Diploma Courses After 10th : जानिए 10वीं के बाद कौन-कौन से डिप्लोमा कोर्स कर सकते है
10वीं पास करने के बाद ज्यादातर छात्र जहां आगे की पढ़ाई जारी रखते हैं तो कई स्टूडेंट ऐसे भी होते हैं जो करियर की दिशा में आगे बढ़ते हैं। वो चाहते हैं कि जल्द से जल्द वो अपने पैरों पर खड़े हों और अपना खर्चा खुद उठाए। अगर आप भी उन्ही छात्रों में से एक है जो जल्द से जल्द नौकरी करना चाहते हैं, तो डिप्लोमा कोर्स के जरिए आप अपनी इच्छा को पूरा कर सकते है। इससे फायदा ये होगा कि सिर्फ प्राइवेट सेक्टर ही नहीं बल्कि सरकारी क्षेत्र में भी आपको नौकरी आसानी से मिल जाएगी। अगर डिप्लोमा कोर्स की बात करें तो उनमें:
डिप्लोमा इन फाइन आर्ट्स
एनीमेशन, डिजाइनिंग, प्रोग्रामिंग, ग्राफ़िक्स, विज्युलाइज़ेशन जैसे क्षेत्र में अगर आप अपना करियर बनाना चाहते है तो फाइन आर्ट्स चुन सकते हैं। 10वी कक्षा के बाद 5 साल का फाइन आर्ट्स का डिप्लोमा कोर्स है। अगर आप क्रिएटिव है तो ये कोर्स आपके लिए ही बना है।
डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग
इंजीनियर बनेन का ख्वाब देखते हैं तो 10वीं पास करने के बाद उस सपने को साकार किया जा सकता है। कई सारे संस्थान और पॉलीटेक्निक कॉलेज ऐसे हैं जो दसवीं के बाद इंजीनियरिंग डिप्लोमा करवाते हैं। इनको करने के बाद आपको इंजीनियरिंग फील्ड से जुड़े मिडिल लेवल के जॉब आसानी से मिल सकते हैं।
डिप्लोमा इन इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन इलेक्ट्रिकल एंड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन केमिकल इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन सिविल इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन सिविल इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन बायोमेडिकल इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन पेट्रोलियम इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन माइनिंग इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन एनवॉयरमेंटल इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन फायर इंजीनियरिंग शामिल है।
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी
देश में बहुत से ऐसे संस्थान है जो स्टेनोग्राफी में डिप्लोमा करवाते हैं। जिसे करते ही बैंक, शिक्षा, कोर्ट के साथ साथ कई और क्षेत्रों में नौकरी के अवसर आपके लिए खुल जाएंगे। हर सरकारी विभाग या निजी कंपनियों में ऐसी नौकरियां निकलती रहती हैं जिनके लिए स्टेनोग्राफर की भर्ती की ज़रूरत होती है। ऐसे में ये स्कोप काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।
डिप्लोमा इन आर्किटेक्चर
ये भी एक कलात्मक फील्ड है। इसमें बिल्डिंग के निर्माण, डिज़ाइन, उसकी संरचना पर काम किया जाता है। जो कोई भी छात्र बेहद क्रिएटिव हो और फिजिक्स और गणित का ज्ञान रखता हो वो इस डिप्लोमा कोर्स को करने के बाद करियर की नई उड़ान भर सकता है।
डिप्लोमा इन बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन
कॉमर्स विषय में रूचि है और बिज़नेस की लाइन में जाना चाहते हैं तो 10वीं के बाद बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन में डिप्लोमा किया जा सकता है। इसमें बिज़नेस को चलाने के दांव पेंच सिखाए जाते हैं इस डिप्लोमा कोर्स को करने के बाद जहां आप किसी कंपनी में आसानी से नौकरी पा सकते हैं तो वही खुद का बिज़नेस भी शुरू कर सकते हैं।
इन सब के अलावा भी ढेरो डिप्लोमा कोर्स ऐसे हैं जो 10वीं के बाद आपके करियर को एक नई दिशा दे सकते हैं, जैसे :
डिप्लोमा इन गारमेंट टेक्नोलॉजी
डिप्लोमा इन प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी
डिप्लोमा इन लेदर टेक्नोलॉजी
डिप्लोमा इन इंस्ट्रूमेंटेशन टेक्नोलॉजी
डिप्लोमा इन मरीन इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन प्रोडक्शन
डिप्लोमा इन टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी
