नेटफ्लिक्स पर 'RRR' और 'सूर्यवंशी' बनीं साल 2022 की ट्रेडिंग फिल्में
OTT प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर साल 2022 में एसएस राजामौली की फिल्म 'RRR' और अक्षय कुमार की फिल्म 'सूर्यवंशी' को सबसे ज्यादा बार देखा गया है। दरअसल, नेटफ्लिक्स हर हफ्ते अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर 'इंडिया टॉप 10' की सूची जारी करता है। इन्हीं सूचियों का अध्ययन कर यह निकाला गया है कि साल 2022 में कौन-सी हिंदी फिल्म, वेब सीरीज और दक्षिण भारतीय फिल्म को दर्शकों द्वारा सबसे ज्यादा पसंद किया गया है। आइए जानते हैं।
'गंगूबाई काठियावाड़ी' और 'भूल भुलैया 2' का कमाल
अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में नेटफ्लिक्स पर 'RRR', 'गंगूबाई काठियावाड़ी', 'सूर्यवंशी' और 'भूल भुलैया' को सबसे ज्यादा पसंद किया गया है। लाइसेंस्ड फिल्म की कैटेगरी में 'RRR' और 'सूर्यवंशी' टॉप पर रहीं। दोनों ही फिल्में 20 हफ्तों तक इंडिया टॉप 10 की सूची में बनी रहीं। वहीं, 'गंगूबाई काठियावाड़ी' ने नौ हफ्तों तक और 'भूल भुलैया 2' ने 12 हफ्तों तक इंडिया टॉप 10 की सूची में जगह बनाई।
ओरिजनल फिल्मों की कैटेगरी में 'डार्लिंग्स' ने मारी बाजी
ओरिजनल फिल्मों की कैटेगरी में नेटफ्लिक्स की 'डार्लिंग्स' ने इंडिया टॉप 10 में जगह बनाई है। बता दें कि आलिया भट्ट इस फिल्म की निर्माता हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने ने इस फिल्म में अभिनय भी किया है। यह फिल्म लगातार आठ हफ्तों तक इंडिया टॉप 10 की सूची में ट्रेंड करती रही। नेटफ्लिक्स की ग्लोबल टॉप 10 की सूची में भी यह फिल्म गैर अंग्रेजी फिल्मों की कैटेगरी में चार हफ्तों तक टॉप पर रही।
क्या होती हैं ओरिजनल और लाइसेंस्ड फिल्में?
OTT प्लेटफॉर्म पर दो तरह की फिल्में स्ट्रीम होती हैं। एक ओरिजनल और दूसरी लाइसेंस्ड। ओरिजनल फिल्में वो होती हैं, जिन्हें OTT प्लेटफॉर्म खुद बनवाता है। वहीं लाइसेंस्ड फिल्में वो होती हैं, जिन्हें सिनेमाघरों में रिलीज करने के बाद स्ट्रीम किया जाता है।
इंडिया टॉप 10 की सूची में रहा इस वेब सीरीज का दबदबा
इंडिया टॉप 10 की सूची में इस बार 'द फेम गेम', 'ये काली काली आंखें' और 'शी2' ने जगह बनाई है। माधुरी दीक्षित की वेब सीरीज 'द फेम गेम' लगातार सात हफ्तों तक ट्रेंड करती रही। वेब सीरीज 'ये काली काली आंखें' इंडिया टॉप 10 की लिस्ट में आठ हफ्ते तक टिकी रही। वहीं, इम्तियाज अली की सेक्स क्राइम सीरीज 'शी 2' इंडिया टॉप 10 की लिस्ट में सात हफ्ते तक बनी रही।
दक्षिण भारत की इस फिल्म ने मारी बाजी
इंडिया टॉप 10 की सूची में इस बार मूल रूप से मलयालम भाषा में बनी फिल्मों का दबदबा रहा। दक्षिण भारत की फिल्म 'श्याम सिंहा रॉय' ने नौ हफ्तों तक इंडिया टॉप 10 की सूची में जगह बनाई है। 'मिन्नल मुरली' (मलयालम) इंडिया टॉप 10 की सूची में सात हफ्तों तक अपनी जगह बनाने में सफल रही। वहीं, 'CBI5: द ब्रेन' (मलयालम) नेटफ्लिक्स पर सबसे ज्यादा देखी जाने वाली तीसरी दक्षिण भारतीय फिल्म बन गई है।
RSS से जुड़ा किसान संगठन सरकार का विरोध क्यों कर रहा है: दिन भर, 19 दिसंबर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा किसान संगठन किन मुद्दों पर सरकार से ख़फ़ा है, भारतीय राजनीति में सावरकर की स्वीकार्यता कितनी बढ़ी है, कुछ सामानों पर इम्पोर्ट ड्यूटी क्यों बढ़ाना चाहती है सरकार और फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप के बड़े टेक अवेज़, सुनिए 'दिन भर' में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से.
