चिकिन मनी फ्लो और मनी फ्लो इंडेक्स के बीच अंतर?

चिकिन मनी फ्लो (सीएमएफ) ऑसिलेटर और मनी फ्लो इंडेक्स (एमएफआई) के बीच समानता एमएसीडी के साथ संकेतक की समानता एमएसीडी के साथ संकेतक की समानता इस विचार के साथ समाप्त होती है कि वे दोनों आमतौर पर सक्रिय व्यापारियों द्वारा पैसे और / या गति के प्रवाह की निगरानी के लिए उपयोग किए जाते हैं। हां, जबकि दोनों आमतौर पर स्टॉक चार्ट पर गति संकेतक का उपयोग किया जाता है, गणित प्रत्येक संकेतक को अंतर्निहित करता है – और व्यापारी संकेतों की व्याख्या कैसे करते हैं – काफी अलग है।

चैकिन मनी फ्लो ओस्सिलर

चाबी छीन लेना

  • चिकिन मनी फ्लो ऑसिलेटर और मनी फ्लो इंडेक्स दोनों ही गति संकेतक हैं, लेकिन समानताएं वहां समाप्त होती हैं क्योंकि संकेतक की गणना और व्याख्या करने के तरीके अलग-अलग हैं।
  • चिकिन एमएसीडी के समान है जिसमें दोनों संकेतक अपनी गणना में घातीय चलती औसत का उपयोग करते हैं।
  • जब चैकिन मनी फ्लो इंडिकेटर लाल होता है, तो यह सुझाव देता है कि बाजार डाउनट्रेंड में है और जब यह हरा है, तो इंडिकेटर अपट्रेंड का सुझाव देता है।
  • मनी फ्लो इंडेक्स रुझानों को निर्धारित करने के लिए हाल के मूल्य आंदोलनों के संयोजन में वॉल्यूम का उपयोग करता है और यह निर्धारित करने के लिए कि क्या बाजार में ओवरबॉट या ओवरडोल्ड है।

चैकिन मनी फ्लो के मामले में, संकेतक संचय / वितरण लाइन के 3-दिन के घातीय-भारित औसत और संचय / वितरण लाइन के 10-दिवसीय ईएमए के बीच अंतर का उपयोग करता है। इस बीच, संचय / वितरण लाइन (चीकिन द्वारा विकसित) भी एक अलग संकेतक है जो कि (मात्रा) में आने वाले धन की मात्रा और स्टॉक की कीमतों पर इसके प्रभाव को निर्धारित करने का प्रयास करता है।

जैसा कि आप ऊपर Amazon.com इंक (AMZN) के चार्ट से देख सकते हैं, नकारात्मक धन प्रवाह (जैसा कि दो लाल आयतों के बीच की अवधि द्वारा दिखाया गया है ) बताता है कि दिशात्मक पूर्वाग्रह नीचे की ओर है। सकारात्मक धन प्रवाह को चैकिन धन प्रवाह संकेतक पर हरे क्षेत्रों द्वारा चिह्नित किया गया है और सुझाव है कि प्रवृत्ति ऊपर की ओर है। यदि संकेतक ऊपर उठता है ।20 या नीचे -20 पर गिरता है, तो यह सुझाव दे सकता है कि बाजार बहुत अधिक है या ओवरसोल्ड है।

मनी फ्लो इंडेक्स

मनी फ्लो इंडेक्स चीकेन मनी फ्लो ऑसिलेटर से काफी अलग है क्योंकि यह हाल के मूल्य आंदोलनों के संयोजन में वॉल्यूम का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए करता है कि गति ऊपर या नीचे है। कई व्यापारी इस संकेतक को वॉल्यूम-वेट रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स (RSI) के रूप में देखते हैं, जिसकी गणना औसत मूल्य लाभ और समय की अवधि में नुकसान (आमतौर पर 14 दिन) से की जाती है।

