गुडलक टुडे: क्यों बिगड़ने लगते हैं बनते काम, घर में कैसे आता है दुर्भाग्य और कैसे इसे दूर करें. जानिए
इस वीडियो में पंडित शैलेंद्र पांडेय बता रहे हैं घर की छोटी छोटी, लेकिन भयंकर गड़बड़ियों के बारे में. वो बता रहे हैं कि क्यों बिगड़ने लगते हैं बनते काम ? कैसा है आपके घर का मुख्य द्वार ? घर में कैसे आता है दुर्भाग्य और कैसे इसे दूर करें.
In this video, Pandit Shailendra Pandey is telling about the small but terrible problems in the house. They लंबी और छोटी स्थिति को समझना are telling why the work being done starts getting spoiled? How is the main door of your house? How bad luck comes in the house and how to remove it.
छोटी और बड़ी सोच के अंतर
जो लोग छोटे पदों पर होते हैं उन्हें ज्यादा क्यों नहीं दिखाई देता और जो लोग बड़े पदों पर होते हैं वे ज्यादा लंबी दूरी का क्यों देख पाते हैं। वो कहते हैं न कि सोच ही इंसान के जीवन का नजरिया बदल देती है। पर यहाँ समस्या सोच की नहीं है समस्या है पहुँच की, आप जितनी ऊँचाई पर होंगे उतना ज्यादा देख पाओगे, और धरातल पर केवल धरातल की चीजें ही दिखाई देंगी। पता नहीं कब सोचते सोचते यह विचार मेरे जहन में कौंध आया और मन ही मन इस बात पर शोध चलता रहा। समझ जब आया जब रोज की तरह ऑफिस जा रहा था। उस समझ में एक और समझ आ गई कि क्यों और किस तरह लोगों से बचकर चलना चाहिये, कैसे लोग आपको जगह देते हैं और कैसे लंबी और छोटी स्थिति को समझना आपकी जगह लेकर आपसे आगे बढ़ जाते हैं और हम केवल देखते ही रह जाते हैं।
हमारा जीवन और जीवन में होने वाली घटनाएँ बिल्कुल सामान्य यातायात की तरह हैं, जहाँ सड़क पर दूर दूर तक अवरोध हैं और हमें उन अवरोधों को एक एक करके पार करना है।
अगर हम पैदल होंगे तो हमें दिखाई देने वाले अवरोध और रास्ते पूर्णत धरातल पर होंगे, पर पैदल चलने वाले के लिये फुटपाथ बना है, और पैदल चलने वाला सड़क पर भी चल सकता है। जब पैदल चलने वाला फुटपाथ पर चलता है तो उसका अनुभव धरातल से जुड़ा होता है, वह आसपास की हर घटना या चीजों को बहुत ही करीब से देख रहा होता है या महसूस कर रहा होता है और यही जमीनी अनुभव कहलाता है, यही हम अगर व्यावसायिक भाषा में कहें तो जो लोग बुनियादी कार्य कर रहे हैं उन्हें पर तरह का अनुभव होता है।
अगर हम साईकिल या मोटर साईकिल पर होंगे तो हम फुटपाथ पर नहीं चल सकते हमें सड़क पर ही चलना होगा, अनावृत होने से कार, जीप, बस और ट्रक का भी सामना करना होगा। यहाँ भी बाईक सवार को उतना ही दिखाई देगा जितना कि वह बाईक से देख सकता है, लंबी और छोटी स्थिति को समझना अब ये निर्भर करता है कि किस रफ्तार की मशीन उसकी बाईक में लगी है, वह कितनी तेजी से दूरी तय कर सकती है, उसे कितने अच्छे से अपना वाहन चलाना आता है और कैसे अपने से बड़े वाहनों के बीच जगह बनाते हुए अपने गंतव्य तक पहुँचता है। बाईक वाले पैदल चलने का दर्द समझ सकते हैं क्योंकि वे भी कभी कभी पैदल चलते हैं या फिर वे अभी अभी बाईक सवार बने हों या फिर भूल भी सकते हैं अगर वे लंबे समय से बाईक सवार हैं।
कार जीप वाले लोग अपने आसपास के वाहनों का ध्यान जरूरी रखेंगे नहीं तो उनके साथ साथ ही दूसरे का भी ज्यादा नुक्सान हो सकता है, उन्हें दूसरे से ज्यादा अपने वाहन की ज्यादा चिंता होती है। जैसे कि लोग खुद के सम्मान की ज्यादा चिंता करते हैं, और दूसरे से थोड़ी दूरी हमेशा बनाये रखते हैं, क्योंकि टकराव हमेशा ही बुरा होता है, टकराव से हमेशा ही बुरा प्रभाव पड़ता है। कार सवार को जमीनी अनुभव से गुजरे हुए समय हो गया होता है और बाईक का अनुभव उसके लिये हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है।