डिप्लोमा इन प्लास्टिक टेक्नोलॉजी
डिप्लोमा इन बायोटेक्नोलॉजी
डिप्लोमा इन कौन कर सकता है माइनिंग ब्यूटी कल्चर
डिप्लोमा इन आर्किटेक्चर
डिप्लोमा इन एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन फैशन डिजाइन
डिप्लोमा इन अपेरल डिजाइन
डिप्लोमा इन साइबर सिक्योरिटी
डिप्लोमा इन मेडिकल लैब
डिप्लोमा इन लाइब्रेरी एंड इनफॉरमेशन साइंस
जिस कोर्स के लिए 12वीं के बाद चार साल लगते हैं वही 10वीं के बाद ये डिप्लोमा कोर्स महज़ 3 साल का होता है। वही डिप्लोमा धारकों को कई सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियां हाथों हाथ नौकरियां भी देती है।
हवन के समय क्यों बोलते हैं स्वाहा, जानें इसका कारण
हवन के समय हमेशा स्वाहा कहा जाता है। लेकिन क्या आपको पता है इसका मुख्य कारण क्या है। वास्तव में अग्नि देव की पत्नी हैं स्वाहा। इसलिए हवन में हर मंत्र के बाद इसका उच्चारण किया जाता है।स्वाहा का अर्थ.
हवन के समय हमेशा स्वाहा कहा जाता है। लेकिन क्या आपको पता है इसका मुख्य कारण क्या है। वास्तव में अग्नि देव की पत्नी हैं स्वाहा। इसलिए हवन में हर मंत्र के बाद इसका उच्चारण किया जाता है।स्वाहा का अर्थ है सही रीति से पहुंचाना। मंत्र पाठ करते हुए स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री भगवान को अर्पित करते हैं।
दरअसल कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि हवन का ग्रहण देवता न कर लें। लेकिन, देवता ऐसा ग्रहण तभी कर सकते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए।
जानें ये कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। इनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था। अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से यही हविष्य आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है।
वहीं, दूसरी पौराणिक कथा के मुताबिक अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए। स्वाहा की उत्पत्ति से एक अन्य रोचक कहानी भी जुड़ी हुई है। इसके अनुसार, स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर संपन्न हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे। यज्ञीय प्रयोजन तभी पूरा होता है जबकि आह्वान किए गए देवता को उनका पसंदीदा भोग पहुंचा दिया जाए।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
क्या आपको पता है ऑडिट क्या होता है? audit meaning in hindi
ऑडिट क्या होता है इसका हिंदी अर्थ क्या होता है. अगर आप अपना खुद का बिज़नेस चलाते है तो आप के लिए जानना जरुरी है. की ऑडिट क्या होता है. दरअसल ऑडिट का आशय वित्तीय लेखा-जोखे की जांच से है. वित्तीय लेखा-जोखे की जांच आपके वित्तीय लेख को सत्यापित करने के लिए किया जाता है.
अगर हम सरल शब्दों में समझे तो किसी कम्पनी या वित्तीय संसथान के लिए ऑडिट वह प्रक्रिया है जिसमे कम्पनी अपने खातो की जाँच करवा कर मूल्यांकन करती है की उसे विगत वर्ष में लाभ हुआ है या हानि. और साथ ही अगर खातो में किसी भी प्रकार की त्रुटी हुई है उसकी भी जाँच हो जती है.
कोई भी कंपनी या संस्था ऑडिट, या तो खुद के द्वारा नियुक्त किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट के द्वारा करवाती है या फिर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट भी साल में एक बार आप की संस्था का ऑडिट कर सकता है। ऑडिट हर वित्तीय वर्ष यानी हर साल में एक बार तो किया ही जाता है.
ऑडिट का हिंदी मतलब क्या होता है (audit meaning in hindi)
अगर हम ऑडिट के हिंदी अर्थ या मतलब (audit meaning in hindi) का बात करे तो ऑडिट को हिंदी में अंकेक्षण होता है अर्थात अंक का परिक्षण. सरल शब्दों में जो कम्पनी के अकाउंटेंट द्वारा साल भर लेन देन की एंट्री की जाती है जो की सामन्यतः आज कल टैली सॉफ्टवेर पर की जाती है उनकी जाँच. उनकी जाँच करके हम जान सकते है की कम्पनी द्वारा कहा कहा खर्चा किया गया और उसे किन जगहों से इनकम प्राप्त हुई.