आमतौर पर, यदि एमएफआई 80 से ऊपर हो जाता है, तो बाजार में अधिकता है, और एक पुलबैक के कारण। दूसरी ओर, 20 या उससे कम की रीडिंग ओवरसोल्ड बाजार का सुझाव देती है जो उछाल दे सकती है। जैसा कि आप ऊपर दिए गए चार्ट से देख सकते हैं, एएमजेडएन के चार्ट पर मनी फ्लो इंडेक्स कभी भी प्रमुख ओवरबॉट या ओवरसोल्ड स्तरों से ऊपर या नीचे नहीं जाता है जैसा कि सीएमएफ उदाहरण में किया गया है। मनी फ्लो इंडेक्स का उपयोग करते समय, सिग्नल खरीदना और बेचना केवल तभी उत्पन्न होता है जब इंडेक्स 20 या 80 के स्तर से आगे बढ़ता है।

चूंकि चीकिन ऑसिलेटर और मनी फ्लो इंडेक्स की गणना अलग-अलग तत्वों का उपयोग करके की जाती है, इसलिए यह देखना आश्चर्यजनक है कि ट्रेडिंग सिग्नल काफी अलग हैं। सामान्य तौर पर, संकेतों को खरीदने और बेचने के लिए उपयोग करने से पहले किसी भी तकनीकी संकेतक के अंतर्निहित सूत्र को समझना आवश्यक है।

Color MACD Indicator For MT4

Color MACD Indicator For MT4 एक संकेतक है जो आपके दिन-प्रतिदिन के व्यापार में विश्लेषण में आसानी के लिए मूविंग एवरेज कन्वर्जेन्स / डाइवर्जेंस इंडिकेटर के लिए रंग की शक्ति लाता है। यह आपके व्यापारिक अनुभव को अधिक सुखद बनाता है क्योंकि यह पारंपरिक मूविंग एवरेज कन्वर्जेन्स / डाइवर्जेंस इंडिकेटर से सुस्त कारक को हटा देता है। उदाहरण के लिए, आप देखेंगे कि बाजार में तेजी के दौर में एमएसीडी के हिस्टोग्राम में लाल पट्टियों की एक सरणी होगी और उसके बाद चैती पट्टियाँ होंगी; ये चैती पट्टियाँ आपको उस विशिष्ट बाज़ार की अंतर्निहित प्रवृत्ति में मंदी के प्रतिरोध का संकेत देने के लिए हैं, इसके विपरीत भी सत्य है - केवल अंतर यह है कि बाजार में मंदी की अवधि के लिए लाल के बजाय चूने की सलाखों की एक सरणी होगी। सलाखों।

असमानता सूचकांक में भारत ने छह रैंक की छलांग लगाई

नॉर्वे शीर्ष पर, उसके बाद जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया 161 देशों की सरकारी नीतियों

असमानता सूचकांक में भारत ने छह रैंक की छलांग लगाई

भारत ने असमानता की खाई पाटने में प्रगति की है। भारत ने 161 देशों की 'असमानता सूचकांक में कमी लाने की नवीनतम प्रतिबद्धता' (सीआरआईआई) में छह पायदान का सुधार एमएसीडी के साथ संकेतक की समानता कर 123 वां स्थाना प्राप्त किया है। हालांकि, स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च के मामले में भारत सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में बना हुआ है।

सीआरआईआई-2022 में कोविड-19 महामारी के दौरान असमानता कम करने के लिए 161 देशों की सरकारी नीतियों और कार्यों की समीक्षा की गई है। इस सूची में नॉर्वे शीर्ष स्थान पर है और उसके बाद जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया का स्थान है। भारत की रैंकिंग में वर्ष 2020 के 129 स्थान के मुकाबले छह पायदान का सुधार हुआ है और वर्ष 2022 में उसे 123वां स्थाना मिला है। वहीं, असमानता कम करने के लिए प्रगतिशील व्यय के मामले में भारत ने 12 पायदानों का सुधार कर 129वां स्थान प्राप्त किया है। प्रगतिशील कर प्रणाली के मामले में भारत ने अपनी स्थिति तीन पायदान मजबूत कर 16वां स्थान प्राप्त किया है। न्यूनतम वेतन के मामले में भारत 73वें पायदान फिसल गया है क्योंकि उसे उन देशों की सूची में शामिल किया गया है जहां पर राष्ट्रीय तौर पर न्यूनतम वेतन तय नहीं किया गया है। असमानता कम करने के लिए सरकारी खर्च के प्रभाव के मामले में भारत की रैंकिंग में 27 पायदानों का सुधार हुआ है जबकि 'असमानता कम करने के लिए कर प्रणाली के प्रभाव' के मामले में भारत ने 33 पायदान का सुधार किया है।