कुमार केशव / Kumar Keshav
- 19 दिसंबर 2022,
- (अपडेटेड 19 दिसंबर 2022, 11:38 PM IST)
साल भर से कुछ ज़्यादा वक़्त हुआ है जब दिल्ली की सीमाओं पर कई किसान संगठन डेरा डाले हुए थे. सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के ख़िलाफ़. किसानों के लंबे आंदोलन के बाद सरकार को झुकना पड़ा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों क़ानून वापस लिए जाने की घोषणा कर दी. इसके बाद ये आंदोलन समाप्त हो गया था. इसके बाद भी बीच बीच में कुछ मांगों को लेकर किसान संगठनों का दिल्ली मार्च होता रहा है. आज आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ ने दिल्ली के रामलीला मैदान में गर्जना रैली का आयोजन किया.
GST मुक्त खेती की मांग कितनी सही
दावा किया गया कि देश के अलग-अलग हिस्सों से क़रीब 40 हज़ार किसान इस रैली में जुटे और केंद्र सरकार के सामने अपनी आवाज़ बुलंद की. तो आज किसानों की गर्जना रैली आयोजित करने के पीछे का मक़सद क्या था, क्या इन मांगों को लेकर सरकार से या सरकार के किसी मंत्री या प्रतिनिधि से पहले कोई बातचीत हुई है? इसके अलावा भारतीय किसान संघ की जो मांगें हैं, वो कितनी जायज और प्रैक्टिकल हैं, सुनिए 'दिन भर' की पहली ख़बर में.
कर्नाटक में सावरकर पर रार क्यों
भारतीय राजनीति में कई मुद्दे हैं जिनका ज़िक्र थोड़े-थोड़े वक्त के बाद होता रहता है और जब भी होता है तो एक हंगामा सा मच जाता है. ऐसा ही एक मुद्दा है सावरकर का.. किसी के लिए सावरकर वीर हैं तो किसी के लिए कॉन्ट्रोवर्शियल, क्योंकि उन्होंने अंग्रेज़ों से माफ़ी मांगी. इन दिनों फिर से उनका नाम चर्चा में है और इस बार विवाद हुआ है कर्नाटक विधानसभा में उनकी तस्वीर लगाने से.
हुआ यूं कि आज विधानसभा अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने विधानसभा में सावरकर समेत कई स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं की तस्वीरों को अनकवर किया. इनमें महात्मा गांधी, बसवन्ना, सुभाष चंद्र, डॉ अंबेडकर, सरदार पटेल और स्वामी विवेकानंद की तस्वीरों के अलावा सावरकर की तस्वीर भी थी, जिसे लेकर कांग्रेस ने विरोध किया.
