। इसकी सबसे बड़ी खूबी स्वतः समायोजन की योग्यता है।
4. लचीली विनिमय दर विदेशी मुद्रा बाजार में मुद्रा की वास्तविक क्रय शक्ति का एक संकेतक के रूप में कार्य करता है।
अंत में कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि लचीली विनिमय दर का सबसे बड़ा दोष अनिश्चितता है। परन्तु उनका तर्क यह भी है कि लचीली विनिमय दर प्रणाली के तहत, अनिश्चितता की संभावना है उतनी ही जितनी स्थिर विनिमय दर के तहत।
विदेशी मुद्रा व्यापार पर नुकसान के सबसे लाभदायक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? बाद आपको क्या करना चाहिए?
एब्स्ट्रैक्ट:विदेशी मुद्रा व्यापार पर 0% तक के नुकसान को पूरी तरह से खत्म करने के लिए जोखिम प्रबंधन नहीं किया जाता है। हालांकि, इस प्रबंधन का उपयोग होने वाले लगातार नुकसान को कम करने के लिए किया जाता है।
विदेशी मुद्रा[ व्यापार पर नुकसान ऐसी चीजें हैं जिनसे हर व्यापारी बचना चाहता है। जैसा कि हमने अक्सर समझाया है, यह एक प्रकार का निवेश है जो बहुत जोखिम भरा है, हालांकि यह अभी भी प्रसिद्ध है क्योंकि यह लाभदायक है। कई नए निवेशक उभर रहे हैं, खासकर सहस्राब्दी पीढ़ी से। कारण यह है कि विदेशी मुद्रा कम समय में भी किसी को भी धनवान बना देती है।
यह वास्तव में एक निवेश के रूप में जाना जाता है जो शानदार लाभ प्रदान करता है, लेकिन यह मत भूलो कि इसमें सभी के लिए एक बड़ा जोखिम भी है। ऐसे में हम नुकसान की बात कर रहे हैं।
आपको पता होना चाहिए कि एक अच्छी रणनीति होना ही काफी नहीं है। एक व्यापारी, विशेष रूप से शुरुआती, को भी स्वामित्व वाले धन का प्रबंधन करने के लिए जोखिम प्रबंधन को लागू करने में सक्षम होना चाहिए।
विदेशी मुद्रा व्यापार पर 0% तक के नुकसान को पूरी तरह से खत्म करने के लिए जोखिम प्रबंधन नहीं किया जाता है। हालांकि, इस प्रबंधन का उपयोग होने वाले लगातार नुकसान को कम करने के लिए किया जाता है।
इस विषय की बात करें तो वास्तव में कई प्रकार के नुकसान होते हैं जो व्यापारी को जानना होता है। नीचे वे प्रकार हैं।
विवरण में, इस प्रकार के सामान्य नुकसान की व्याख्या एक प्रकार के रूप में की जाती है जो सांख्यिकीय रूप से होनी चाहिए। प्रत्येक ट्रेडिंग सिस्टम में, कई ट्रेडों के बाद हमेशा हानि दर या हानि का प्रतिशत होता है।
यह तब भी होगा जब आप एक योजना का पालन करते हुए लगातार और अनुशासित होते हैं। विदेशी मुद्रा व्यापार पर सामान्य नुकसान के लिए अक्सर एक जीत दर प्रणाली की अनुपस्थिति के कारण होता है।
दूसरे शब्दों में आप कह सकते हैं कि लाभ का प्रतिशत वास्तव में 100% की पूर्ण संख्या तक पहुँच जाता है वास्तव में असंभव है। कभी-कभी नहीं जीतना सामान्य है।
इस दूसरे प्रकार के लिए, इसे एक प्रकार के रूप में समझाया गया है जो आम तौर पर लालची प्रकृति के कारण अधिक व्यापार, बड़े लाभ के बाद उत्साह, या हारने की लकीर के बाद बदला लेने की भावना के कारण होता है।
ओवर ट्रेड शब्द का प्रयोग व्यापारियों के कार्यों का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो बहुत अधिक पदों को खोलते हैं। जबकि एक बड़ा लाभ प्राप्त करने के बाद उत्साह अक्सर व्यापारियों को बहुत अधिक आत्मविश्वास महसूस कराता है।
तो, यह गतिविधि मनोवैज्ञानिक पहलू से भी संबंधित है। इसीलिए; विदेशी मुद्रा व्यापार पर होने वाले नुकसान से दूर रहने के लिए, अपनी भावनाओं को ठीक से बनाए रखना सुनिश्चित करें।
कुछ पेशेवरों ने साझा किया कि वास्तव में ऐसी कई तरकीबें हैं जिनका पालन करके इस स्थिति को कम किया जा सकता है। वह क्या है? यहाँ स्पष्टीकरण दिया गया है।
योजना विदेशी मुद्रा और वस्तु व्यापार में आवश्यक घटकों में से एक है। एक योजना के साथ, आपके पास उचित दिशाएँ होती हैं, लक्ष्य होते हैं, और साथ ही अधिक अनुशासन भी होता है।
एक योजना पूर्ण नहीं है, आपको सफल होने की गारंटी देगा और विदेशी मुद्रा व्यापार पर किसी भी नुकसान का अनुभव नहीं होगा। लेकिन कम से कम, यह मूल्यांकन करने में सक्षम होगा कि कार्रवाई में क्या गलत है यदि यह विफल हो जाता है।
