Rupee vs Dollar: ऐतिहासिक स्तर पर फिसला रुपया, क्यों आ रही है गिरावट और क्या होगा इसका असर?
Rupee vs Dollar: मंगलवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया ऑल टाइम लो पर खुला। इसका आम आदमी पर काफी असर पड़ेगा क्योंकि रुपये की गिरावट का सीधा नाता महंगाई से है।
- भारतीय रुपये के कमजोर होने से महंगाई बढ़ सकती है।
- डॉलर की मजबूती से आयात महंगा हो जाएगा।
- इस साल की शुरुआत आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा से ही रुपया डगमगा रहा है।
नई दिल्ली। आज भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा मुकाबले (Rupee vs Dollar) 80 से भी नीचे गिर गया। शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 7 पैसे की गिरावट के साथ अब तक के सबसे निचले स्तर 80.05 पर आ गया। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत पिछले आठ सालों में 16.08 रुपये यानी 25.39 फीसदी फिसल चुकी है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 में विनिमय दर 63.33 रुपये प्रति डॉलर थी।
मजबूत हो रहा है डॉलर
इस साल की शुरुआत से रुपया अब तक 7.6 फीसदी गिर चुका है। भारतीय रुपये के नुकसान का मतलब अमेरिकी मुद्रा के लिए लाभ है। इस साल की शुरुआत से डॉलर में लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा रेपो रेट में की गई वृद्धि से भी रुपये में कमजोरी का सिलसिला नहीं रुका है क्योंकि देश के जून व्यापार घाटे के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद चालू खाता घाटा बढ़ रहा था।
क्यों कमजोर हो रहा है रुपया?
दरअसल रूस और यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine war) की वजह से भू-राजनीतिक संकट और अनिश्चितताओं ने ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं के संकट को और बढ़ा दिया। यह अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि वे अभी महामारी के कारण हुई मंदी से उबर रही थीं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा, उच्च वैश्विक कच्चे तेल की कीमत (Crude oil Price) और बढ़ती मुद्रास्फीति (Inflation) ने भी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की परेशानियां बढ़ा दी है।
रुपये की कमजोरी का एक अन्य प्रमुख कारण विदेशी पोर्टफोलियो कैपिटल का आउटफ्लो है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने 2022-23 में अब तक भारतीय इक्विटी बाजारों से लगभग 14 अगब डॉलर की निकासी की है।
वैश्विक कारणों से गिर रहा है रुपया: वित्त मंत्री
सोमवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने लोकसभा में कहा था कि रूस-यूक्रेन संकट, कच्चे तेल के बढ़ते आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा दाम और वैश्विक वित्तीय स्थितियों के सख्त होने की वजह से डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से लगभग अरबों डॉलर निकाल लिए हैं, जिससे मुद्रा पर असर पड़ा है। हालांकि ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी मुद्राएं अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की तुलना में ज्यादा गिरी हैं। ऐसे में इस साल इन मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया मजबूत हुआ है।
गिरावट का असर कैसे होगा?
रुपये में गिरावट का सबसे प्रमुख असर आयातकों पर होगा, जिन्हें अब इम्पोर्ट के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। रुपये की कमजोरी से आयात महंगा हो जाएगा। भारत कच्चा तेल, कोयला, प्लास्टिक सामग्री, केमिकल, इलेक्ट्रॉनिक सामान, वनस्पति तेल, फर्टिलाइजर, मशीनरी, सोना, कीमती और अर्ध-कीमती स्टोन, आदि आयात करता है। हालांकि रुपये के मूल्य में गिरावट से निर्यात सस्ता होगा।
इसके अलावा, विदेश में पढ़ाई करने का लक्ष्य बना रहे छात्रों पर भी इसका असर पड़ेगा क्योंकि अब फीस में वृद्धि देखने को मिलेगी। रेमिटेंस (वह पैसा जो विदेश में रहने वाले लोग अपने परिवार को भारत में भेजते हैं) की बात करें, तो अब इसकी लागत ज्यादा होगी क्योंकि वे रुपये के संदर्भ में ज्यादा पैसे भेजेंगे।
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आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा
आज का विचार
रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग किया आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा है -वित्त मंत्री सीतारमण
रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग किया है -वित्त मंत्री सीतारमण
नई दिल्ली [ महामीडिया] लोकसभा में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बयान दिया। आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा उन्होंने कहा दुख की बात है कि संसद में कुछ लोग देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था से जलते हैं। भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, लेकिन विपक्ष को इससे दिक्कत है। लोकसभा में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रश्नकाल के दौरान GST के आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा संबंध में पूछे गए प्रश्नों का जवाब दिया।लोकसभा में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारतीय रुपया हर मुद्रा के मुकाबले मजबूत हुआ है। रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग किया है कि उसे यह सुनिश्चित करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप करना है कि डॉलर-रुपये में उतार-चढ़ाव बहुत अधिक न हो।
जानना जरूरी है: 2021 में एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा बनी भारतीय रुपया, जानिए देश पर इसका क्या असर होगा?