साथ ही अगर खातो में किसी भी प्रकार की त्रुटी हो तो उसकी भी जाँच हो जाती है जिससे कंपनी को प्राप्त होंने वाली लाभ या हानि का शुद्ध अकड़ा प्राप्त किया जा सकता है.
क्यों जरुरी है ऑडिट (Why audit is necessary)
ऑडिट करने का उद्देश्य आपके बिज़नेस के खातों का लेखा (Account) सही है, या नहीं इसका पता लगाना है. बिज़नेस के खातों का लेख (Account) का अध्यन करना इसलिए भी जरुरी है क्यों की इससे आपको पता चलेगा की आप की कंपनी या बिज़नेस संस्थान ने साल भर में किस्ता खर्च किया और कितना कमाया जिससे आप अपने लाभ का पता लगा सकते है.
साथ ही आज इसका महत्व GST लागू होने के बाद और भी बाद गया है क्यों की कम्पनी को हर महीने सरकार को अपनी क्रय बिक्री का ब्यौरा देना होता है साथ ही GST भी अब हर महा देना होता है. जिससे कंपनियों को अपने खाते को अपडेट रखना होता है क्यों की कोई भी कंपनी अपने लाभ और हानि के अनुसार ही अपना इनकम टैक्स रिटर्न देती है। अगर आप अपने लेखो (account) के अनुसार इनकम टैक्स जमा नहीं करते तो आप पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की कार्यवाही हो सकती है।
इसको को सही ढंग से क्रियान्वित करवाने के लिए अलग अलग लोगो से कम्पनी, अपनी कंपनी का ऑडिट करवाती है जिससे उसमे कुछ छूटे ना। ऑडिट किसी भी विभाग के किसी प्रमुख कर्मचारियों द्वारा या फिर किसी बाह्य व्यक्ति जैसे किसी अन्य कम्पनी के चार्ट्रेड अकॉउंटेट द्वारा भी किया जा सकते है। ऑडिट अकाउंट वेरिफाई करने और चेक करने के उद्देश्य से मुख्यत: किया जाता है। ऑडिट धोखाधड़ी और गलत कैल्कुलेशन से भी बचाता है।
कौन कर सकता है ऑडिट?
भारत में अलग अलग डिपार्टमेंट के लिए ऑडिट भी अलग अलग लोग कर सकते है पर भारत सरकार द्वारा किसी भी कम्पनी के लिए ऑडिट प्रक्रिया के लिए कुछ विभाग को मान्य किया है उसमे आईसीएआई या चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के चार्टर्ड अकाउंटेंट है जो की संगठन का स्वतंत्र आडिट कर सकते हैं। साथ ही इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का ऑडिटर भी किसी भी कंपनी का ऑडिट कर सकते है.
कैसे होता है ऑडिट
ऑडिट प्रक्रिया के मुख्य चार चरण है इन चरण के द्वारा ही ऑडिट प्रक्रिया पूर्ण होती है।
- सबसे कौन कर सकता है माइनिंग पहले ऑडिटर को एक पत्र द्वारा जो की वांछित संस्थान द्वारा जारी किया जाता है उससे अपनी भूमिका और टर्म ऑफ इंगेजमेंट को प्रूव करना होगा उस पत्र पर कम्पनी द्वारा विधिवत हस्ताक्षरित होता है।
- इसके बाद ऑडिटर द्वारा ऑडिटिंग की समय सीमा का विवरण दिया जाता है और समय सीमा को इस प्रकार निर्धारित किया कौन कर सकता है माइनिंग जाता है जिससे कम्पनी की ऑडिट समय सीमा से पहले ही हो जाये।
- इसके बाद ऑडिटर आकड़ो की तुलना कर के सत्यता को निर्धारित करता है। तथा जानकारी को निर्धारित कर आकड़ो को सही ढंग से जमाना होता है।
- अंत में एडिटर द्वारा आंकड़ो का विश्लेषण किया जाता है जिससे की संसथान में चल रही किसी भी पप्रकार की त्रुटी या किसी भी प्रकार की प्रोसेस जिससे की कंपनी हो हानि हो रही है ये जिसमे इम्प्रोव्मेंट की जरुरत होती है उसका विश्लेषण किया जाता है.