इस सूचकांक को ऑक्सफैम इंटरनेशनल ऐंड डेवलपमेंट फाइनेंस इंटरनेशनल (डीएफआई) तैयार करता है। वह इस सूचकांक को तैयार करने के लिए सरकार की नीतियों और तीन क्षेत्रों में किए गए कार्यों की समीक्षा करता है जिसका प्रभाव असमानता कम करने के मामले में साबित हो चुका है। सूचकांक तैयार करने के लिए तीन क्षेत्रों को संज्ञान में लिया जाता है, जिनमें सार्वजनिक सेवा (स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा), कर और कर्मचारियों के अधिकार शामिल हैं।

स्वास्थ्य में सुधार की जरूरत

ऑक्सफैम ने सूचकांक के आधार पर तैयार रिपोर्ट में कहा कि भारत उन देशों में शामिल है जिन्होंने फिर से स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च में बहुत कम प्रदर्शन किया। सूचकांक दिखाता है कि भारत की रैंकिंग में दो पायदान की गिरावट आई है और वह 157वें स्थान पर फिसल गया है। इस प्रकार से वह दुनिया के उन देशों में पांचवे स्थान पर है जिनका प्रदर्शन इस क्षेत्र में सबसे खराब है। भारत स्वास्थ्य क्षेत्र में अपने कुल खर्चों का 3.64 प्रतिशत खर्च कर रहा है जो ब्रिक्स (ब्राजील, चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका) देशों और पड़ोसी देशों में सबसे कम है। चीन अपने खर्च का 10 प्रतिशत, ब्राजील 7.7 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका अपने खर्च का सबसे अधिक 12.6 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करता है।

समता और सम्मान की चुनौतियां

भारत दुनिया में सबसे युवा आबादी वाला देश है। अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की आधी आबादी भारत समेत महज नौ देशों में होगी। किसी भी देश में बच्चे, चाहे बेटा हो या बेटी, भविष्य की पूंजी होते हैं। इन्हें गरिमा और सम्मान के साथ परवरिश और समतामूलक दृष्टिकोण के साथ अग्रिम पंक्ति में खड़ा करने की जिम्मेदारी व्यक्ति और समाज की है। मगर जब विषमताएं और लैंगिक भेदभाव किसी भी वजह से जगह बनाती हैं, तो यह समाज के साथ-साथ देश के लिए भी बेहतर भविष्य का संकेत नहीं है।

समता और सम्मान की चुनौतियां

सुशील कुमार सिंह

वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक 2022 के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत दुनिया के एक सौ छियालीस देशों में एक सौ पैंतीसवें स्थान पर है, जबकि 2020 के इसी सूचकांक में एक सौ तिरपन देशों में एक सौ बारहवें स्थान पर था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में लैंगिक भेदभाव की जड़ें कितनी मजबूत और गहरी हैं।

सवाल है कि इस असमानता के पीछे बड़ा कारण क्या है। आर्थिक भागीदारी और अवसर की कमी के अलावा शिक्षा प्राप्ति में व्याप्त अड़चनें, स्वास्थ्य और उत्तरजीविता तथा सशक्तिकरण को इसके लिए जिम्मेदार समझा जा सकता है। 2022 के इस आंकड़े में आइसलैंड, जहां इस मामले में शीर्ष पर है वहीं निम्न प्रदर्शन के मामले में अफगानिस्तान को देखा जा सकता है। हैरत यह भी है कि पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और भूटान की स्थिति भारत से बेहतर है, जबकि दक्षिण एशिया में पाकिस्तान और अफगानिस्तान का प्रदर्शन भारत से खराब है।

