इसी तरह से कंपनियों के आकार के आधार पर बीएसई स्माल कैप (BSE Small Cap) व बीएसई मिड कैप (BSE Mid Cap) जैसे इंडेक्स बने हैं। सेक्टर के आधार पर पर भी Nifty Bank या Nifty Pharma जैसे इंडेक्स होते हैं। बॉन्ड पर आधारित इंडेक्स जैसे Bharat bond index में भी निवेशक पैसा लगा सकते हैं।
Debt Fund- डेट फंड
क्या होता है डेट फंड?
Debt Fund: डेट फंड एक निवेश पूल, जैसेकि म्युचुअल फंड या एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड होता है जिसके मूलभूत संग्रह में मुख्य रूप से फिक्स्ड इनकम निवेश होते हैं। डेट फंड अल्प अवधि या दीर्घ अवधि बॉन्डों, सिक्योरिटाइज्ड उत्पादों, मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स या फ्लोटिंग रेट डेट में निवेश कर सकता है। औसतन डेट फंडों पर फी रेशियो इक्विटी फंडों की तुलना में कम होते हैं क्योंकि कुल प्रबंधन लागतें अंदरूनी रूप से कम होती हैं। अक्सर क्रेडिट फंड या फिक्स्ड इनकम फंडों के रूप में संदर्भित डेट फंड, फिक्स्ड इनकम एसेट वर्ग के तहत आते हैं। पारंपरिक रूप से इन कम जोखिम वाले व्हीकल्स की खोज वैसे निवेशक करते हैं जो कैपिटल को संरक्षित करना चाहते हैं या निम्न जोखिम इनकम डिस्ट्रीब्यूशन अर्जित करना चाहते हैं। डेट भारत में इंडेक्स फंड में निवेश क्यों करें? फंड ऑप्शंस में इच्छुक निवेशक निष्क्रिय और सक्रिय उत्पादों के बीच चयन कर सकते हैं।
Stock Market Tips : पूंजी बाजार जैसा रिटर्न चाहते हैं तो Index fund में करें निवेश, यहां कम रहता है जोखिम
Stock Market Tips ईटीएफ इंडेक्स फंड में निवेश करने के लिए निवेशक के पास डीमेट अकाउंट (Demat account) होना अनिवार्य है। जब बाजार में काफी उतार चढ़ाव होता है तब ईटीएफ में निवेश करने व बेचने के अवसर तलाशे जा सकते हैं।
नई दिल्ली, पंकज मठपाल। शेयर मार्केट (Share Market) में निवेश करना हैं, लेकिन जानकारी सीमित है तो क्या हुआ, म्यूच्यूअल फण्ड हैं ना। लेकिन कई बार निवेशकों की एक शिकायत रहती है कि एक वक़्त पर शेयर बाजार का प्रदर्शन तो अच्छा रहा, लेकिन जिस फण्ड में उन्होंने निवेश किया, उसने कुछ खास प्रदर्शन नहीं दिखाया। यह इसलिए होता है, क्योंकि अधिकांश म्यूच्यूअल फण्ड स्कीम (Mutual fund scheme) का पोर्टफोलियो फण्ड मैनेजर बड़ी सक्रियता से बनाते हैं और उस पोर्टफोलियो में कौन से शेयर रखने हैं, कब खरीदने हैं और कब बेचने हैं यह सब फण्ड मैनेजर ही तय करते हैं। इसलिए इस तरह के फंड्स को एक्टिवली मैनेज्ड फण्ड कहते हैं।
निवेश के विकल्प
इस स्कीम में निवेशकों को पीएसयू बॉन्ड में निवेश करने का विकल्प तो है ही साथ ही एसडीएल इंडेक्स फंड और जीसेक इंडेक्स फंड में भी निवेश करने का विकल्प मिलता है।
विशेषज्ञ क्रेडेंस वेल्थ एडवरटाइजर के संस्थापक कीर्तन शाह का मानना है कि इस स्कीम में लंबी अवधि के निवेश से बचना चाहिए। उनके अनुसार ‘यील्ड में केवल 0.1% या 0.2% अधिक यील्ड ही प्राप्त होगा। इसलिए लंबी अवधि के मैच्योरिटी फंड का विकल्प चुनने से बचना चाहिए। हो सकता है लंबी अवधि के निवेश के कारण कुछ अच्छे मौके हाथ से छूट जाएँ’।
कौन सा विकल्प बेहतर?
