(iii) यह पूरे देश में आर्थिक आंकड़ों के संग्रह में मदद करता है।
मुद्रा और साख
10 रुपये के नोट पर निम्न पंक्ति लिखी होती है, “मैं धारक को दस रुपये अदा करने का वचन देता हूँ।“ इस कथन के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर का दस्तखत होता है। यह कथन दर्शाता है कि रिजर्व बैंक ने उस करेंसी नोट पर एक मूल्य तय किया है जो देश के हर व्यक्ति और हर स्थान के लिये एक समान होता है।
भारतीय रिजर्व बैंक ऋण के औपचारिक स्रोतों के कामकाज की निगरानी करता है। उदाहरण के लिए, हमने मुद्रा बाज़ारों की विशेषताएं देखा की बैंक अपनी जमा का एक न्यूनतम नकद हिस्सा अपने पास रखते हैं। आर.बी.आई. नज़र रखता हैं कि बैंक वास्तव में नकद शेष बनाए मुद्रा बाज़ारों की विशेषताएं हुए हैं। आर.बी.आई. इस पर भी नज़र रखता हैं कि बैंक केवल लाभ अर्जित करने वाले व्यावसायियों और व्यापारियों को ही ऋण मुहैया नहीं करा रहे, बल्कि छोटे किसानों, छोटे उद्योगों, छोटे कर्ज़दारों इत्यादि को भी ऋण दे रहे हैं । समय समय पर, बैंकों द्वारा आर.बी.आई.को यह जानकारी देनी पड़ती है कि वे कितना और किनको ऋण दे रहे हैं और उसकी ब्याज की दरें क्या है?
मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस तरह सुलझाती मुद्रा बाज़ारों की विशेषताएं है? अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाइए।
जिस व्यक्ति के पास मुद्रा है, वह इसका विनिमय किसी भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए आसानी से कर सकता है। आवश्यकताओं का दोहरा सयोंग विनिमय प्रणाली की एक अनिवार्य विशेषता है। जहाँ मुद्रा का उपयोग किये बिना वस्तुओं का विनिमय होता है। इसकी तुलना में ऐसी आर्थव्यवस्था जहाँ मुद्रा का प्रयोग होता है, मुद्रा महत्वपूर्ण मध्यवर्ती भूमिका प्रदान करके आवश्यकताओं के मुद्रा बाज़ारों की विशेषताएं दोहरे संयोग की ज़रूरत का खत्म कर देती है।
उदहारण: जूता निर्माता के लिए ज़रूरी नहीं रह जाता की वो ऐसे किसान को ढूंढे, जो न केवल उसके जूते ख़रीदे बल्कि साथ-साथ उसको गेहूँ भी बेचे। उससे केवल अपने जूते के लिए खरीददार ढूँढ़ना हैं। एक बार उसने जूते, मुद्रा में बदल लिए तो वह बाज़ार में गेहूँ या अन्य कोई वस्तु खरीद सकता है।
चीन राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा प्रशासन: चीन के विदेशी मुद्रा बाजार में अच्छा लचीलापन
बीजिंग,(आईएएनएस)| 21 नवम्बर को आयोजित 2022 वित्तीय मंच के वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में चीनी जन बैंक के उपाध्यक्ष, चीनी राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा प्रशासन के प्रधान फान कोंगशंग ने कहा कि इस वर्ष उच्च मुद्रास्फीति और सिकुड़न मुद्रा नीति के प्रभाव से विदेशी मुद्रा समेत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजार की डांवाडोल स्थिति को एक साल हो चुका है। इसके बावजूद चीनी विदेशी मुद्रा के बाजार में लचीलापन दिखता है।
फान कोंगशंग ने कहा कि इस वर्ष वैश्विक स्टॉक, बॉन्ड और अन्य वित्तीय संपत्ति की कीमतें बड़े पैमाने पर गिर चुकी हैं। यूएस डॉलर तेजी से मजबूत हो गया है और 20 वर्षों की एक नयी ऊंचाई पर पहुंचा है।