राहुल गांधी ने भी पिछले दिनों कहा था कि इस देश में एक तरफ सावरकर और दूसरी ओर गांधी के विचारों की लड़ाई है. हालांकि बीजेपी ने इस हंगामे पर यही कहा कि कांग्रेस मिनट की ट्रेडिंग रणनीति को सावरकर की तस्वीर का स्वागत करना चाहिए, सियासत नहीं। तो सियासत और अदावत की इस जंग में ये समझने की कोशिश करते हैं कि भारतीय राजनीति में सावरकर की स्वीकार्यता कितनी है, क्योंकि बीजेपी बार-बार कांग्रेस को ये भी याद दिलाती है कि इंदिरा गांधी ने सावरकर का डाक टिकट जारी किया था, अब चाहे वो सावरकर के बारे में कुछ भी कहे. और पिछले कुछ सालों में सावरकर को किस तरह से पॉलिटिकल स्पेस मिला है? इंडियन फ्रीडम मूवमेंट में सावरकर कहां खड़े होते हैं और उन्हें कोई सरकार नायक की तरह पेश करे तो उसमें बुनियादी समस्याएं क्या हैं, सुनिए 'दिन भर' की दूसरी ख़बर में.
इम्पोर्ट होगा महंगा!
हाल ही में मिनिस्ट्री ऑफ़ फाइनेंस के हवाले से एक आंकड़ा सामने आया था. इसमें बताया गया कि अक्टूबर महीने में year-on-year भारत का एक्सपोर्ट 16 फीसदी से ज्यादा श्रिंक हुआ है. मतलब सिकुड़ा है, कम हुआ है. पिछले साल अक्टूबर में एक्सपोर्ट गुड्स की वैल्यू 35 बिलियन डॉलर से ज्यादा थी जो इस साल अक्टूबर में 30 बिलियन डॉलर से भी कम रह गई. ग्लोबल इकोनॉमी में आई सुस्ती और डिमांड की कमी को देखते हुए आगे भी स्थिति बहुत अच्छी रहेगी, ऐसा लगता नहीं है. अच्छा, इस दौरान इम्पोर्ट लगातार बढ़ने की वजह से ट्रेड डेफिसिट भी बढ़ा है. इस हालात से उबरने के लिए भारत सरकार ऐसे नॉन एसेंशियल प्रोडक्ट्स की लिस्ट तैयार कर रही है ताकि उन पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा कर व्यापार घाटे को कम किया जा सके.
अक्टूबर में ही सरकार ने प्लैटिनम पर इंपोर्ट ड्यूटी को 10.75% से बढ़ाकर की 15.4% कर दिया था जिससे ये संकेत मिले थे कि आने वाले समय में इसे दूसरे प्रोडक्ट्स पर भी लागू किया जा सकता है. 2022-23 के बजट में भी सरकार ने हेडफोन, स्मार्ट मीटर जैसी कई चीज़ो पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाई थी.
एक तर्क ये भी दिया जाता रहा है कि इंपोर्ट ड्यूटी को बढ़ाने का मकसद डोमेस्टिक इंडस्ट्री को प्रमोट करना है.आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे कि भारत में ग्लोबलाइजेशन के दौर से पहले 1991-92 में नॉन एग्रीकल्चर प्रोडक्ट पर इंपोर्ट ड्यूटी 150 फीसदी थी जो 2007-08 में घट कर दस फीसदी हो गयी लेकिन 2019-20 में वापस उछाल आया और इंपोर्ट ड्यूटी 17.6 फीसदी हो गयी, जिसके बाद से इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है. तो अब सवाल ये है कि कौन कौन से ऐसे प्रोडक्ट्स हैं जिनके इंपोर्ट ड्यूटी में बढ़ोतरी हो सकती है और पिछले कुछ सालों में जिन चीज़ों की इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाई गई क्या इससे डोमेस्टिक मैन्युफैक्चरिंग को बूस्ट मिला, सुनिए 'दिन भर' की तीसरी ख़बर में.