ऑडिट के प्रकार (Type of audit in hindi)
वैसे तो ऑडिट के कई प्रकार है जो की कम्पनी अपनी प्रोसेस, प्रोडक्ट और क्वालिटी चेक के लिए करवा सकती है पर अगर हम ऑडिट के मुख्य प्रकार की बात करे तो यहाँ तीन प्रकार के होते है. आंतरिक अंकेक्षण (Internal Audits), एक्सटर्नल ऑडिट (External Audits) कौन कर सकता है माइनिंग और आंतरिक राजस्व सेवा (आईआरएस) लेखा परीक्षा (Internal Revenue Service Audits) जो की कम्पनी समय समय में अपनी कम्पनी में करवाती है.
कर्म की सही परिभाषा
‘कर्म’ शब्द का कौन कर सकता है माइनिंग उपयोग अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से किया जाता है। अगर आप यह पेज पढ़ रहे हैं, तो यह संभव है कि आप उन हजारों लोगों में से कौन कर सकता है माइनिंग एक होंगे जो इस शब्द, ‘कर्म’ का मर्म जानने के प्रयत्न में हैं।
इसे पढ़कर आप यह जान सकते हैं कि हमारे जीवन में किस तरह से हमारे इरादे, हमारी इच्छाएँ और हमारी भावनाएँ, हमारे आचरण को और हमारी क्रियाओं को प्रभावित करते हैं और कैसे इन सब का सम्बन्ध “कर्म” से है।
संस्कृत भाषा में ‘कर्म’ का अर्थ है ‘कार्य’ या ‘क्रिया’। वे सारी क्रियाएँ जो न सिर्फ हम शरीर द्वारा करते हैं लेकिन अपने मन और वाणी द्वारा भी करते हैं, उसे कर्म कहते हैं।
- कर्म को भूतकाल का एक प्रतिस्पंदन और भविष्यकाल का कारण भी कहा जाता है।
- रोज़मर्रा की सामान्य क्रियाएँ जैसे - काम पर जाना, अच्छे काम करना, दया भाव आदि, सामान्य तौर पर इन सब को भी कर्म ही कहा जाता है।
- आत्मज्ञानी परम पूज्य दादाश्री अपने ज्ञान द्वारा कहते हैं कि हमारी आज की सभी क्रियाएँ पिछले जन्म के कर्मों के फलस्वरूप हैं। इसलिए हमारे जीवन में अभी आपको जो कुछ भी दिखाई देता है, वह सब हमारे पहले के अभिप्राय का फल है।
कर्म बंधन क्या हैं?
कर्म क्या है? कर्म बंधन कैसे होता है? कर्म बंधन करता भाव से होता हैं| अधिक कर्म का विज्ञान जानने के लिए देखिये यह विडियो|
आश्चर्य हुआ न, तो चलो इसे जान लें.