फान कोंगशंग ने कहा कि चीन की विदेशी मुद्रा के बाजार में नयी विशेषताएं दिख रही हैं और लचीलापन निरंतर मजबूत हो रहा है। मुद्रा बाज़ारों की विशेषताएं वैश्विक दायरे में प्रमुख विकसित और नवोदित बाजार में मुद्राओं की तुलना में चीनी मुद्रा आरएमबी की अवमूल्यन दर औसत स्तर पर रही है। सीमा पार फंड के प्रवाह में उतार -चढ़ाव होने के बावजूद यह आम तौर पर स्थिर और व्यवस्थित रहा है।
भ्रम के मकड़जाल में फंसा मुद्रा का बाजार
इसकी एक जबरदस्त मिसाल सोमवार सुबह को देखने को मिली, जब एक पाउंड की कीमत 1.70 डॉलर थी। लेकिन ठीक 24 घंटों के बाद इसकी कीमत 1.75 डॉलर हो चुकी थी। डॉलर के मुकाबले रुपये में भी कम उठा-पटक देखने को नहीं मिली है।
मजे की बात यह है कि मैं आज कई विश्लेषकों और निर्यातकों को उन दिनों को बड़ी शिद्दत के साथ याद करते हुए देखता हूं, जब एक डॉलर की कीमत महज 40 रुपये हुआ करती थी। वह भी ऐसे वक्त में जब डॉलर की कीमत काफी ज्यादा हो चुकी है। मेरी मानें तो वे एक सवाल अपने-आप से जरूर पूछें कि अगर डॉलर की कीमत आज भी 35 डॉलर होती तो क्या कारोबारी लिहाज से उनकी हालत अच्छी होती।
दरअसल, उनका यह शोक कई मुद्दों पर उनकी नासमझी को दिखलाता है। उनमें कुछ मुद्दे हैं :
मुद्राओं का कारोबार किया जाए या उनका इस्तेमाल हेजिंग के लिए हो? मुद्रा बाजार के एक कारोबारी के रूप में अगर मुझे 42 रुपये पर सौदा करना होता, तो मेरे लिए रुपये की कमजोरी एक बड़ा झटका साबित होती। दूसरी तरफ अगर मैं हेजिंग के लिहाज से वह सौदा करता, तो वह मेरे लिए मुनाफे का ही सौदा साबित होता। असल में लोगों को इस बदलाव का स्वागत करना चाहिए क्योंकि इसकी वजह से वायदा कारोबार का आने वाला कल काफी हद तक बेहतर हो सकता है।
वित्तीय बाजार क्या है? वित्तीय बाजार के कार्य और प्रकार
वित्तीय बाजार वित्तीय सम्पत्तियों जैसे अंश, बांड के सृजन एवं विनिमय करने वाला बाजार होता है। यह बचतों को गतिशील बनाता है तथा उन्हें सर्वाधिक उत्पादक उपयोगों की ओर ले जाता है। यह बचतकर्ताओं तथा उधार प्राप्तकर्ताओं के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है तथा उनके बीच कोषों को गतिशील बनाता है। वह व्यक्ति/संस्था जिसके माध्यम से कोषों का आबंटन किया जाता है उसे वित्तीय मध्यस्थ कहते हैं। वित्तीय बाजार दो ऐसे समूहों के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं जो निवेश तथा बचत का कार्य करते हैं। वित्तीय बाजार सर्वाधिक उपयुक्त निवेश हेतु उपलब्ध कोषों का आबंटन करते हैं।
(1) बचतों को गतिशील बनाना तथा उन्हें उत्पादक उपयोग में सरणित करना:- वित्तीय बाजार बचतों को बचतकर्ता से निवेशकों तक अंतरित करने को सुविधापूर्ण बनाता है। अत: यह अधिशेष निधियों को सर्वाधिक उत्पादक उपयोग में सरणित करने में मदद करते हैं।
वित्तीय बाजार के प्रकार
- मुद्रा बाजार
- पूंजी बाजार ।
1. मुद्रा बाजार
अवधि एक वर्ष तक की होती है। इस बाजार के प्रमुख प्रतिभागी भारतीय रिजर्व बैंक, व्यापारिक बैंक, गैर बैंकिग, वित्त कम्पनियाँ, राज्य सरकारें, म्युचुअल फंड आदि हैं। मुद्रा बाजार के महत्वपूर्ण प्रलेख निम्नलिखित हैं।