फुटबॉल के फ्यूचर स्टार
क़तर के लुसैल स्टेडियम में रविवार और सोमवार की दरम्यानी रात जो कहानी लिखी गई, वो किसी परी कथा से कम नहीं. मेसी की टीम अर्जेंटीना ने कल एक साँसें थाम लेने वाले मुक़ाबले में फ्रांस को शिकस्त देकर इतिहास रचा. खेल शुरू होने के 70-75 मिनट बाद मामला एकतरफा लग रहा था, लेकिन फ्रांस के स्टार फुटबॉलर किलियन एमबाप्पे ने एक के बाद एक गोल दागकर मुक़ाबले में जान फूंक दी. और फिर जो हुआ वो दुनिया ने देखा. पेनाल्टी शूटआउट में मैच का नतीजा निकला और अर्जेंटीना का वर्ल्ड कप जीतने का सपना 36 साल बाद पूरा हुआ.
इस बेहद रोमांचक मैच के साथ फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप 2022 का समापन भी हो गया. तो इस वर्ल्ड कप के बड़े टेकअवेज क्या रहे? कौन सी भ्रांतियां टूटीं और क्या नई बातें एस्टैब्लिश हुईं? कौन सी ऐसी टीमें हैं जिनमें इस गेम की महाशक्ति बनने की पोटेंशियल दिखती है और वो यंग प्लेयर्स जो अगले कुछ सालों में बड़े खिलाड़ी के तौर पर उभर सकते हैं, सुनिए 'दिन भर' की आख़िरी ख़बर में.
पाकिस्तान से भी खराब पड़ोसी चीन, भारत के अलावा इन 24 देशों से भी है सीमा विवाद
रूस के पूर्वी क्षेत्र में कई हेक्टेयर भूमि चीन अपनी बताता है। दोनों देशों के मिनट की ट्रेडिंग रणनीति बीच भूमि और द्वीप को लेकर साल 1860 से विवाद चल रहा है। रूस चार संधियों में कुल 100 से अधिक द्वीप चीन को सौंप चुका है।
चीन, भारत समेत दुनिया के 25 से अधिक देशों के साथ जमीनी और समुद्री सीमा साझा करता है। इनमें से 14 देश चीन के साथ भूमि सीमा से जुड़े हैं। काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (सीएफआर) और संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, चीन का अपने सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ द्वीप या जमीनी सीमा को लेकर विवाद चल रहा है। चीन जिन भी देशों से सीमा पर उलझ रहा है, उसके अपने आर्थिक और रणनीतिक मायने हैं जिनके जरिए वो एकाधिकार कायम करने की कोशिश करता है। आइए जानते हैं, आखिर चीन क्यों चुनिंदा देशों के साथ उलझता है?
चीन की सीमा पर उकसावे की रणनीति
भारत, रूस, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार, इंडोनेशिया, फिलीपींस, जापान, मंगोलिया, उत्तर कोरिया, वियतनाम समेत अन्य कई देशों के साथ चीन सीमा साझा करता है। ताइवान में अपना जोर दिखाने के लिए चीन विमानों से घुसपैठ करता है। हांगकांग और मकाऊ में भी अस्थिरता कामय करने के लिए चीन उकसावे का खेल खेलता है। अमेरिका का रक्षा विभाग यानी पेंटागन लगातार कहता रहा है कि चीन उकसावे की रणनीति से सीमा पर अशांति की स्थिति पैदा करता है।
रूस: 162 साल से दोनों देशों की बीच विवाद
रूस के पूर्वी क्षेत्र में कई हेक्टेयर भूमि चीन अपनी बताता है। दोनों देशों के बीच भूमि और द्वीप को लेकर साल 1860 से विवाद चल रहा है। रूस चार अलग-अलग तरह की संधियों में कुल 100 से अधिक द्वीप चीन को सौंप चुका है। इसके बावजूद चीन, रूस में बहने वाली कुछ नदियों के पानी को अपना बताता रहा है। चीन और रूस के बीच दुनिया की छठी सबसे बड़ी सीमा साइनो-रसियन बॉर्डर 4,209 किलोमीटर की है। इस पर दोनों के बीच 22 साल से विवाद है।
इंडोनेशिया: नतुना द्वीप को लेकर दोनों में विवाद