तो कहने का मतलब इतना ही है कि जब तक जमीनी तौर पर जुड़कर काम करते हैं तो आप उन सब चीजों को बहुत अच्छे से समझ सकते हैं और हमेशा ही अपने से बड़े वाहनों या पदों पर बैठे हुए व्यक्ति से या तो डरेंगे या उनकी स्थिति को समझने की कोशिश करेंगे, परंतु जैसे ही जमीनी स्तर से ऊपर उठते हैं वैसे ही इंसान बदल जाता है और वैसे ही उसके देखने की दिशा बदल जाती है।
उम्मीद है बात जो कहना चाह रहा था, पहुँच गई होगी, नहीं तो हम टिप्पणियों में भी बात आगे बढ़ा सकते हैं।
Explainer : घर खरीदें या किराये पर रहें? किससे मिलेगा ज्यादा फायदा, समझें दोनों में अपने फायदे का गणित
ज्यादातर नौकरीपेशा लोगों के सामने एक समय के बाद घर खरीदने को लेकर संशय की स्थिति बन जाती है.
आप अगर घर खरीदने या किराये पर रहने में से कोई फैसला करते हैं तो आपकी छोटी और लंबी दोनों अवधि की वित्तीय स्थिति पर सीधा . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : August 23, 2022, 16:48 IST
हाइलाइट्स
45 लाख रुपये के होम लोन पर करीब-करीब 45 हजार रुपये तक ईएमआई चुकानी होगी.
60 लाख रुपये तक की प्रॉपर्टी पर इस समय औसतन 17 हजार रुपये तक किराया है.
रेपो रेट घटने और बढ़ने का होम लोन की ईएमआई पर भी सीधा असर पड़ता है.
नई दिल्ली. देश के छोटे शहरों, कस्बों, गांवों से लोग नौकरी, प्रोफेशन या बिजनेस के लिए मेट्रोपॉलिटिन और कॉस्मोपॉलिटिन शहरों का रुख करते हैं. शुरुआती दौर में किराये पर रहने के बाद जब कमाई ठीकठाक होने लगती है तो लोगों के दिमाग में सबसे पहला ख्याल मकान या फ्लैट खरीदने का आता है. हालांकि, इस दौरान ज्यादातर लोगों के दिमाग में ये सवाल बार-बार उठता है कि क्या अपना घर खरीदना किराये पर रहने से बेहतर रहेगा? आज हम ऐसे कुछ प्वाइंट्स पर चर्चा करेंगे, जिससे आपको इस सवाल का जवाब तलाशने में कुछ हद तक मदद मिलेगी.
आप अगर घर खरीदने या किराये पर रहने में से कोई फैसला करते हैं तो आपकी छोटी और लंबी दोनों अवधि की वित्तीय स्थिति पर सीधा असर पड़ता है. आप अपना फैसला अपनी मौजूदा आर्थिक हालत, भविष्य के वित्तीय लक्ष्य, आने वाले बड़े खर्च, संभावित इमरजेंसी फंड्स की दरकार, सामाजिक परिस्थितियों के आधार पर तय करते हैं. आसान शब्दों में समझें तो आप तय करते हैं कि अगले 20 साल में आपको कौन-कौन से बड़े खर्च करने हैं, तब तक आपकी आर्थिक हालत कैसी होगी और आपको होम लोन के एवज में कितना भुगतान करना होगा?
घर खरीदने या किराये पर लेने में शुरुआती खर्च
अगर आप दिल्ली या नोएडा में 60 लाख रुपये तक का फ्लैट किराये पर लेते हैं तो आपको हर महीने औसतन 12-17 हजार रुपये का भुगतान करना होगा. इसमें मेंटेनेंस फीस भी शामिल है. वहीं, अगर आप यही घर खरीदते हैं तो आप 60 लाख रुपये की कीमत पर 15 लाख रुपये डाउन पेमेंट करेंगे. बाकी 45 लाख रुपये आप बैंक से होम लोन लेंगे. इस पर आपको करीब-करीब 40-45 हजार रुपये तक ईएमआई चुकानी होगी. साफ है कि घर खरीदने पर आप पर एकसाथ दो बड़े खर्च का बोझ पड़ेगा. पहला, एकमुश्त दिया जाने वाला डाउन पेमेंट और इसके बाद हर महीने की भारी-भरकम किस्त. वहीं, रेपो रेट बढ़ने या घटने का असर ईएमआई पर भी पड़ेगा.
