4. M4 = M3 + डाकघर की कुल जमा राशि (NSC छोड़कर)
मुद्रा किसे कहते है
मुद्रा किसे कहते है आर्थिक प्रणाली में मुद्रा का केवल एक मौलिक कार्य है – वस्तुओ तथा सेवाओं के लेन – देन को सरल बनाना । जी हाँ दोस्तों आज के पोस्ट में हम बात करने वाले है मुद्रा किसे कहते है क्या रोल होता है हमारे जीवल में मुद्रा का मुद्रा प्रचलन आज से नहीं बल्कि हर युग होते रहा है मुद्रा क्या है और इसके कार्य क्या है? । चाहे प्राचीन कल हो या मध्य कल हो या फिर आज का आधुनिक कल हो ऐ हमेसा से प्रचलन में चलते आरा रहा है । वस विनिमय का तरीका अलग था ।
मुद्रा ने समाज में विभिन्न प्रकार के कार्य करके आर्थिक विकाश को सम्भव बनाया है । आर्थिक प्रणाली में मुद्रा का मुद्रा क्या है और इसके कार्य क्या है? केवल एक मौलिक कार्य है – वस्तुओ तथा सेवाओं के लेन – देन को सरल बनाना इसमें बैंको का विशेष योगदान होता है , साथ ही वित्तीय संस्थान समाज में मुद्रा के सहविभाजन में पूर्ण सहयोग प्रदान करते है ।
मुद्रा
मुद्रा की उत्पत्ति विनिमय के माध्यम के रूप में हुई है। अतः वस्तु जो विनिमय के माध्यम का कार्य करती है, वह मुद्रा कहलाती है अर्थात् मुद्रा (Currency) वह वस्तु है, जो सभी प्रकार के लेन-देन में भुगतान के माध्यम के रूप में प्रयुक्त होती है अर्थात् यह एक शक्तिशाली वस्तु है, जो भुगतान के माध्यम के रूप में पूर्णतया स्वीकृत है।
मुद्रा का निर्गमन केन्द्रीय बैंक व सरकार द्वारा किया जाता है। मुद्रा का अभिप्राय मात्र नोटों व सिक्कों से न होकर उन सभी वस्तुओं से हैं, जो भुगतान के रूप में सामान्यतः स्वीकार की जाती हैं।
मुद्रा के दो प्रकार होते है
1. वैधानिक मुद्रा (Legal Currency) वह मुद्रा है, जिसका निर्गमन सरकार या रिजर्व बैंक द्वारा एक विधान के अन्तर्गत किया जाता है, जिसमें रिजर्व बैंक धारक को उतनी रकम अदा करने का वचन देता है।
मुद्रा किसे कहते है
मुद्रा किसे कहते है आर्थिक प्रणाली में मुद्रा का केवल एक मौलिक कार्य है – वस्तुओ तथा सेवाओं के लेन – देन को सरल बनाना । जी हाँ दोस्तों आज के पोस्ट में हम बात करने वाले है मुद्रा किसे कहते है क्या रोल होता है हमारे जीवल में मुद्रा का मुद्रा प्रचलन आज से नहीं बल्कि हर युग होते रहा है । चाहे प्राचीन कल हो या मध्य कल हो या फिर आज का आधुनिक कल हो ऐ हमेसा से प्रचलन में चलते आरा रहा है । वस विनिमय का तरीका अलग था ।
मुद्रा ने समाज में विभिन्न प्रकार के कार्य करके आर्थिक विकाश को सम्भव बनाया है । आर्थिक प्रणाली में मुद्रा का केवल एक मौलिक कार्य है – वस्तुओ तथा सेवाओं के लेन – देन को सरल मुद्रा क्या है और इसके कार्य क्या है? बनाना इसमें बैंको का विशेष योगदान होता है , साथ ही वित्तीय संस्थान समाज में मुद्रा के सहविभाजन में पूर्ण सहयोग प्रदान करते है ।
मुद्रा
मुद्रा की उत्पत्ति विनिमय के माध्यम के रूप में हुई है। अतः वस्तु जो विनिमय के माध्यम का कार्य करती है, वह मुद्रा कहलाती है अर्थात् मुद्रा (Currency) वह वस्तु है, जो सभी प्रकार के लेन-देन में भुगतान के माध्यम के रूप में प्रयुक्त होती है अर्थात् यह एक शक्तिशाली वस्तु है, जो भुगतान के माध्यम के रूप में पूर्णतया स्वीकृत है।
मुद्रा का निर्गमन केन्द्रीय बैंक व सरकार द्वारा किया जाता है। मुद्रा का अभिप्राय मात्र नोटों व सिक्कों से न होकर उन सभी वस्तुओं से हैं, जो भुगतान के रूप में सामान्यतः स्वीकार की जाती हैं।
मुद्रा के दो प्रकार होते है
1. वैधानिक मुद्रा (Legal Currency) वह मुद्रा है, जिसका निर्गमन सरकार या रिजर्व बैंक द्वारा एक विधान के अन्तर्गत किया जाता है, जिसमें रिजर्व बैंक धारक को उतनी रकम अदा करने का वचन देता है।
मुद्रा के कार्यों पर प्रकाश डालें।
1. विनिमय का माध्यम- मुद्रा विनिमय का एक माध्यम है। क्रय तथा विक्रय दोनों में ही मुद्रा मध्यस्थ का कार्य करती है। मुद्रा के आविष्कार के कारण अब आवश्यकताओं के दोहरे संयोग के अभाव की कठिनाई उत्पन्न नहीं होती है। अब वस्तु या सेवा को बेचकर मुद्रा प्राप्त की जाती है तथा मुद्रा से अपनी जरूरत की अन्य वस्तुएं खरीदी जाती हैं। इस तरह मुद्रा ने विनिमय के कार्य को बहुत ही आसन बना दिया है। चूंकि मुद्रा विधि ग्राह्य (Legal Tender) भी होती है। इस कारण इसे स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं उत्पन्न होती है। मुद्रा के द्वारा किसी भी समय विनिमय किया जा सकता है।