जानकारों की राय है कि निवेशक को अपनी आवश्यकता के अनुसार पहले सही मैच्योरिटी वाले फंड को चिन्हित करना चाहिए। उन्हें खुद अपने समय की सीमा निर्धारित करनी चाहिए। इसका मतलब है कि यदि निवेशक को 3 या 5 सालों बाद पैसे की जरूरत है तो निवेशक दो अलग-अलग टारगेट मैच्योरिटी फंड में अपना पैसा विभाजित करके निवेश कर सकते हैं। प्लानरूपी इन्वेस्टमेंट सर्विसेज के संस्थापक अमोल जोशी ने सलाह दी है कि ‘निवेश को उस टीएमएफ में निवेश करना चाहिए जो उनकी आवश्यकता के समय मैच्योर होता हो।’
Target Maturity Funds: टारगेट मैच्योरिटी फंड को भारत में सबसे पहले 2019 में लॉन्च किया गया था। ये वे फंड हैं जो अपने शानदार रिटर्न, बेहतर लिक्विडिटी और कम नुकसान की संभावना के लिए जाने जाते हैं। यही कारण है कि एसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ इस क्षेत्र का हिस्सा बनने के लिए खासी उत्सुक नजर आ रही हैं। दैनिक समाचार पत्र द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार फिलहाल हर एक बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनी एक टारगेट मैच्योरिटी फंड पेश करने में लगी हुई है। इस फंड में निवेश करने के लिए आपको कुछ महत्त्वपूर्ण टिप्स देने जा रहे हैं।
2019 में आरंभ
भारत के घरेलू शेयर बाजार के निवेशकों को इनका पहला परिचय 2019 में हुआ था। तब बॉन्ड ईटीएफ 2023 और 2030 इस प्रकार दो शृंखलाएँ लॉन्च की गई थीं। वर्ष 2020 में दो एडिशनल फंड भारत बॉन्ड ईटीएफ शृंखलाएँ 2025 और 2031 पेश की गई थीं। डेट फंड में निवेश करने वालों के लिए एक अच्छी क्रेडिट क्वालिटी का पोर्टफोलियो प्रस्तुत किया गया था।
इन इन्वेस्टमेंट स्कीम्स को AAA का रेटिंग दिया गया था और ये निवेश की दृष्टि से काफी सुरक्षित हैं। इस स्कीम में पोर्टफोलियो की पारदर्शिता पर ज़ोर दिया गया है और इसमें मैच्योरिटी पूर्व निर्धारित होने के कारण रिटर्न अनुमान लगाना पहले से आसान हो गया है। दूसरी बड़ी बात है कि इसमें ब्याज की दर के बारे में जोखिम बहुत कम हो गया है। निवेशक के लिए किसी भी समय अपनी निवेश की गई रकम की निकासी करना बहुत ही आसान है।
इंडेक्स से मिलते रिटर्न
जिसके अनुसार ’10 साल की अवधि में 91 लार्ज फंडों के एक अध्ययन से पता चलता है कि परिसंपत्ति आवंटन के कारण फंडों के निवेश पर लगभग 94 प्रतिशत रिटर्न बदलते रहते है।’ इस अध्ययन की एक बार फिर पुष्टि 1991 में की गई।
ये सभी सलाह रणनीतिक परिसंपत्ति आवंटन के साथ शुरू होती है और भारत में इंडेक्स फंड में निवेश क्यों करें? फिर इनमें ही सूझ-बूझ के साथ परिवर्तन करना चाहिए। इसलिए पोर्टफोलियो का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से अलग-अलग क्षेत्रों में निवेशित होना चाहिए। और इंडेक्स फंडों में कम खर्च के साथ इस मूल पोर्टफोलियो को बनाया जा सकता है।
अभी तक भारत में ऐसे ही इंडेक्स फंड हैं, जो बड़ी कंपनियों के सूचकांक जैसे सेंसेक्स भारत में इंडेक्स फंड में निवेश क्यों करें? और निफ्टी का ही प्रदर्शन दिखाते हैं। कुछ क्षेत्रीय इंडेक्स फंड हैं और एक फंड है जो निफ्टी जूनियर का प्रदर्शन दिखाता है। कई फंड ओपन-एंड फंड के रूप में मौजूद हैं, जिन्हें म्युचुअल फंड कंपनियों से खरीदा जा सकता है।
इंडेक्स फंड और ETF में निवेश के वक्त Tracking Error देखना क्यों है जरूरी?