लंबी अवधि में कितना पड़ेगा आर्थिक बोझ
अगर आप 20 साल की अवधि का होम लोन लेकर आज कोई प्रॉपर्टी 60 लाख रुपये में खरीदते हैं तो कर्ज खत्म होते इस घर की कीमत आपको दोगुने के आसपास पड़ती है.
घर की कीमत – 60 लाख रुपये
डाउन पेमेंट – 15 लाख रुपये
औसत ईएमआई – 45,000 X 12 X 20 = 1,08,00,000 रुपये
कुल कीमत – 1,23,00,000 रुपये
वहीं, अगर किराये में सामान्य वृद्धि के आधार पर मानें तो औसतन इतनी कीमत के फ्लैट के लिए आपको अगले 20 साल में 20 हजार रुपये प्रति माह का भुगतान करना होगा. ऐसे में आप अगले 20 साल में सिर्फ 48 लाख रुपये का भुगतान करेंगे. साफ है कि किराये के मकान में रहना ज्यादा फायदे का सौदा है.
मकान-फ्लैट के दाम में हो रहा कम इजाफा
आप अपने घर के लिए किए गए ज्यादा भुगतान को सही साबित करने के लिए ये तर्क भी दे सकते हैं कि अगले 20 साल में उसकी कीमत में भी बड़ा उछाल आएगा. हम आपको बता दें कि हाल लंबी और छोटी स्थिति को समझना के वर्षों के ट्रेंड को देखते हुए कहा जा सकता है कि पहले की तरह अब प्रॉपर्टी के दाम में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हो रही है. पहले 4 या 5 साल में प्रॉपर्टी की कीमत दोगुना हो जाती थी, लेकिन अब 10 साल में दोगुना होने का दावा भी नहीं किया जा सकता है.
नौकरी बदलने के साथ बदल सकती है जगह
मौजूदा दौर में ज्यादातर युवा तेजी से नौकरी बदलने में ज्यादा भरोसा करते हुए नजर आते हैं. इससे उन्हें पद और वेतन दोनों में तेजी से बड़ा फायदा मिल जाता है. इसमें सबसे बड़ी बात यही है कि आपके बहुत लंबे समय तक एक ही शहर में रहना भी तय नहीं होता है. कुछ लोगों को तो ये भी पक्का पता नहीं होता कि वे भारत में कब तक काम कर पाएंगे. इसके अलावा दिल्ली, मुंबई जैसे कुछ शहर इतने बड़े हैं कि उनमें एक जगह से दूसरी जगह जाने में ही घंटों का वक्त लग जाता है. ऐसे में आपको यह खुद तय करना होगा कि आपको किराये पर घर लेना है या अपना घर खरीदना है.
कोरोना के बाद काफी बदली है तस्वीर
रियल एस्टेट एक्सपर्ट प्रदीप मिश्रा का कहना है कि कोरोना महामारी के बाद लोगों के लिए अपना घर फाइनेंशियल से ज्यादा सिक्योरिटी और मानसिक सुकून का मामला बन गया है. उन्होंने बताया कि दिल्ली एनसीआर में कोरोना के बाद फ्लैट की कीमतों में औसतन 20 फीसदी और जमीन के दाम में औसतन 80 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. उन्होंने बताया कि इस समय लोगों की प्रायॉरिटी में अपना घर खरीद लेना है; यही नहीं, लोगों को अगर 2 बेडरूम, हॉल, किचिन फ्लैट की जरूरत है तो वो 3 बेडरूम, हॉल, किचिन का फ्लैट खरीद रहे लंबी और छोटी स्थिति को समझना हैं. उनके मुताबिक, कोरोना महामारी के दौरान विदेश में नौकरी करने वाले लोगों को भी ये समझ आया कि भारत में भी उनके पास कम से कम एक प्रॉपर्टी होनी चाहिए.