नई दिल्ली। भारत के लिए साल 2021 कुछ अच्छा नहीं रहा। क्योंकि पहले GDP में गिरावट और अब साल के अंत तक भारतीय रूपया एशिया का सबसे कमजोर करंसी बन गया है। दरअसल, कोरोना के चलते विदेशी फंड देश के शेयरों से पैसा निकाल रहे हैं, जिसका बुरा असर साफतौर पर भारतीय मुद्रा पर पड़ा है।
विदेशियों ने 4 अरब डॉलर निकाल लिए
अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में भारतीय करेंसी में 2.2 फीसदी की गिरावाट दर्ज की गई है। जानकार बता रहे हैं कि वैश्विक फंडों ने देश के शेयर बाजार से कुल 4 अरब डॉलर निकाल लिए। जो आसपास के क्षेत्रीय बाजारों में सबसे अधिक राशि है। इसका असर ये हुआ कि एशिया के सबसे कमजोर करंसी में भारतीय रूपया शामिल हो गया।
कोरोना के कारण मार्केट में दहशत का महौल
दरअसल, कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉम के आने और भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान हुए नुकसान को देखते हुए वैश्विक बाजार में अफरा तफरी का महौल है। विदेशी निवेशक भारतीय शेयरों में से काफी बड़ी संख्या में पैसे निकाल रहे हैं। उन्हें डर है कि नए वैरिएंट के आने से कहीं उन्हें ज्यादा नुकसान न उठाना पड़े।
इस वर्ष रूपये में 4 प्रतिशत की गिरावट
गोल्डमैन सैक्स ग्रुप इंक और नोमुरा होल्डिंग्स इंक ने भारतीय बाजार के लिए हाल ही में अपने आउटलुक को कम कर दिया है। इसके लिए उन्होंने उंचे मूल्यांकरन का हवाला भी दिया। रिकॉर्ड हाई व्यापार घाटा और फेडरल रिजर्व के साथ केंद्रीय बैंक की अलग नीति ने भी रूपये की कैरी अपील को प्रभावित किया। ब्लूमबर्ग के ट्रेडर्स और एनालिस्टों के सर्वे के मुताबिक, रूपया 76.50 पर पहुंच सकता है। यानी इस आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा रूपये में 4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
इस वर्ष रूपया कमजोर हो गया, इस बात को सुनकर आपके मन में भी ये सवाल आया होगा कि आखिर इससे देश को क्या नुकसान होगा, तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि रूपये के कमजोर होने या मजबूत होने से देश को क्या फायदा या क्या नुकसान होगा।
इस कारण से रूपया कमजोर या मजबूत होता है
सबसे पहले जानते हैं रूपया कमजोर या मजबूत क्यों होता है? बता दें कि रूपये की कीमत पूरी तरह इसकी मांग एवं आपूर्ति पर निर्भर करती है। इस पर आयात और निर्यात का भी असर पड़ता है। हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वे लेनदेने करते हैं। इसे विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। रिजर्व बैंक समय-समय पर इसके आंकड़े जारी करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है। साल 2021 में इसी विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है। यानी निवेशकों ने यहां से अपने पैसे निकाल लिए हैं।
ऐसे पता चलता है, रूपया कमजोर है या मजबूत
मालूम हो कि अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रूतबा हासिल है। इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है। यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रूपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर। अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए भी माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं। दुनिया के ज्यादातर देशों में आसानी से इसे स्वीकार्य किया जाता है।
भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में ही होते हैं
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में ही होते हैं। यानी अगर देश को अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड ऑयल), खाद्य पदार्थ, इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम आदि विदेश से मंगवाना है तो उसे डॉलर में इसे खरीदना होता है। ऐसे आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा में अगर विदेशी मुद्रा भंडार कम है तो रूपये के मुकाबले डॉलर और कही ज्यादा मजबूत हो जाता है। इसका असर ये होता है कि हमें सामान खरीदने के लिए और अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं। अधिक पैसे खर्च करने का मतलब है भारत में सामान का दाम बढ़ जाना। जिसका सीधा असर आम नागरिक की जेब पर पड़ता है।
डॉलर के भाव में 1 रूपये की तेजी से इतना पड़ता है भार
बता दें कि भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है। ऐसे में रूपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाता है और इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा देती हैं। एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रूपये की वृद्धि से तेल कंपनयों पर 8 हजार करोड़ रूपये का बोझ पड़ता है।
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