चीन और इंडोनेशिया के बीच नतुना द्वीप को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। इसके अलावा दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र में मछली पकड़ने पर भी दोनों में विवाद की स्थिति है। यह क्षेत्र तेल और गैस के लिहाज से महत्वपूर्ण है जहां से इंडोनेशिया हजारों करोड़ का कारोबार करता है। चीन ने वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र में कहा था कि इंडोनेशिया से कोई विवाद नहीं है। वहीं, इंडोनेशिया ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि चीन उसके क्षेत्र में लगातार दखल बढ़ा रहा है।
फिलीपींस: अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में हुई चीन की शिकायत
चीन, फिलीपींस के दो द्वीप- स्पार्टली और स्कारबोरोह को अपना बताता रहा है। वहीं, मनिला लगातार दोनों द्वीपों को अपना हिस्सा बताता आ रहा है। चीन द्वारा दोनों द्वीपों को अपना बताने पर फिलीपींस इसकी शिकायत अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में कर चुका है। नवंबर 2021 में चीन ने द्वीप पर तैनात दो नावों पर पानी की बौछार कर दी थी। इसके बाद मनिला ने चेतावनी दी थी कि अगर चीन अपनी मिनट की ट्रेडिंग रणनीति हरकतों से बाज नहीं आया तो समुद्र में सेना को उतारेगा।
जापान: सीमा विवाद को लेकर छह बार भिड़ंत
चीन, जापान के सेनकाकू, रायकुकु द्वीप को अपने कब्जे में लेने के लिए कई बार कोशिश कर चुका है। जापान के क्षेत्र में स्थित दक्षिणी चीन सागर के कुछ हिस्सों को चीन अपना बताता रहा है, जिसके कारण दोनों देशों में तनातनी की स्थिति रही है। जापान के रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार द्वीप और सीमा विवाद को लेकर अब तक छह बार- वर्ष 1884, 1895, 1972, 2011, 2013 और 2015 में हिंसक झड़प हो चुकी है।
ताइवान: 160 किलोमीटर दूर द्वीप पर चीन की नजर
दक्षिण-पूर्व चीन से ताइवान की दूरी करीब 160 किलोमीटर है। ताइवान पर अमेरिका पूरी तरह मेहरबान है। इसी का नतीजा है कि ड्रैगन उसे आंख दिखाता रहा है। चीन, ताइवान को अपना हिस्सा बताता रहता है। इसके लिए वह ताइवान की सीमा में नियमित समय पर लड़ाकू विमानों की घुसपैठ भी कराता है। ताइवान सरकार के आंकड़ों के अनुसार, चीन के लड़ाकू विमान 150 से अधिक बार उसकी सीमा में प्रवेश कर चुके हैं।
हर विवाद के पीछे चीन की एक रणनीति
बीजिंग में स्थित चीन की एक मुख्य इंटरनेट कंपनी सोहू ने अपने एक लेख में स्पष्ट किया था कि चीन का जिन भी देशों से सीमा विवाद चल रहा है, वो 2050 तक हल हो जाएगा। चीन ने सभी तरह के विवादों का हल पहले से तय कर लिया है। जिस भी द्वीप या सीमा को लेकर उसकी लड़ाई चल रही है उसे हर हाल में कब्जाने की कोशिश करेगा। अधिकतर विवादों का हल उसने जबरदस्ती अपना दखल बढ़ाकर उक्त क्षेत्र को अपने कब्जे में लेने की तैयारी के रूप में तय किया है।
किस देश में कहां कब्जा जमाने की तैयारी में चीन
1. रिपोर्ट में दावा था कि चीन 2025 तक ताइवान पर अपना कब्जा जमा लेगा।
2. फिलीपींस के स्पार्टली द्वीप पर वर्ष 2030 से पहले कब्जा कर लेगा।
3. वर्ष 2050 तक जापान से सेनकाकु द्वीप छीनने का लक्ष्य रखा है।
4. रूस के कब्जे से वर्ष 2050 तक अपनी जमीन वापस लेने का लक्ष्य तय किया है।
2013-14 से भारत का Number 1 Trade Partner था चीन, गलवान में खूनी झड़प के बाद तेजी से बढ़ा आयात