बहुत से लोग यह नहीं जानते कि विदेशी मुद्रा केवल बुद्धि की बात नहीं है,लेकिन यह भी कि मन को कैसे नियंत्रित किया जाए,इस मामले में भावनाएं हैं। नौसिखिए व्यापारियों द्वारा की जाने वाली सामान्य गलतियों में से एक भावनाओं के साथ व्यापार करना है। इस गतिविधि में नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की भावनाएं जुड़ी हुई हैं।
सबसे अच्छा विदेशी मुद्रा दलाल ढूँढना और उसमें शामिल होना मुनाफा हासिल करने के स्मार्ट तरीकों में से एक है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास हमेशा आपको और अधिक आरामदायक महसूस कराने के लिए अद्भुत सुविधाएं होती हैं।
उदाहरण है सलमामार्केट फॉरेक्स ब्रोकर-जहां यह आपको कई व्यापारिक उपकरणों से जोड़ने के लिए नवीनतम परिष्कृत तकनीक द्वारा समर्थित है। निकासी प्रणाली भी त्वरित है।
सलमामार्केट में शामिल हों,अभी के लिए उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर। अपने निवेश को दोगुना करने के लिए तैयार रहें और सलमामार्केट के साथ विदेशी मुद्रा व्यापार में होने वाले नुकसान से दूर रहें।
23 महीने के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार, 7.94 अरब डॉलर की बड़ी गिरावट
भारतीय रिजर्व बैंकी (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक, 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह के लिए भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7.941 बिलियन डॉलर घटकर 553.105 बिलियन डॉलर हो गया है।
विदेशी मुद्रा भंडार करीब दो साल के निचले स्तर पर पहुंचा (फाइल फोटो)
विदेशी मुद्रा भंडार में करीब दो साल में गिरावट हुई है। भारतीय रिजर्व बैंकी (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक, 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह के लिए भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7.941 बिलियन डॉलर घटकर 553.105 बिलियन डॉलर हो गया, जो करीब दो वर्षों में सबसे निचला स्तर पर आ चुका है। देश के विदेशी मुद्रा भंडार में यह 5वें साप्ताह के दौरान लगातार गिरावट है।
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में हाल के महीनों में तेजी से गिरावट आई है। ऐसा इस कारण, क्योंकि आरबीआई ने रुपए को तेजी से गिरने को बचाने के सबसे लाभदायक विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? लिए मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया था और कदम उठाए थे, जिसका असर सीधे तौर पर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा है। इससे पहले, आरबीआई के आंकड़ें के अनुसार, 26 अगस्त को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 3.007 अरब डॉलर और पिछले सप्ताह 6.687 अरब डॉलर घट गया था।
भारतीय रिजर्व बैंक के सप्ताहिक आंकडे़ं के अनुसार, विदेशी मुद्रा संपत्ति जो कि विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है, 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान 6.527 अरब डॉलर घटकर 492.117 अरब डॉलर हो गई थी। वहीं पिछले दो सप्ताह में विदेशी मुद्रा संपत्ति में क्रमश: 2.571 अरब डॉलर और 5.779 अरब डॉलर की गिरावट आई थी।
Astrology: दिसंबर में 3 ग्रह करेंगे गोचर, इन 4 राशि वालों का चमक सकता है भाग्य, करियर- कारोबार में सफलता के योग
Kapiva का दावा- 18000 फीट ऊंचाई वाले क्षेत्रों से 100% शुद्ध हिमालयी शिलाजीत लाते हैं हम, जानिए जबर्दस्त ताकत के लिए कैसे कारगर होता है यह हर्बल फार्मूला
अमेरिकी डॉलर में विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट दर्ज की की गई है। वहीं विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में यूरो, यूके के पाउंड स्टर्लिंग और जापानी येन जैसी गैर-डॉलर मुद्राओं में नुकसान और कुछ में लाभ हुआ है। वहीं 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान सोने के भंडार का प्राइज 1.339 अरब डॉलर घटकर 38.303 अरब डॉलर पर जा चुका है।
आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, इस गणना किए गए सप्ताह के दौरान इंटरनेशनल मुद्रा कोष में भारत के स्पेशल ड्राविंग राइट्स (एसडीआर) का प्राइज 50 मिलियन डॉलर घटकर 17.782 अरब डॉलर रह गया। वहीं 2 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में भारत की रिजर्व स्टेटस 24 मिलियन डॉलर घटकर 4.902 बिलियन डॉलर हो गई है।
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