स्टॉक्स को बाजार नियामक सेबी द्वारा तय मानकों के आधार पर ही सेग्मेंट में शामिल करने का फैसला लिया गया है.

क्या होता है F&O Ban?

फ्यूचर्स एंड ऑप्शन्स में पैसा लगाने से पहले आपको F&O ban के बारे में जरूर पता होना चाहिए. कई बार स्टॉक एक्सचेंज F&O ban लगाते हैं. इसका मतलब ये है कि जिस स्टॉक को F&O ban में रखा गया है, उसमें कुछ समय के लिए नई और फ्रेश पॉजिशन की मंजूरी नहीं होती, लेकिन अगर आपके पास वो स्टॉक है तो आप उस स्टॉक फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? को सेल करके अपनी पोजिशन कम कर सकते हैं.

F&O Stocks: HAL समेत 10 स्टॉक्स की फ्यूचर एंड ऑप्शंस सेग्मेंट में होगी एंट्री, 27 अगस्त से ट्रेडिंग की शुरुआत

F&O Stocks: एनएसई के मुताबिक मार्केट लॉट की जानकारी इन स्टॉक्स की F&O segment में एंट्री के एक दिन पहले उपलब्ध होगी.

F&O Stocks: HAL समेत 10 स्टॉक्स की फ्यूचर एंड ऑप्शंस सेग्मेंट में होगी एंट्री, 27 अगस्त से ट्रेडिंग की शुरुआत

स्टॉक्स को बाजार नियामक सेबी द्वारा तय मानकों के आधार पर ही सेग्मेंट में शामिल करने का फैसला लिया गया है.

F&O Stocks: अगर आप Futures and Options (F&O) segment में ट्रेडिंग करते हैं तो 27 अगस्त से 10 और विकल्प उपलब्ध हो जाएंगे. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के मुताबिक 27 अगस्त से इस सेग्मेंट में 10 और स्टॉक्स की फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? ट्रेडिंग शुरू हो जाएगी. इसमें डिक्सॉन टेक्नोलॉजीज, कैन फाइनेंस होम्स, इंडियामार्ट, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL), पॉलीकैब इंडिया, इप्का लैब, ओरेकल फाइनेंशियल, सिंजीन इंटरनेशनल, इंडियन एनर्जी एक्सचेंज और एमसीएक्स शामिल हैं. एनएसई के मुताबिक मार्केट लॉट की जानकारी इन स्टॉक्स की F&O segment में एंट्री के एक दिन पहले उपलब्ध होगी. इन स्टॉक्स को बाजार नियामक सेबी द्वारा तय मानकों के आधार पर ही सेग्मेंट में शामिल करने का फैसला लिया गया है.

F&O में शामिल होने के लिए ये हैं मानक

  • रोलिंग कैलकुलेशन के आधार पर पिछले छह महीनों में डेली बैसिस पर औसतन मार्केट कैप और औसतन डेली ट्रेडेड वैल्यू के आधार पर टॉप 500 स्टॉक्स में शामिल होना चाहिए.
  • पिछले छह महीनों में स्टॉक का मीडियन क्वार्टर सिग्मा ऑर्डर साइज 25 लाख रुपये से अधिक होना चाहिए. मीडियन क्वार्टर सिग्मा का मतलब है कि ऑर्डर साइज कम से कम इतना होना चाहिए कि इससे स्टॉक के प्राइस पर असर पड़ सके. इस क्राइटेरिया को लेकर सेबी की मंजूरी लेनी होती है.
  • रोलिंग बेसिस पर स्टॉक की मार्केट वाइड पोजिशन लिमिट 500 करोड़ रुपये से अधिक होनी चाहिए. इसके तहत ये देखा जाता है कि स्टॉक सक्रिय रूप से ट्रेड हो रहा है या सिर्फ कुछ ही लोगों के पास सीमित है.
  • सेबी के मुताबिक अगर लगातार तीन महीनों तक एलिजिबिलिटी शर्तें नहीं पूरी होती हैं फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? तो उस सिक्योरिटी के नए मासिक कांट्रैक्ट नहीं जारी होंगे. हालांकि जो वर्तमान कांट्रैक्ट हैं और एक्सपायर नही हुए हैं, उन्हें एक्सपायरी तक ट्रेडिंग की मंजूरी रहेगी. इसके अलावा चालू कांट्रैक्ट महीने में फ्रेश स्ट्राइक्स को इंट्रोड्यूस किया जा सकता है.

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फ्चूयर और ऑप्शंस कांट्रैक्टस क्या हैं?