Glawan में खूनी झड़प के ठीक अगले महीने से चीन से आयात बढ़ा और लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत, चीन (India China) का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है।
Galwan Valley में हिंसक झड़प के बावजूद भारत का चीन से आयात बढ़ा है।
India China Clash: अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के तवांग सेक्टर में भारत और चीनी सैनिकों के बीच झड़प (Tawang Clash) के बाद एक बार फिर चीन से आयात (Import) पर बैन लगाने की मांग उठ रही है। साल 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद भी ऐसी ही मांग उठी थी, लेकिन आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि गलवान झड़प के बाद चीन से आयात में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई (India’s imports from China) है। आपको बता दें कि गलवान में हुई हिंसक झड़प (Galwan Clash) में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे।
भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है चीन
चीन (China), अमेरिका (America) के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर यानी व्यापारिक साझेदार है। साल 2020-21 के डाटा पर नजर डालें तो उस वित्तीय वर्ष में भारत और चीन का द्विपक्षीय ट्रेड 115.83 बिलियन डॉलर का था। जबकि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार इससे मजह थोड़ा सा उपर 119.48 बिलियन डॉलर था।
अब थोड़ा और पीछे चलते हैं। 20 साल पहले तक, साल 2001 से 2012 तक भारत, चीन का दसवें नंबर का व्यापारिक साझेदार था। इससे पहले 2000-2001 में 12वें नंबर, 1999 में 16वें नंबर और1998-99 में 18वें नंबर पर था। लेकिन 2002-2003 के बाद इसमें बढ़ोतरी हुई और दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ता गया। 2011-12 आते-आते चीन भारत के प्रमुख व्यापारिक सहयोगियों में से एक बन गया।
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2013-14 के बाद बना नंबर वन ट्रेडिंग पार्टनर (India China Trade Data)
साल 2013-14 में तो चीन, भारत का नंबर वन ट्रेडिंग पार्टनर था और 2017-18 तक इस पोजिशन पर बरकरार रहा। हालांकि 2018-19 और 2019-20 में अमेरिका, चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया। हालांकि 2020-21 में भारत, दोबारा चीन का नंबर वन ट्रेडिंग पार्टनर बना। साल 2021-22 के आंकड़ों पर नजर डालें तो अमेरिका और चीन के अलावा भारत के टॉप-10 व्यापारिक साझेदारों में यूएई, सऊदी अरब, इराक, सिंगापुर, हांगकांग, इंडोनेशिया, साउथ कोरिया और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।
चीन से आयात बढ़ा लेकिन निर्यात की कछुआ चाल
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 2021 की शुरुआत से ही चीन से आयात (Import) बहुत तेजी से ऊपर गया है। साल 2002 में भारत, चीन से कुल 2 बिलियन डॉलर का आयात करता था जो 2020-21 में बढ़कर 94.57 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। हालांकि इसी अवधि में भारत का चीन (India-China) को निर्यात बेहद धीमी गति से बढ़ा और महज एक बिलियन डॉलर से 21 बिलियन डॉलर तक पहुंच पाया। चीन से आयात में बेतहाशा वृद्धि की वजह से भारत का चीन से व्यापार घाटा भी 2001-02 के 1 बिलियन डॉलर के मुकाबले बढ़कर 73 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जो इस साल और बढ़ने की आशंका है।