- हमारे ‘कर्मों’ के कारण ही हम लगातार जन्मोंजन्म के चक्कर में आते हैं।
- हमारे सभी सुख और दुःख के अनुभव हमारे पूर्व जन्मों में चार्ज या इकट्ठे किए गए कर्मों का परिणाम हैं।
- कभी भी एक नकारात्मक क्रिया अन्य सकारात्मक क्रिया द्वारा मिटाई नहीं जा सकती| हमें इन दोनों के अलग-अलग परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
- आत्मानुभव प्राप्त करने के बाद भी आप अभी की तरह ही अपना सारा व्यवहार करते हुए आनंद से रह सकते हैं| ज्ञान प्राप्त करने के बाद किसी भी प्रकार का कर्म बंधन नहीं होता और आगे चलकर केवलज्ञान की प्राप्ति होती है।
- सब कर्मों के समाप्त हो जाने पर अंतिम मोक्ष की प्राप्ति होती है।
परम पूज्य दादाश्री ने बेहद सरल भाषा में हमें कर्म के विज्ञान को समझने की सभी चाबियाँ दी हैं।
- कर्म का फल कोई सज़ा या इनाम नहीं है, लेकिन सामान्य तौर पर वह हमारे भीतर के ही अभिप्रायों का फल है।
- जो कर्मबीज पिछले जन्म में बोये थे, उन कौन कर सकता है माइनिंग कर्मों के फल इस जन्म में आते हैं। तो यह फल कौन देता होगा? भगवान? नहीं, जब उपयुक्त परिस्थितियाँ परिपक्व होती हैं तब प्राकृतिक रूप से हमें कर्मफल कौन कर सकता है माइनिंग कौन कर सकता है माइनिंग का अनुभव होता है। इसे दादाश्री ‘सायंटिफिक सरकमस्टेंशियल एविडेंस’ (व्यवस्थित शक्ति) कहते हैं।
- किसी भी प्रकार की क्रिया या कर्मफल को भोगते समय हमारे भाव और खुद के स्वरूप की अज्ञानता ही हमारे नए कर्म चार्ज होने का मूल कारण है।
यदि आपको कोई प्रश्न हो या आप अपनी किसी भी समस्या का समाधान चाहते हैं, तो आप हमें [ई-मेल] भेजिए और हम शीघ्र ही उसका जवाब देंगे।
हम अपने खुद के ही कर्म की प्रतिकृति हैं।
हर वह चीज़ जिसका हम अनुभव करते हैं, हमारी ही रचना है और इसके लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं है। हमारे अनंत जन्मों के लिए हम खुद ही पूर्ण रूप से ज़िम्मेदार हैं।
बहुत से लोगों का मानना है कि जीवन में वे जो कुछ भी अनुभव करते हैं, वह सब उनका ही किया हुआ है। इसलिए वे उसे बदलने की कोशिश करते हैं, लेकिन उसमें असफल होते हैं, क्योंकि उसे बदलना उनके हाथ में नहीं हैं। फल को बदलने के बारे में सोचना सही है, लेकिन क्या इसके लिए वे स्वतंत्र रूप से सक्षम हैं?
हाँ हैं, लेकिन कुछ हद तक। उसका अधिकतर नियंत्रण उनके हाथ में नहीं है। सिर्फ आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद ही ऐसा संभव हैं, तब तक यह संभव नहीं है।
- क्या मैं इस ज्ञान का उपयोग अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कर सकता हूँ?
- मेरे कर्मों की कोई नकारात्मक असर होने से पहले ही क्या मैं उनसे मुक्त हो सकता हूँ?
- क्या ऐसा हो सकता है कि मैं सामान्य रूप से अपना जीवन जीते हुए भी कर्म न बांधूं और अपनी आत्मानन्द की अवस्था का अनुभव कर सकूँ?
- क्या मैं अपने अनंत जन्मों के कर्मबंधनों से मुक्त हो सकता हूँ?
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आइये इस शाश्वत आनंद को प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक यात्रा की शुरूआत करें।
कर्म के सिद्धांत को समझने से कर्म के विज्ञान और उसकी क्रियाविधि को समझने में मदद होगी। लेकिन शायद फिर भी आपको यह प्रश्न होगा:
मोक्ष तक पहुँचने की यात्रा कैसे शुरू करें?
अपने शाश्वत सुख को पाने की यात्रा का पहला ज़रूरी कदम है - खुद को जानना| ‘ज्ञानविधि’ अर्थात आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने की वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा यह सिर्फ दो ही घंटों में प्राप्त किया जा सकता है।
दादाश्री के शब्दों में:
“अगर एक बार आप अपने आत्म स्वभाव में आ जाओ तो नया कर्मबंधन नहीं होगा। यह तब होता है जब ज्ञानीपुरुष आपको अपने वास्तविक स्वरूप की पहचान करवा देते हैं। उसके बाद, नए कर्म नहीं बंधते और पुराने कर्म लगातार खाली होते जाते हैं। जब सभी कर्म पूरे हो जाते हैं तब मोक्ष प्राप्ति होती है।”
भिन्न भिन्न पृष्ठभूमि के लोग, चाहे वे दिन-प्रतिदिन की समस्याओं के समाधान ढूंढ रहे थे या फिर शाश्वत आनंद की खोज में थे, उन सभी को ज्ञानविधि द्वारा अपने जीवन की खोज का संतोषजनक हल प्राप्त हुआ है।
इस बात का विश्वास करने के लिए इसे अनुभव करना ज़रूरी है!
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