- Khushboo Tiwari
- Publish Date - July 1, 2021 / 04:45 PM IST
बुधवार देर रात हाल में प्रचलन में आए क्लबहाउस पर एक चर्चा के दौरान SBI म्यूचुअल फंड हाउस के फंड मैनेजर श्रीनिवास जैन ने शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड में निवेश को लेकर कहा कि निवेशक अब ETF में निवेश से पहले सिर्फ एक्सपेंस रेश्यो नहीं, ट्रैकिंग एरर भी देखते हैं. बल्कि, अब वे ट्रैकिंग एरर पर ज्यादा तवज्जो देते हैं. इस एक वाक्य में आपके लिए तीन टेक्निकल टर्म हमने ढकेल दिए हैं – ETF, एक्सपेंस रेश्यो और ट्रैकिंग एरर. इन सभी को आपको विस्तार से समझाते हैं.
ट्रैकिंग एरर
इंडेक्स फंड या ETF में एक तय बेंचमार्क के आधार पर निवेश होता है. इस बेंचमार्क का रिटर्न और फंड के रिटर्न से ज्यादा होने पर दोनों के बीच का जो फर्क ही ट्रैकिंग एरर माना जाता है. फंड किसी भी ETF या इंडेक्स फंड का लक्ष्य होता है कि वे शेयर बाजार जैसे ही रिटर्न दे. अगर फंड ने बेंचमार्क जैसे रिटर्न नहीं दिए, यानी ट्रैकिंग एरर ज्यादा है तो फंड अपने लक्ष्य में विफल हो रहा है.
ये फर्क कई कारणों से आ सकता है. पहला ये कि, इंडेक्स में शेयरों का कंपोजिशन बदलने के बाद फंड मैनेजर को यह बदलाव करने में जो समय लगा उससे आया ट्रैकिंग एरेर. वहीं, दूसरा है रिडेंप्शन की वजह से. कई बार फंड्स में बड़े स्तर पर रिडेंप्शन देखने को मिलता है. जब तक फंड में आने वाला निवेश, जाने वाली रकम से ज्यादा है तब तक दिक्कत नहींं होती. लेकिन, निकासी ज्यादा होने पर फंड मैनेजर को कुछ सिक्योरिटीज बेचकर इसका सेटलमेंट करना पड़ता है. इससे कुछ असर दिख सकता है.
क्या है एक्सपेंस रेश्यो?
एसेट मैनेजमेंट कंपनी म्यूचुअल फंड के ट्रांसफर, लीगल, ऑडिटिंग जैसे खर्च भी उठाती है. इसके अलावा वह फंड डिस्ट्रीब्यूशन और मार्केटिंग का भी खर्च उठाती है.
ये सभी खर्च म्यूचुअल फंड की यूनिट खरीदने वाले निवेशकों से ही वसूले जाते हैं. ऐसी सभी खर्च को निकालने के बाद ही म्यूचुअल फंड स्कीम की नेट एसेट वैल्यू निकाली जाती है.
एक्सपेंस रेशियो एक अनुपात है जो म्यूचुअल फंड के प्रबंधन पर आने वाले खर्च को प्रति यूनिट के रूप में बताता है. किसी म्यूचुअल फंड का एक्सपेंस रेशियो निकालने के लिए उसके कुल एसेट अंडर मैनेजमेंट में कुल खर्च से भाग दिया जाता है.
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