गलवान में झड़प के बाद तेजी से बढ़ा आयात
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक चीन से व्यापार में बढ़ोतरी के पीछे सबसे बड़ी वजह हाल के वर्षों में पड़ोसी मुल्क से इंपोर्ट यानी आयात में बेतहाशा वृद्धि है। साल 2020 में जब लॉकडाउन खुला तो इसके ठीक बाद चीन से आयात में बढ़ोतरी होने लगी। जून में गलवान वैली में खूनी झड़प (Galwan Valley Clash) के ठीक अगले महीने जुलाई में भारत ने चीन से 5.58 बिलियन डॉलर का इंपोर्ट किया। उसके बाद यह लगातार बढ़ता गया और इस साल जुलाई में बढ़कर 10.24 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड था।
भारत चीन से क्या-क्या आयात करता मिनट की ट्रेडिंग रणनीति है? (What India buys from China)
साल 2021-22 के आंकड़ों के मुताबिक इस अवधि में भारत ने तमाम देशों से जितना आयात किया, उसका 15.42% अकेले चीन से आयात किया, जो करीब 94.57 बिलियन डॉलर के करीब था। भारत ने चीन से इलेक्ट्रिकल मशीनरी, इलेक्ट्रिक उपकरण, साउंड रिकॉर्डर, टेलीविजन स्क्रीन, टीवी के साउंड रिकॉर्डर और इससे जुड़े उपकरण, न्यूक्लियर रिएक्टर्स, ब्वॉयलर्स, मशीनरी और तमाम दूसरे उपकरण खरीदे। इसके अलावा ऑर्गेनिक केमिकल, प्लास्टिक और प्लास्टिक के तमाम सामान मिनट की ट्रेडिंग रणनीति और फर्टिलाइजर भी आयात किया। भारत ने चीन से जो सामान सर्वाधिक आयात किया उसमें लैपटॉप और पॉमटॉप नंबर एक पर हैं। इसके बाद इसके बाद लिथियम आयन बैटरी, सोलर सेल, और यूरिया टॉप 5 में शामिल हैं।
भारत ने चीन को क्या निर्यात किया? (What China buys from India)
दूसरी तरफ अगर 2022 के भारत के निर्यात आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत ने चीन को कुल 21.25 बिलियन डॉलर का निर्यात किया, जो कुल निर्यात 422 बिलियन का महज 5% था। भारत ने चीन को ऑर्गेनिक केमिकल, मिनरल, मिनरल ऑयल, मिनरल वैक्सिंग, लोहा और स्टील, एल्मुनियम, कॉटन जैसी चीजें निर्यात की।
Budget 2023 : ग्रोथ के लिए खर्च बढ़ाने पर जोर देगी सरकार, बजट पर वित्त मंत्री सीतारमण का बड़ा बयान
Budget 2023 to Push Growth: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि अगले बजट में सरकार आर्थिक विकास दर बढ़ाने के लिए सार्वजनिक खर्च में इजाफा करने पर जोर देगी.
निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2023 को वित्त मंत्री के तौर पर लगातार पांचवीं बार केंद्रीय बजट पेश करेंगी. (Photo : ANI)
FM Sitharaman on Budget 2023 : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश के अगले बजट में सरकार की संभावित रणनीति के बारे में एक अहम बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार के अगले बजट में आर्थिक विकास को रफ्तार देने के लिए सार्वजनिक व्यय यानी सरकारी खर्च में वृद्धि करने पर जोर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि इस मामले में मोदी सरकार के अगले बजट का मिजाज या रुझान भी वैसा ही रहेगा, जैसा पिछले सालों में रहा है. वित्त मंत्री ने ये बातें दिल्ली में उद्योग संघ फिक्की (FICCI) के एक कार्यक्रम में कहीं.