1. याचना राशि-याचना राशि का प्रयोग मुख्यत: बैंकों द्वारा उनके अस्थायी नकदी की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए प्रयोग किया जाता है ये दिन-प्रतिदिन के आधार पर एक दूसरे से ऋण लेते तथा देते है। इसका पुनभ्र्ाुगतान मांग पर देय होता है और इसकी परिपक्वता अवधि एक दिन से 15 दिन तक की होती है याचना राशि पर भुगतान किए जाने वाले ब्याज की दर को याचना दर कहते है।
प्राथमिक बाजार व द्वितीयक बाजार में अंतर
1. कार्य-प्राथमिक बाजार का मुख्य कार्य नवीन प्रतिभूतियो के निगर्मन द्वारा दीर्घकालीन कोष एकत्र करना है वहीं द्वितीयक बाजार विद्यमान प्रतिभूितयो को सतत एवं तात्कालिक बाजार उपलब्ध कराता है।
2. प्रतिभागी-प्राथमिक बाजार में मुख्य भाग लेने वाली वित्तीय संस्थाएं, म्यूच्यूअल फण्ड, अभिगोपक और व्यक्तिगत निवेशक हैं, जबकि द्वितीयक बाजार में भाग लेने वाले इन सभी के अतिरिक्त वे दलाल भी हैं जो शेयर बाजार (स्टाक एक्सचेंज) के सदस्य हैं।
3. सूचीबद्ध कराने की आवश्यकता-प्राथमिक बाजार की प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती, जबकि द्वितीयक बाजार में केवल उन्हीं प्रतिभूतियों का लेन-देन हो सकता है जो सूचीबद्ध होती हैं।
4. मूल्यों को निर्धारण-प्राथमिक बाजार के सम्बन्ध मे प्रतिभूतियों का मूल्य निर्धारण प्रबंधन द्वारा सेबी के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है, जबकि द्वितीयक बाजार में प्रतिभूतियों का मूल्य बाजार में विद्यमान मांग व पूर्ति के समन्वय द्वारा निर्धारित किया जाता है, जो समय के अनुसार परिवर्तित होता रहता है।
स्थिरीकरण की अवधारणा : RBI द्वारा प्रयुक्त स्थिरीकरण की क्रियाविधि
स्थिरीकरण मौद्रिक कार्रवाई का वह रूप है जिसमें केंद्रीय बैंक वित्तीय परिसंपत्तियों की खरीद या बिक्री के माध्यम से मुद्रा आपूर्ति पर पूंजी अंतर्वाह और बहिर्वाह के प्रभाव को सीमित करने का प्रयास करता है। यह वृहत् निवल पूंजी आवागमन अर्थात् अंतर्वाह (सकारात्मक आघात) या बहिर्वाह (नकारात्मक आघात) के रूप में परिचालित होने वाले बाह्य आघातों के प्रति अनुक्रिया करने के लिए RBI द्वारा प्रयुक्त किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण साधन है। भारत के विदेशी निवेश का आकर्षक गंतव्य स्थान होने के कारण, RBI द्वारा मुख्यत: पूंजी अंतर्वाह की स्थिति में स्थिरीकरण का प्रयोग किया जाता है।
पूंजी अंतर्वाह की स्थिति में RBI द्वारा स्थिरीकरण :
विदेशी निवेशकों द्वारा विदेशी मुद्रा के माध्यम से भारतीय बंधपत्रों (बॉन्ड) की खरीद की जाती है, जिससे विदेशी मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि हो जाती है। इससे घरेलू मुद्रा में मूल्यवृद्धि होती है, जिससे भारतीय निर्यात प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है। इसलिए RBI द्वारा विदेशी मुद्रा में नामित परिसंपत्तियों को खरीदने हेतु घरेलू मुद्रा का विक्रय किया जाता है। परन्तु घरेलू मुद्रा का मुद्रा बाज़ारों की विशेषताएं इस प्रकार का विक्रय देश में मुद्रास्फीति का कारण बनता है। मांग में आनुपातिक मुद्रा बाज़ारों की विशेषताएं वृद्धि के बिना मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि से ब्याज दरों में भी गिरावट आती है।
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