घर खरीदना ना हो तो क्या करें
अगर आप घर नहीं खरीदना चाहते हैं तो जिस फ्लैट में किराये पर रह रहे हैं उसकी ईएमआई कैलकुलेट करें. फिर उसमें से किराया घटाकर बाकी रकम एसआईपी में डाल सकते हैं. अब मान लीजिए कि आप किसी फ्लैट में 20,000 रुपये किराया देकर रहते हैं. इस घर को खरीदने पर आपको 45 हजार रुपये ईएमआई देनी होगी. अनुमानित ईएमआई में से किराया घटाएंगे तो 25 हजार रुपये बचेंगे. इस रकम को हर महीने सिप में निवेश करते रहें. अगर इस निवेश पर औसत 12 फीसदी सालाना रिटर्न मिले और कंपाउंडिंग का रूल लगाएं तो 20 साल में आपके पास 1 करोड़ से भी लंबी और छोटी स्थिति को समझना ज्यादा रकम इकट्ठी हो जाएगी. वहीं, अगर डाउन पेमेंट के 15 लाख को एकमुश्त निवेश कर दें तो कई निवेश विकल्पों में ये रकम भी तगड़ा रिटर्न दे देगी.
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भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
प्रच्छन्न बेरोजगारी लंबी और छोटी स्थिति को समझना अर्थात छुपी हुई बेरोजगारी, यह वह स्थिति है, जब एक श्रमिक काम तो कर रहा होता है लेकिन उसकी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में एक श्रमिक किसी खास काम में इसलिये लगा रहता है क्योंकि उसके पास उससे बेहतर करने को कुछ भी नहीं होता। इस स्थिति में श्रमिक के पास कोई विकल्प नहीं होता बल्कि किसी खास काम को करने की मजबूरी होती है।
उदाहरण:
(i) ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र में अक्सर देखने को मिलता है कि जिस खेत पर काम करने के लिए एक दो लोग काफी होते हैं उसी खेत पर कई लोग काम करते रहते हैं। इसलिए, यहां तक कि अगर हम कुछ लोगों को (कृषि व्यवसाय से) बाहर ले जाते हैं, तो उत्पादन प्रभावित नहीं होगा।
(ii) शहरी क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र में हजारों अनियत कर्मचारी हैं जहां वे पूरे दिन काम करते हैं परन्तु बहुत कम कमा पाते हैं, एक ही दुकान पर आपको कई भाई काम करते मिल जाएँगे। उनको अलग अलग दुकान चलाना चाहिए लेकिन सही अवसर के अभाव में उन्हें एक ही दुकान पर काम करने को बाध्य होना पड़ता है।
बर्नआउट से बचाकर, आपकी प्रोडक्टिविटी बढ़ा सकती है एक छोटी सी झपकी , जानिए इसके फायदे
थकान, उबासियां और फोकस का बिगड़ना किसी की भी परफॉर्मेंस खराब कर सकता है। पर क्या आप जानती हैं कि एक छोटी सी पावर नैप आपको लंबी और छोटी स्थिति को समझना इन सभी चीजों से बचा सकती है।
काम के दौरान झपकी आने से परफार्मेंस बेहतर होती है। चित्र : शटरस्टॉक
घर, ऑफिस और लोगों के बीच आप पहले की तरह अब कान्फिडेंट नहीं रहती। आपकी बॉस आपके परफार्मेंस से नाखुश रहती हैं। एक तरफ आप अपनी परफार्मेंस को लेकर परेशान हैं और दूसरी तरफ आपकी सेहत साथ नहीं दे रही। हमेशा चिंतित रहती हैं। जो भी करने की सोंचती हैं वो कर नहीं पाती हैं। शरीर में काफी थकावट बनी रहती है। आपकी भावनाएं कमजोर पड़ गई है, तो हो सकता है कि आप बर्नआउट की शिकार हों। काम के ओवर लोड और समय की कमी के कारण कोई भी बर्नआउट का शिकार हो सकता है। पर एक छोटी सी पावर नैप आपको इस समस्या से उबरने में मदद कर सकती है। आइए जानते हैं आपकी सेहत और प्रोडक्टिविटी के लिए कैसे फायदेमंद है पावर नैप (Power nap benefits)।
पहले समझिए क्या है बर्नआउट
बर्नआउट हमेशा चिंता में रहने, भावनात्मक रुप से कमजोर पड़ने और एक के बाद एक अपनी मांगों को पूरा कर पाने में असमर्थ होने के कारण शुरु होती है। इस समस्या की चपेट में आने के बाद हम भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक थकान से जूझने लगते हैं।
दरअसल जैसे-जैसे तनाव बढ़ता है, इच्छाएं और कुछ कर गुजरने की प्रेरणाएं खत्म होने लगती हैं। जिसके चलते हम पहले की तरह परफार्मेंस नहीं दे पाते हैं। परफार्मेंस घटने के साथ-साथ खुद को काफी कमजोर समझने लगते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि हम खुद को नाकारा समझने लगते हैं। और इस स्थिति से बचना जरूरी है। कभी-कभी यह चिड़चिड़ेपन और गुस्से के साथ आता है।
क्यों आपके लिए बर्नऑउट से बचना है जरूरी
जर्मनी के डॉर्टमुंड यूुनिवर्सिटी के डॉ. स्टीफ़न डायस्टेल ने एक स्टडी में पाया कि जिन लोगों को बर्नआउट की समस्या है, उनमें तनाव संबंधी बीमारीयों के होने का खतरा बाकियों की अपेक्षा 50 फीसदी अधिक देखा गया है। यह तनाव न केवल आपकी प्रोडक्टिविटी, बल्कि रिलेशनशिप को भी प्रभावित करता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप समय रहते इससे बचें।
क्या पावर नैप बर्नआउट से बचा सकती है?