  • फ्यूचर कांट्रैक्ट में दो पार्टियों के बीच एक फ्यूचर डेट पर एक प्राइस में सिक्योरिटीज को बेचने या खरीदने के लिए कांट्रैक्ट होता है. इस प्राइस का निर्धारण कांट्रैक्ट के समय ही हो जाता है. यह कांट्रैक्ट बीएसई या एनएसई के जरिए होता है. वहीं दूसरी तरफ ऑप्शंस कांट्रैक्ट में एक अंडरलाइंग एसेट को किसी खास दिन या प्राइस पर बिक्री या खरीदने के राइट्स मिलते हैं और इसमें कोई ऑब्लिगेशन नहीं होता है.
  • फ्यूचर कांट्रैक्ट्स का अधिकतम तीन महीनों का ट्रेडिंग साइकिल होता है, जिसमें नियर (Near), नेक्स्ट (Next) और फार (Far) मंथ हैं. नए कांट्रैक्ट नियर मंथ कांट्रैक्ट्स के एक्सपायरी के बाद आते हैं. किसी भी कारोबारी दिन तीनों कांट्रैक्ट उपलब्ध रहते हैं. ऑप्शंस कांट्रैक्ट्स का भी तीन महीनों का साइकिल होता है.
  • F&O contracts तीसरे महीने के अंतिम गुरुवार को समाप्त होते हैं और अगर इस दिन छुट्टी पड़ती है तो उसके एक कारोबारी दिन पहले यह कांट्रैक्ट एक्सपायर होगा.
  • निफ्टी50 कांट्रैक्ट्स के लिए लॉट साइज 50 है. इसके अलावा अन्य स्टॉक्स का लॉट साइज 40 है.
    (सोर्स: ब्रोकरेज एंड रिसर्च फर्म एंजेल वन)

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फ़्यूचर्स और ऑप्शन्स के बीच अंतर

फ़्यूचर्स और ऑप्शंस बायर और सेलर के बीच, भविष्य में, पहले से तय मूल्य पर, स्टॉक एसेट के व्यापार के लिए साइंड कॉन्ट्रैक्ट्स होते हैं। इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट्स, पहले से ही तय मूल्य को लॉक करके, स्टॉक मार्केट ट्रेडिंग में शामिल बाजार रिस्क्स को हेज करने की कोशिश करते हैं।

शेयर बाजार में फ़्यूचर्स और ऑप्शंस ऐसे कॉन्ट्रैक्ट्स हैं जो एक अंडरलाइंग एसेट से अपनी कीमत प्राप्त (डीराइव) करते हैं, जैसे शेयर, स्टॉक मार्केट इंडेक्स, कमोडिटी, ईटीएफ, और बहुत कुछ ।

डीराइवड वैल्यू क्या है ? सरल भाषा में बोला जाये तो किसी एसेट के वज़ह से मिलने वाला कीमत को डीराइवड वैल्यू कहा जा सकता है।

फ़्यूचर्स और ऑप्शंस – इनके बीच में क्या अंतर हैं ?

फ्यूचर एंड ऑप्शंस के बीच अंतर, दायित्वों (ओब्लिगेशंस), रिस्क, एडवांस पेमेंट और कॉन्ट्रैक्ट एक्सेक्यूशन कब किया जा सकता है, इन सब पर केंद्रित है ।

दायित्वों (ओब्लिगेशंस)

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट दो पक्षों के बीच भविष्य में एक निश्चित समय पर एक निश्चित कीमत पर संपत्ति खरीदने या बेचने का एक समझौता है। यहां, खरीदार पहले से तय की गयी भविष्य की तारीख पर संपत्ति खरीदने के लिए बाध्य (ओबलाईज) है।

एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट खरीदार को एक निश्चित कीमत पर संपत्ति खरीदने का अधिकार देता है। हालांकि, खरीदने के लिए खरीदार की ओर से कोई दायित्व (ऑब्लिगेशन) नहीं है। मगर फिर भी, अगर खरीदार संपत्ति खरीदना चाहे, तो विक्रेता इसे बेचने के लिए बाध्य है।

जोखिम (रिस्क)

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट होल्डर भविष्य की तारीख में खरीदने के लिए बाध्य है, भले ही उनके लिए ये घाटे का सौदा हो। मान लीजिए कि एसेट का बाजार मूल्य कॉन्ट्रैक्ट में लिखा मूल्य से नीचे आता है। खरीदार को फिर भी इसे पहले से एग्रीड कीमत पर खरीदना होगा और नुकसान उठाना होगा।

एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार को यहां एक फायदा है। यदि एसेट वैल्यू सहमत (अग्रीड) मूल्य से कम हो जाता है, तो खरीदार इसे खरीदने से मना कर सकता है। यह खरीदार के नुकसान को सीमित या कम करता है।

दूसरे शब्दों में, एक फ्यूचरस कॉन्ट्रैक्ट अनलिमिटेड लाभ या हानि ला सकता है। इस बीच, एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट अनलिमिटेड लाभ ला सकता है, लेकिन यह संभावित (पोटेंशियल) नुकसान को कम करता है।

