ब्‍लूमवर्ग के अनुसार, भारत में विदेशी भंडार अभी भी 2017 के स्तर से 49 प्रतिशत अधिक है और नौ महीने के आयात का भुगतान कर सकता है। लेकिन वहीं अन्‍य देशों के लिए यह जल्‍द ही समाप्‍त हो सकता है। इस साल 42 फीसदी की गिरावट के बाद पाकिस्‍तान का 14 बिलियन डॉलर का भंडार तीन महीने के लिए आयात को कवर नहीं कर डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों सकता।

Why the Dollar is the Global Currency

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.

इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.

विदेशी मुद्रा भंडार में हुई तेज गिरावट, अभी तक 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

विदेशी मुद्रा भंडार में हुई तेज गिरावट, अभी तक 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड गिरावट हुई है। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गति से गिरावट हो रही है। भंडार में यह आए दिन नए रिकॉर्ड स्‍तर पर गिरावट जारी है। अभी तक विदेशी मुद्रा भंडार 1 ट्रिलियन डॉलर डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों घट चुका है। इस साल करीब 1 ट्रिलियन डॉलर या 7.8 फीसदी घटकर 12 ट्रिलियन डॉलर हो गया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, यह 2003 के बाद सबसे तेज गिरावट डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों है।

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की वजह, भारत के सेंट्रल बैंक की ओर से रुपये के गिरावट को बचाने के लिए उठाए गए कदम हैं। वहीं अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर मंदी की आशंका भी डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों गिरावट की वजह है। मंदी का एक कारण डॉलर यूरो और येन जैसी मुद्राओं मुद्राओं के मुकाबले दो दशक के हाई लेवल पर पहुंच चुका है।

जरुरी जानकारी | विदेशी मुद्रा भंडार 2.91 अरब डॉलर बढ़कर 564.06 अरब डॉलर पर

जरुरी जानकारी | विदेशी मुद्रा भंडार 2.91 अरब डॉलर बढ़कर 564.06 अरब डॉलर पर

मुंबई, 16 दिसंबर देश का विदेशी मुद्रा भंडार नौ दिसंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान 2.91 अरब डॉलर बढ़कर 564.06 अरब डॉलर पर पहुंच गया। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।

विदेशीमुद्रा भंडार में लगातार पांचवें सप्ताह तेजी आई है। पिछले सप्ताह देश का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 11 अरब डॉलर बढ़कर 561.16 अरब डॉलर पर पहुंच गया था।

गौरतलब है कि अक्टूबर, 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया था। वैश्विक घटनाक्रमों के बीच केंद्रीय बैंक के रुपये की विनियम दर में तेज गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा भंडार का उपयोग करने की वजह से बाद में इसमें गिरावट आई थी।

Rupee vs Dollar: ऐतिहासिक स्तर पर फिसला रुपया, क्यों आ रही है गिरावट और क्या होगा इसका असर?

डिंपल अलावाधी

Rupee vs Dollar Indian rupee fell past 80 for the first time ever

  • भारतीय रुपये के कमजोर होने से महंगाई बढ़ सकती है।
  • डॉलर की मजबूती से आयात महंगा हो जाएगा।
  • इस साल की शुरुआत से ही डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों रुपया डगमगा रहा है।

नई दिल्ली। आज भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले (Rupee vs Dollar) 80 से भी नीचे गिर गया। शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 7 पैसे की गिरावट के साथ अब तक के सबसे निचले स्तर 80.05 पर आ गया। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत पिछले आठ सालों में 16.08 रुपये यानी 25.39 फीसदी फिसल चुकी है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 में विनिमय दर 63.33 रुपये प्रति डॉलर थी।

आख़िर डॉलर क्यों है ग्लोबल करेंसी? – Why the Dollar is the Global Currency

डॉलर आज के समय में एक वैश्विक मुद्रा – Global Currency बन गई है। जिसकी एक बड़ी वजह ये है कि दुनियाभर के केंद्रीय बैंको में अमेरिकी डॉलर स्वीकार्य है। और रिपोर्टस की माने तो दुनियाभर में देशों के बीच दिए जाने वाले 39 फीसदी कर्ज डॉलर में ही दिए जाते है। हालांकि डॉलर को हमेशा से वैश्विक मुद्रा का दर्जा प्राप्त नहीं था।

साल 1944 से पहले गोल्ड को मानक माना जाता था। यानी की दुनियाभर के देश अपने देश की मुद्रा को सोने की मांग मूल्य के आधार पर ही तय करते थे। लेकिन साल 1944 में ब्रिटेन में वुड्स समझौता हुआ। जिसमें ब्रिटेन के वुड्स शहर में दुनियाभर के विकसित देशों की एक बैठक हुई जिसमें ये तय किया गया कि अमरीकी डॉलर के मुकाबले सभी मुद्राओँ की विनिमय दर तय की जाएगी।

ऐसा इसलिए क्योंकि उस डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों समय अमेरिका के पास दुनिया में सबसे ज्यादा सोने के भंडार थे। जिस वजह से बैठक मे शामिल हुए दूसरे देशों ने भी सोने की जगह डॉलर को वैश्विक मुद्रा बनाने और डॉलर के अनुसार उनकी मुद्रा का तय करने की अनुमति दी।

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