पिछले बजट में 35% बढ़ा था कैपेक्स
निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2023 को वित्त मंत्री के तौर पर लगातार पांचवीं बार केंद्रीय बजट पेश करेंगी. उन्होंने आने वाले बजट में भी पिछले बजट की स्पिरिट को ही फॉलो करने की जो बात कही है, वो इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि 2022-23 के बजट में उन्होंने पूंजीगत खर्च या कैपेक्स (capital expenditure or Capex) में भारी इजाफा किया था. उस बजट में अर्थव्यवस्था को कोविड-19 महामारी के असर से उबारने और डिमांड बढ़ाने की कोशिश के तहत कैपेक्स को 5.5 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 7.5 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया था. यानी एक साल में ही उन्होंने कैपेक्स में 35.4 फीसदी का इजाफा किया था.
वित्त मंत्री ने कहा, “हम देश का अगला बजट पेश करने की तैयारी कर रहे हैं. यह बजट भी हमारी उसी भावना को आगे बढ़ाएगा जो पिछले बजटों में रही है. हम एक मिसाल पेश करने जा रहे हैं, जिसे हमने पहले भी करके दिखाया है, लेकिन अब उसे और आगे बढ़ाएंगे, जिससे भारत का अगले 25 वर्षों का भविष्य निर्धारित होगा.”
Petrol and Diesel Price Today: पेट्रोल और डीजल के लेटेस्ट रेट जारी, क्या तेल पर लगने वाले टैक्स में कटौती करेंगे राज्य?
Petrol and Diesel Price Today: क्रूड साल के हाई से 45% सस्ता, पेट्रोल-डीजल के भी जारी हुए रेट, कहां हुआ बदलाव?
Petrol and Diesel Price Today: क्रूड में तेजी, भाव 82 डॉलर प्रति बैरल के पार, पेट्रोल और डीजल के क्या हैं लेटेस्ट रेट
2024 लोकसभा चुनाव से पहले आखिरी पूर्ण बजट
निर्मला सीतारमण का अगला बजट अप्रैल-मई 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार का आखिरी पूर्ण बजट (last full budget) होगा. जाहिर है, इस बजट में सरकार उन मसलों पर अपनी तरफ मिनट की ट्रेडिंग रणनीति से कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी, जो आर्थिक मोर्चे पर देश के लोगों को प्रभावित कर सकते हैं. इस लिहाज से आगामी बजट में महंगाई पर काबू पाने, डिमांड और रोजगार में इजाफा करने और ग्रोथ रेट बढ़ाने की चुनौती सरकार के सामने रहेगी.
महंगाई, विकास दर में बैलेंस बनाने की चुनौती
सरकार के सामने बड़ी चुनौती यह है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान देश की जीडीपी विकास दर कम हुई है. रिजर्व बैंक समेत कई संस्थान मौजूदा वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी विकास दर में गिरावट के अनुमान जाहिर कर चुके हैं. आरबीआई (RBI) के मुताबिक 2022-23 के पूरे वित्त वर्ष के दौरान देश की जीडीपी विकास दर 6.8 फीसदी रहेगी. लेकिन तीसरी तिमाही में यह ग्रोथ रेट 4.4 रही, जो चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च 2023) में और घटकर 4.2 फीसदी रह जाने के आसार हैं. ग्रोथ रेट घटने के बावजूद महंगाई पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में बढ़ोतरी के रास्ते पर चलना पड़ रहा है. महंगाई घटाने और ग्रोथ रेट बढ़ाने के बीच नाजुक संतुलन बनाना किसी भी सरकार या केंद्रीय बैंक के लिए आसान काम नहीं है.
भारत की स्थिति दुनिया के ज्यादातर बड़े देशों से बेहतर
इन मुश्किलों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति दुनिया के ज्यादातर बड़े देशों के मुकाबले बेहतर है. हालांकि अंतराष्ट्रीय स्तर पर महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला जारी रहने और 2023 में आर्थिक माहौल और बिगड़ने की आशंकाएं इस चुनौती को बढ़ा रही हैं. ऐसे में सबकी नजरें इस बात पर रहेंगी कि वित्त मंत्री अपने अगले बजट में इन हालात से निपटने का कौन सा रोडमैप देश के सामने पेश करती हैं.
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