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यह भी गौरतलब है कि कोविड के चलते व्याप्त मंदी ने महिलाओं को भी प्रभावित किया और लैंगिक अंतराल सूचकांक में तुलनात्मक गिरावट आई। यह तथ्य है कि लैंगिक असमानता को जितना कमजोर किया जाएगा, लैंगिक न्याय और समानता को उतना ही बल मिलेगा। संविधान से लेकर विधान तक और सामाजिक सुरक्षा की कसौटी समेत तमाम मोर्चों पर लैंगिक असमानता को कम करने का प्रयास दशकों से जारी है, मगर अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है। यहां लैंगिक आधार पर भेदभाव को व्यावहारिक और सैद्धांतिक दोनों दृष्टियों से समाप्त करने का प्रयास एमएसीडी के साथ संकेतक की समानता जारी है।

हालांकि कई ऐसे कानून मौजूद हैं, जो लैंगिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं। इसमें समुदाय विशेष के पर्सनल ला भी हैं, जहां ऐसे प्रावधान निहित हैं, जो महिलाओं के अधिकारों को न केवल कमजोर करते, बल्कि भेदभाव से भी युक्त हैं। समान नागरिक संहिता को संविधान के नीति निदेशक तत्त्व के अंतर्गत अनुच्छेद 44 में देखा जा सकता है।

चूंकि भारत लैंगिक समता के लिए प्रयास करने वाला देश है, समान आचार संहिता एक आवश्यक कदम के रूप में समझा जा सकता है। इसके होने से समुदायों के बीच कानूनों में एकरूपता और पुरुषों तथा महिलाओं के अधिकारों में बीच समानता स्वाभाविक रूप से आएगी।

इतना ही नहीं, विशेष विवाह अधिनियम 1954 किसी भी नागरिक के लिए, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, ‘सिविल मैरिज’ का प्रावधान करता है। जाहिर है, इस प्रकार किसी भी भारतीय को किसी भी धार्मिक व्यक्तिगत कानून की सीमाओं के बाहर विवाह करने की अनुमति देता है।

शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत उसके पक्ष में निर्णय दिया था, जिसमें पत्नी, बच्चे और माता-पिता की देखभाल के संबंध में सभी नागरिकों पर लागू होता है। इतना ही नहीं, देश की शीर्ष अदालत ने लंबे समय से लंबित समान नागरिक संहिता अधिनियमित करने की बात भी कही।

1995 के सरला मुद्गल मामला हो या 2019 का पाउलो कोटिन्हो बनाम मारिया लुइजा वेलेंटीना परोरा मामला, सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से समान आचार संहिता लागू करने के लिए कहा। गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता लैंगिक न्याय की दिशा में भी एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल व्यक्तिगत कानूनों की सीमाओं में जकड़ी असमानता को रोका जा सकेगा, बल्कि स्त्री की प्रगतिशील अवधारणा और उत्थान को भी मार्ग दिया जा सकेगा।

गौरतलब है कि 2030 तक विश्व के सभी देश अपने वैश्विक एजेंडे के अंतर्गत न केवल गरीबी उन्मूलन और भुखमरी की समाप्ति, बल्कि स्त्री-पुरुष समानता के साथ लैंगिक न्याय हासिल करने को लेकर जद्दोजहद कर रहे हैं। ऐसे में बहुआयामी लक्ष्य के साथ लैंगिक न्याय को प्राप्त करना किसी भी देश की कसौटी है और भारत इससे परे नहीं है। लिंग आधारित समस्याओं का बने रहना न केवल देश में बहस का मुद्दा खड़ा करता है, बल्कि विकास के पैमाने को भी अवरुद्ध बनाए एमएसीडी के साथ संकेतक की समानता रखता है।