2. मूल्य का मापक-मुद्रा मूल्य का मापक है। मुद्रा के द्वारा वस्तुओं का मूल्यांकन करना सरल हो गया है। वस्तु विनिमय प्रणाली में एक कठिनाई यह थी कि वस्तुओं का सही तौर पर मूल्यांकन नहीं हो पाता था। मुद्रा ने इस कठिनाई को दूर कर दिया है। किस वस्तु का कितना मूल्य होगा, मुद्रा द्वारा यह पता लगाना सरल हो गया है। चूंकि प्रत्येक वस्तु को मापने के लिए एक मापदण्ड होता है। वस्तुओं का मूल्य मापने का मापदण्ड मुद्रा ही है। मुद्रा के इस महत्वपूर्ण कार्य के कारण विनिमय करने की सुविधा हो गयी है, क्योंकि बिना मूल्यांकन के विनिमय का कार्य उचित रूप से संपादित नहीं हो सकता है।
₹ मुद्रा के कार्य | Function of Money
Money का केवल एक मौलिक कार्य है माल तथा सेवाओं के लेन देन को सरल बनाना। मुद्रा के इस कार्य से लेन-देन में लगने वाले समय तथा परिश्रम की बचत होती हैं। वास्तव में मुद्रा का कार्य लेनदेन को इतना अधिक सरल और सस्ता बनाना है कि उत्पादन में जितने भी माल बने वह नियमित रूप में उपभोक्ताओं के पास पहुंचता रहे और भुगतान का क्रम निरंतर चलता रहे।
इस प्रकार से आज के समय में मुद्रा वाणिज्य (Commerce) के लिए एक पहिए का कार्य करती हैं।मुद्रा के सभी कार्यों को निम्नलिखित 4 वर्गों में विभाजित किया गया हैं।
मुद्रा के कार्य का वर्गीकरण
इसके कार्य का वर्गीकरण मुख्य रूप से चार भागों में किया गया हैं –
- मुख्य या प्राथमिक कार्य
- सहायक कार्य
- अकास्मिक कार्य
- अन्य कार्य
आइए इन सभी के बारे में एक-एक करके विस्तार से समझते हैं।
मुख्य या प्राथमिक कार्य (Primary Function)
आज के समय में मुद्रा का मुख्य कार्य दो है – a. यह विनिमय का माध्यम है b. यह मूल्यों की माप हैं।
विनिमय का माध्यम – विनिमय का साधारण अर्थ होता है एक दूसरे से अदला-बदली करना। वस्तु विनिमय तभी हो पाता है जब दो व्यक्ति किसी वस्तु को देने व लेने को तैयार हो जाते हैं। वस्तुओं के विनिमय में दोहरा संयोग बनाने में समय और शक्ति भी व्यर्थ नष्ट होती थीं। मुद्रा ने वस्तु विनिमय की दोहरे संयोग की कठिनाइयों को पूरी तरह से समाप्त कर दिया हैं। मुद्रा विनिमय की प्रक्रिया को बहुत सरल बना दिया है अब वस्तुओं का विनिमय प्रत्यक्ष ना होकर परोक्ष में होता हैं।
अकास्मिक कार्य
मुद्रा के कार्य के अंतर्गत मुख्य चार बिंदु को सम्मिलित किया गया है –
- साख का आधार – बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं का व्यवसाय साख के आधार पर ही चलता है तथा साख का सृजन बैंकों में जमा राशि के आधार पर किया जाता हैं। यह साख मुद्रा के रूप में होती हैं। वर्तमान में अधिकांश भुगतान चेक, हुंण्डी, विनिमय पत्र तथा साख पत्रों के माध्यम से किया जाता हैं।
- आय का वितरण – आज के समय में व्यापार तथा उद्योगों में बहुत तेजी से वृद्धि हुई हैं। औद्योगिक उत्पादन व्यापक पैमाने पर हो रहा है जिसमें बहुत से लोग मिलकर उत्पादन करते हैं। उत्पादन में उनके सहयोग का प्रतिफल दिया जाना आवश्यक होता हैं। संयुक्त रूप से किए गए उत्पादन को बेचकर प्राप्त धनराशि को विभिन्न लोगों में बांटा जा सकता हैं। यह परिस्थिति मुद्रा के कारण ही संभव हो पाई हैं।
अन्य कार्य
इच्छा की वाहक – ग्राहक के अनुसार मुद्रा संचय का आधार हैं। इसको जमा करने वाला प्रत्येक व्यक्ति इस बात का ध्यान रख सकता है कि उसे संचित संपत्ति कब उपयोग में लाने है मुद्रा समाज की वर्तमान एवं भविष्य की पूर्ति में सहयोग देती है।
भुगतान स्थिति की सूची – किसी फर्म या व्यक्ति के पास मुद्रा-रुपी तरल संपत्ति उसकी भुगतान देने की क्षमता की गारंटी होती हैं। बैंकों के पास यदि ग्राहकों को देने के लिए पर्याप्त Amount नहीं होती तो वह दिवालिया हो जाते। इस प्रकार मुद्रा इस बात की सूचक है कि कोई संस्था दिवालिया तो नहीं हो गयी है।
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