एडवांस पेमेंट:

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में प्रवेश करते समय कोई एडवांस पेमेंट नहीं देना होता है। लेकिन खरीदार असेस्ट्स के लिए सहमत कीमत एग्रीड प्राइस देने के लिए बाध्य है।

एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार को प्रीमियम अमाउंट खरीदना पड़ता है। इस प्रीमियम अमाउंट का पेमेंट ऑप्शंस खरीदार को भविष्य की तारीख में संपत्ति को कम आकर्षक होने पर नहीं खरीदने का विशेषाधिकार देता है। यदि ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट होल्डर संपत्ति को नहीं खरीदना चाहता है, तो उसे, पे किये गए प्रीमियम अमाउंट का नुकसान होता है।

दोनों ही मामलों में, आपको कुछ कमीशन पे करना पड़ सकता है।

कॉन्ट्रैक्ट एक्सीक्यूशन:

एक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट, कॉन्ट्रैक्ट में दिए गए अग्रीड डेट पर एक्सेक्यूट किया जाता है। इस डेट पर, खरीदार अंडरलाइंग एसेट खरीदता है।

हालांकि, एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार एक्सपायरी डेट से पहले कॉन्ट्रैक्ट एक्सेक्यूटे कर सकता है। और जब भी उसे लगता है कि परिस्थितियां सही हैं, तो वह संपत्ति खरीद सकता हैं।

फोरेक्स ट्रेडिंग ऑनलाइन

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मुद्रा संबंधी एफ.ए.क्यू

व्यापार डेरिवेटिव के लिए न्यूनतम निवेश कितना है?

यह कदम तब आया जब बाज़ार नियामक सेबी ने छोटे निवेशकों को उच्च जोखिम वाले उत्पादों से बचाने के प्रयास में वर्तमान में किसी भी इक्विटी डेरिवेटिव उत्पाद के लिए न्यूनतम निवेश आकार में 2 लाख रुपए से 5 लाख रुपए तक की बढ़ोतरी की।

करेंसी ट्रेडिंग इन इंडिया क्या है और मैं मुद्रा व्यापार कैसे शुरु करूँ?

विदेशी मुद्रा फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? व्यापार, एक मुद्रा का दूसरे में रूपांतरण है। यह दुनिया के सबसे सक्रिय रूप से कारोबार किए जाने वाले बाज़ारों में से एक है, जिसमें औसत दैनिक व्यापार की मात्रा 5 ट्रिलियन डॉलर है।

मैं ऑनलाइन फोरेक्स ट्रेडिंग कैसे कर सकता हूँ?

सभी मुद्रा व्यापार जोड़े में किया जाता है। शेयर बाज़ार के विपरीत, जहाँ आप एकल स्टॉक खरीद या बेच सकते हैं, आपको एक मुद्रा खरीदनी होगी और दूसरी मुद्रा को विदेशी मुद्रा बाज़ार में बेचना होगा। इसके बाद, लगभग सभी मुद्राओं का मूल्य चौथे दशमलव बिंदु तक होगा। बिंदु में प्रतिशत व्यापार की सबसे छोटी वृद्धि है।

भारत में मुद्रा का व्यापार कैसे कर सकता हूँ?

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विदेशी मुद्रा व्यापार से लाभ प्राप्त कैसे करें?

विदेशी मुद्रा व्यापार आपको मुनाफ़ा दे सकती है यदि आप असामान्य रूप से कुशल मुद्रा व्यापारी के साथ धनराशि को छुपा कर रखते हैं। हालांकि इसका अर्थ यह लगाया जा सकता है कि मुद्राओं में व्यापार करते समय तीन में से एक व्यापारी का पैसा नहीं डूबता, लेकिन यह समृद्ध व्यापार विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के समान नहीं है।

क्या विदेशी मुद्रा व्यापार में कोई जोखिम कारक शामिल है?

विदेशी फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? मुद्रा व्यापार में मुद्रा जोड़े का व्यापार शामिल है। कोई भी निवेश जो संभावित लाभ प्रदान करने का प्रस्ताव रखता है उसमें भी मार्जिन पर व्यापार करते समय अपने लेनदेन के मूल्य से बहुत अधिक खोने के बिंदु तक डाउनसाइड जोखिम होता है।

भारतीय विदेशी मुद्रा क्या है?

भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15 में कहा गया कि भारत 750 बिलियन यू.एस डॉलर से 1 ट्रिलियन डॉलर तक के विदेशी मुद्रा भंडार को लक्षित कर सकता है। दिसंबर 2019 तक, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार मुख्य रूप से यू.एस सरकारी बॉन्ड और संस्थागत बॉन्ड के रूप में यू.एस डॉलर के साथ सोने में लगभग 6% विदेशी संचय से बने हैं ।

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