विश्व बैंक ने बरसों पहले कहा था कि अगर भारत की पढ़ी-लिखी महिलाएं कामगार हो जाएं तो देश की जीडीपी सवा चार फीसद रातोरात बढ़ सकती है। यहां ध्यान दिला दें कि अगर यही विकास दर किसी तरह प्राप्त कर ली जाए, तो जीडीपी दहाई में होगी और पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था के सपने को भी पंख लग जाएंगे।

बेशक भारतीय समाज में लिंग असमानता का मूल कारण इसकी पितृसत्तात्मक व्यवस्था रही है, मगर इसकी यह जड़ अब उतनी मजबूत नहीं कही जा सकती। भारत में महिलाओं के लिए बहुत से सुरक्षात्मक उपाय किए गए हैं। उनके साथ अत्याचार आज भी खतरनाक स्तर पर है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता, मगर यही महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में अपनी दमदार उपस्थिति भी दर्ज करा रही हैं।

सिविल सेवा परीक्षा में तो कई अवसर ऐसे आए हैं, जब महिलाएं न केवल प्रथम स्थान पर रही हैं, बल्कि एमएसीडी के साथ संकेतक की समानता एक बार लगातार चार स्थानों तक और एक बार लगातार तीन स्थानों तक महिलाएं ही छाई रहीं। उक्त परिप्रेक्ष्य एक बानगी है कि लिंग असमानता या लैंगिक न्याय को लेकर चुनौतियां तो हैं, मगर वक्त के साथ लैंगिक समानता भी आई है।

दहेज प्रथा का प्रचलन आज भी है, जिसे सामाजिक बुराई या अभिशाप तो सभी कहते हैं, मगर इस जकड़न से गिने-चुने ही बाहर हैं। कन्या भ्रूण हत्या पर कानून बने हैं, फिर भी यदा-कदा इसका उल्लंघन होता रहता है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में बावन फीसद महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं। यह भी लैंगिक न्याय की दृष्टि से चुनौती बना हुआ है, जबकि घरेलू हिंसा कानून 2005 से ही लागू है।

महिलाओं को आज की संस्कृति के अनुसार अपनी रूढ़िवादी सोच को भी बदलना होगा। पुरुषों को महिलाओं के समांतर खड़ा करना या महिलाएं पुरुषों से प्रतियोगिता करें, यह समाज और देश दोनों दृष्टि से सही नहीं है, बल्कि सहयोगी और सहभागी दृष्टि से उत्थान और विकास को प्रमुखता दे, यह सभी के हित में है।

यह बात जितनी सहजता से कही जा रही है यह व्यावहारिक रूप से उतना है नहीं। मगर एक कदम बड़ा सोचने से दो और कदम अच्छे रखने का साहस अगर विकसित होता है, तो पहले लैंगिक न्याय की दृष्टि से एक आदर्श सोच तो लानी ही होगी।

लैंगिक समानता का सूत्र सामाजिक सुरक्षा और सम्मान से होकर गुजरता है। समान कार्य के लिए समान वेतन, मातृत्व अवकाश, लैंगिक अनुपात में बजट समेत कई ऐसे परिप्रेक्ष्य हैं, जिनसे लैंगिक न्याय पुख्ता होता है। राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में भारत 2020 में इसमें भागीदारी को लेकर अठारहवें स्थान पर था और मंत्रिमंडल में भागीदारी एमएसीडी के साथ संकेतक की समानता के मामले में विश्व में उनहत्तरवें स्थान पर। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, वन स्टाप सेंटर योजना, महिला हेल्पलाइन योजना, महिला सशक्तिकरण केंद्र तथा राष्ट्रीय महिला आयोग जैसी तमाम संस्थाएं लैंगिक समानता और न्याय की दृष्टि से अच्छे कदम हैं। बावजूद इसके लैंगिक न्याय को लेकर चुनौतियां भी कमोबेश बरकरार हैं।

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