जी हां ये सच है, दिन के समय एक छोटी सी पावर नैप आपको बर्नऑउट की समस्या से निजात दिला सकती है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोध में यह सामने आया है कि एक छोटी सी झपकी (power nap) आपको बर्नआउअ से बचा सकती है।
दरअसल हर रोज लगातार एक ही काम में व्यस्त रहने से हमारे दिमाग के कुछ हिस्से में थकान होने लगती है। ऐसे में झपकी हमारे दिमाग को विराम देती है। ऐसा होने के बाद दोबारा हमारा दिमाग अपनी क्षमताओं को हासिल लंबी और छोटी स्थिति को समझना कर लेता है। हार्वर्ड की स्टडी बताती है कि झपकी आने के बाद दिमाग की खोई क्षमता वापस आ जाती है। और इससे हमारी परफार्मेंस बढ़ जाती है। साथ लंबी और छोटी स्थिति को समझना ही मूड भी बूस्ट होता है।
पॉवर नैप कैसे काम करती है
थोड़े समय की नींद या झपकी आने पर कॉगनिटीव परफार्मेंस बेहतर हो जाती है। जिस किसी को यह आती है, उसकी मनोदशा बाकियों की तुलना में अच्छी होती है। काम के दौरान झपकी आना अच्छी बात है और इससे हमारे सीखने और याद रखने की क्षमता पर पॉजिटिव असर पड़ता है।
कितनी लंबी हो पावर नैप
वहीं अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने भी एक स्टडी में पाया है कि जो पायलट कॉकपिट पर बैठकर एयरक्राफ्ट ड्राइविंग के दौरान 26 मिनट के लिए झपकी लेते हैं उनके अंदर झपकी न लेने वाले पायलट की तुलना में 54 फीसदी अधिक सतर्कता (naps improve alertness) देखी गई। झपकी लेने वाले इन पायलटों की जॉब परफार्मेंस में भी 34 फीसदी सुधार (naps improve job performance) देखा गया। 26 मिनट की झपकी काफी लंबी है। वैसे इससे कम समय की झपकी लेने के बाद नींद अचानक खुलें और दिमाग पूरी क्षमता से काम करने के लिए तैयार हो जाए तो ऐसी झपकी भी अच्छी है।
नासा की सिफारिश है कि 10 से 20 मिनट की झपकी काफी कारगर है। सोते समय आप बिना किसी घबराहट बेचैनी के लंबी नींद लेते हैं, तो उससे भी आपको कई फायदे होते हैं। झपकी लेने से हमारी यादाश्त को बढ़ावा मिलता है, परफार्मेंस में सुधार होता है। दिमाग बेहतर ढंग से काम करती है और शरीर के तनाव में कमी होती है।
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नेशनल स्लीप फाउंडेशन के अनुसार भरपूर नींद से दिमाग की कोशिकाओं, मांसपेशियों और शरीर के अंगों को विराम मिलता है और इससे हमारे शरीर के तनाव में कमी व मनोदशा में सुधार होती है। अच्छी नींद लेने से हमारी सतर्कता, रचनात्मकता और सेहत से जुड़े बाकी अहम पहलुओं में सुधार होती है।
लेखक के बारे में
मिथिलेश कुमार पटेल
भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा कर चुके मिथिलेश कुमार सेहत, विज्ञान और तकनीक पर लिखने का अभ्यास कर रहे हैं।
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